बीजेपी के मन में लड्डूः कांग्रेस के सियासी झगड़े से भाजपा में मिशन-2023 को लेकर फूटने लगे लड्डू, चिंतन शिविर में भी कांग्रेस के ढाई साल पर चर्चा, बीजेपी नेता मानते हैं कांग्रेस को सीधी लड़ाई में पटखनी देना मुश्किल
रायपुर 1 सितंबर 2021। ढ़ाई-ढ़ाई साल की खींचतान ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस के भविष्य को दांव पर लगा दिया है। आशंका ये गहरा रही है कि कांग्रेस का आज कहीं कांग्रेस का कल चौपट ना कर दे। जाहिर है इन हालातों पर नजर बीजेपी ने भी लगा रखी है, जिसकी बानगी बीजेपी के चिंतन शिविर में नजर आयी, जहां पहले दिन का वक्त बीजेपी को मजबूत बनाने की चिंता से ज्यादा कांग्रेस के कमजोर होने की चर्चा में गुजरा। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मौजूदा हालात से कांग्रेस संगठन और सत्ता दोनों रूप में कमजोर होगी और इसका फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिलेगा। ठीक उसी तरह, जिस तरह से 2008 और 2013 में मिला था, तब कांग्रेस की हार और बीजेपी की जीत का जिम्मेदार अजीत जोगी कहे जाते थे, जिन पर ये आरोप थे कि कांग्रेस में रहकर भीतरघात का नुकसान पार्टी को उठाना पड़ रहा है।
छत्तीसगढ़ को पहले भी कांग्रेस का अभेद्य गढ़ माना जाता था।
बीजेपी के शीर्ष नेता जानते थे कि जब तक छत्तीसगढ़ रहेगा मध्यप्रदेश में उनकी सरकार बनना मुमकिन नहीं। लिहाजा, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने बिना किसी मांग के छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बना दिया था। वो तो कांग्रेस की गुटीय लड़ाई का नतीजा रहा कि बीजेपी को 15 साल राज करने का मौका मिल गया। भाजपा नेता भी मानते हैं कि आज की तारीख में कांग्रेस देश में सबसे अधिक कहीं मजबूत है तो वो है छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में उसे सीधी लड़ाई में पराजित करना संभव नहीं है। संघ और भाजपा का कैडर मजबूत करने के लाख दावे किए जाए मगर असलियत यह है कि यहां के लोगों में कांग्रेस के प्रति झुकाव ज्यादा है। खासकर, ग्रामीण इलाकों में।
इसका उदाहरण यह है कि एक रुपए किलो चावल देने की ऐतिहासिक घोषणा के बाद भी सत्ताधारी भाजपा की मात्र एक सीट बढ़ पाई थी। जबकि, भाजपा के नेताओं को लगा था कि चावल घोषणा के बाद कम-से-कम 10 सीटों का इजाफा हो जाएगा।
बहरहाल, 2018 के चुनाव में अजीत जोगी के अलग होने का फायदा कांग्रेस को किस तरह से हुआ, वो सबने देखा। 70 में से 69 सीटें कांग्रेस को मिली, जबकि 15 साल की सत्ता वाली बीजेपी पहले 15 और अब तो 14 सीटों पर सिमट गयी थी। छत्तीसगढ़ में बीजेपी की दुर्दशा के बाद उसके अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे थे। कई राजनीतिक पंडितों ने तो कांग्रेस की कार्यशैली, जनसमर्थन और ग्रामीण-कृषि से जुड़ी योजनाओं को देख अगले 15-20 साल तक सत्ता में बने रहने की भविष्यवाणी भी कर दी थी, लेकिन मौजूदा स्थिति ने कांग्रेस को अगर-मगर के भंवर में फंसा दिया है। तो वहीं अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही बीजेपी को एक संजीवनी दे दिया है।
वैसे अगर देखा जाये तो छत्तीसगढ़ कभी बीजेपी का गढ़ रहा ही नहीं, तीन बार लगातार बीजेपी की यहां सत्ता रही, लेकिन हकीकत में सत्ता और विपक्ष का फासला 1 प्रतिशत वोट बैंक के आसपास का रहा। वो भी तब जब बीजेपी को कांग्रेस में रहते हुए अजीत जोगी का भी साथ मिल रहा था। 15 साल के तिलिस्म तोड़ने वाले भूपेश बघेल की ताजपोशी के बाद 2023 के चुनाव में सीधे कांग्रेस से मुकाबला करना बीजेपी के बस की बात लग भी नहीं रही थी, लेकिन अब कांग्रेस के दो फाड़ होते दिखने के बाद बीजेपी की संभावना फिर से जाग गयी है।
बीजेपी को ये नजर आने लगा है कि अगर कांग्रेस में आपसी लड़ाई इसी तरह बनी रही तो कांग्रेस चुनाव में दो खेमों में बंट जायेगी, जिसका बड़ा फायदा बीजेपी को होगा। 2018 के चुनाव परिणाम को देखें तो बस्तर के साथ-साथ सरगुजा और दुर्ग संभाग में भी भी व्यापक समर्थन कांग्रेस को मिला था। कांग्रेस की इस लड़ाई में अगर सरगुजा और दुर्ग-रायपुर बंटा तो बीजेपी को यहां से बढ़त मिल सकता है। हालांकि ये तमाम आंकड़े राजनीति के गर्भ में है, कांग्रेस टूटेगी या नहीं… बंटेगी या नहीं….ये तो फिलहाल अटकलों और कयासों में है, लेकिन ये तो तय है कि इन हालातों के बीच बीजेपी के मन में सत्ता को लेकर अभी से ही लड्डू जरूर फूटने लगे हैं।