ग्लोबल टैलेंट की खींचतान: अब अमेरिका के H-1B वीजा को चीन का 'K Visa' देगा मात; जानिए कब से होगा लागू और क्या है इसमें खास?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के लिए एक लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) की नई फीस लगाने का ऐलान किया। ऐसे में बहुत से लोगों के लिए यूएस में जॉब पाना मुश्किल होने वाला है।

Update: 2025-09-22 14:16 GMT

नई दिल्ली। दुनिया भर के प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका हमेशा से एक सपनों की जगह रही है। खासकर टेक और इंजीनियरिंग सेक्टर में काम करने वाले लोग H-1B वीजा के जरिए अमेरिका जाकर अपना करियर बनाते रहे हैं। लेकिन अब इस रास्ते में एक बड़ी रुकावट आ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के लिए आवेदन करने पर एक लाख डॉलर यानी करीब 88 लाख रुपये की अतिरिक्त फीस लगाने का ऐलान कर दिया है।

इस फैसले से भारतीय टेक वर्कर्स समेत दुनियाभर के युवा प्रोफेशनल्स की चिंता बढ़ा दी है। लेकिन इसी बीच चीन ने एक बड़ा कदम उठाया है। उसने एक नई वीजा कैटेगरी ‘K वीजा’ लॉन्च की है, जो खासतौर पर STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) से जुड़े युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है।

क्या है चीन का K वीजा?

चीन का K वीजा एक नई रणनीति है, जिसके तहत चीन देश और दुनियाभर के टैलेंटेड युवाओं को अपने देश लाना चाहता है। जानकारी के अनुसार, यह वीजा 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा और इसमें कई खास सुविधाएं दी जाएंगी। सबसे बड़ी और ख़ास बात यह है कि, इस वीजा के लिए किसी चीनी कंपनी या संस्था की स्पॉन्सरशिप की जरूरत नहीं होगी। यानी कोई भी योग्य व्यक्ति खुद आवेदन कर सकता है।

इस वीजा के तहत युवा प्रोफेशनल्स चीन में रिसर्च, टीचिंग, स्टार्टअप शुरू करने या किसी प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए आ सकते हैं। उन्हें मल्टीपल एंट्री की सुविधा मिलेगी, वीजा की वैलिडिटी ज्यादा होगी और देश में रहने की अवधि भी लंबी होगी।

कौन कर सकता है आवेदन?

चीन के न्याय मंत्रालय के अनुसार, K वीजा उन युवाओं को मिलेगा जिन्होंने चीन या किसी अन्य देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से STEM में डिग्री ली हो। इसके अलावा, जो लोग किसी रिसर्च या टीचिंग प्रोजेक्ट से जुड़े हैं, वे भी इसके लिए योग्य होंगे। हालांकि, वीजा की पूरी शर्तें अभी जारी नहीं की गई हैं, लेकिन जल्द ही चीनी दूतावासों द्वारा इसकी जानकारी दी जाएगी।

अमेरिका की सख्ती बनी चीन की ताकत

आपको बता दें कि, अमेरिका का H-1B वीजा अब न सिर्फ महंगा हो गया है, बल्कि इसकी प्रक्रिया भी जटिल होती जा रही है। इसमें स्पॉन्सरशिप जरूरी होती है, और वर्कर उस कंपनी से बंधा रहता है जिसने उसे हायर किया है। इसके उलट चीन का K वीजा ज्यादा लचीला है और प्रोफेशनल्स को अपनी मर्जी से काम करने की आज़ादी देता है। ऐसे में माना जा रहा है कि, अमेरिका की सख्ती और चीन की उदारता के बीच ग्लोबल टैलेंट का रुख बदल सकता है। खासकर भारतीय युवा जो अमेरिका जाने का सपना देखते हैं, उनके लिए चीन एक नया विकल्प बनकर उभर रहा है।

क्या बदल जाएगा टैलेंट का नक्शा?

चीन की यह रणनीतिक चाल अब किस तरह से काम करेगी चीन जानता है, वह जानता है कि टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में आगे बढ़ने के लिए ग्लोबल टैलेंट जरूरी है। इसलिए उसने एक ऐसा वीजा पेश किया है जो न सिर्फ आसान है, बल्कि प्रोफेशनल्स को कई फायदे भी देता है। अब यह देखना होगा कि, क्या आज के टैलेंटेड युवा अमेरिका की ओर अपना रख करते है या चीन की चाल कामयाब हो जाती है।

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