Bangladesh Election 2026 : 17 साल बाद लौटे तारिक रहमान के बयानों ने भारत से लेकर ढाका तक मचाया हड़कंप, पढ़े पूरी खबर
बांग्लादेश की राजनीति में 17 साल बाद एक ऐसा मोड़ आया है जिसने न केवल ढाका, बल्कि भारत के गलियारों में भी हलचल तेज कर दी है।
Bangladesh Election 2026 : 17 साल बाद लौटे तारिक रहमान के बयानों ने भारत से लेकर ढाका तक मचाया हड़कंप, पढ़े पूरी खबर
Tariq Rahman Bangladesh News : बांग्लादेश : बांग्लादेश की राजनीति में 17 साल बाद एक ऐसा मोड़ आया है जिसने न केवल ढाका, बल्कि भारत के गलियारों में भी हलचल तेज कर दी है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के एक्टिंग चेयरमैन तारिक रहमान अपनी लंबी वतन वापसी के बाद एक नए अवतार में नजर आ रहे हैं। उनके सपनों के बांग्लादेश और धर्मनिरपेक्षता (Secularism) की बातों ने दक्षिण एशिया की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है।
Tariq Rahman Bangladesh News : 17 साल बाद वतन वापसी और बदला हुआ अंदाज तकरीबन पौने दो दशक तक निर्वासन में रहने के बाद जब तारिक रहमान शनिवार को ढाका पहुंचे, तो उनके तेवर बदले हुए थे। उन्होंने किसी कट्टरपंथी नारे के बजाय समावेशी राजनीति की बात की। उन्होंने हादी की कब्र पर जाकर सजदा किया, तो वहीं बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि नजरूल इस्लाम को भी श्रद्धांजलि दी। उनके भाषणों में अब मार्टिन लूथर किंग और दुनिया भर के बड़े लोकतंत्रवादियों का जिक्र हो रहा है।
Tariq Rahman Bangladesh News : तारिक रहमान अब केवल अपनी पार्टी के पुराने एजेंडे तक सीमित नहीं हैं। वह कट्टरपंथ, इतिहास और आधुनिकता का एक ऐसा मेल पेश कर रहे हैं, जो बांग्लादेश की युवा पीढ़ी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रभावित कर सके। हालांकि, इस पूरी हलचल के बीच एक बात जो सबसे ज्यादा गौर करने वाली है, वह है भारत को लेकर उनकी रहस्यमयी चुप्पी।
भारत के लिए उम्मीद की किरण या नई चुनौती?
मौजूदा समय में बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार और भारत के बीच रिश्तों में एक तरह की कड़वाहट या ठंडापन देखा जा रहा है। शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद वहां जिस तरह से कट्टरपंथी छात्र संगठनों और जमात-ए-इस्लामी का प्रभाव बढ़ा है, उससे भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। खासकर अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा को लेकर दिल्ली लगातार ढाका पर दबाव बना रहा है।
ऐसे में तारिक रहमान की वापसी को पहली नजर में एक उम्मीद की किरण के तौर पर देखा जा रहा है। इसका कारण यह है कि शेख हसीना के जाने के बाद वहां कोई बड़ी सेक्युलर ताकत नहीं बची थी जो कट्टरपंथियों को संतुलित कर सके। हालांकि, ऐतिहासिक रूप से भारत के रिश्ते अवामी लीग के साथ बेहतर रहे हैं और बीएनपी के साथ हमेशा खटास रही है, लेकिन मौजूदा बिगड़े हालातों में तारिक रहमान एक बैलेंसिंग फैक्टर साबित हो सकते हैं।
धर्मनिरपेक्षता का नया वादा: क्या बदल रही है BNP?
ढाका पहुंचते ही तारिक रहमान ने जो सबसे बड़ा बयान दिया, वह धर्मनिरपेक्षता को लेकर था। उन्होंने स्पष्ट कहा कि "बांग्लादेश सभी का है—चाहे वह मुसलमान हो, हिंदू हो, बौद्ध हो या ईसाई।" यह बयान भारत के लिए और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए बहुत राहत देने वाला है।
पुरानी यादों को ताजा करें तो बीएनपी ने कभी जमात-ए-इस्लामी जैसी पाकिस्तान समर्थक पार्टियों के साथ मिलकर सरकार चलाई थी, जिसके कारण भारत के साथ सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दों पर भारी तनाव रहा था। लेकिन अब तारिक रहमान जिस तरह से सेक्युलर पॉलिटिक्स की बात कर रहे हैं, उससे लगता है कि वह अपनी पुरानी छवि को धोने की कोशिश कर रहे हैं। यदि वे वास्तव में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, तो जमीन पर तनाव कम होगा और भारत के साथ बातचीत का एक नया रास्ता खुलेगा।
चुनाव 2026: तारिक रहमान की दावेदारी और भारत का रुख
बांग्लादेश में 12 फरवरी 2026 को चुनाव होने की संभावना है। शुरुआती रुझान बता रहे हैं कि तारिक रहमान इस रेस में सबसे आगे हैं और बीएनपी सत्ता में वापसी कर सकती है। अगर ऐसा होता है, तो भारत के लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि तारिक का 'इंडिया विजन' क्या होगा।
तारिक ने अभी तक भारत के खिलाफ कोई कड़ा बयान नहीं दिया है, बल्कि उनके नेताओं के सुर अब पहले से नरम दिख रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी प्राथमिकता बांग्लादेश फर्स्ट है। इसका मतलब है कि वह देश के हितों को सबसे ऊपर रखेंगे। भारत के लिए असली परीक्षा तब होगी जब पानी के बंटवारे (तीस्ता और गंगा समझौता) जैसे संवेदनशील मुद्दों पर मेज पर चर्चा होगी। गंगा जल समझौते की अवधि अगले साल खत्म हो रही है, और यह एक ऐसा मुद्दा है जो दोनों देशों के रिश्तों की दिशा तय करेगा।
शेख हसीना की मौजूदगी: रिश्तों में सबसे बड़ी बाधा?
एक और बड़ा सवाल जो भविष्य के रिश्तों पर छाया हुआ है, वह है पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत में मौजूदगी। बीएनपी और कट्टरपंथी ताकतें लगातार शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर रही हैं। यदि तारिक रहमान सत्ता में आते हैं, तो क्या वह भारत से शेख हसीना को वापस भेजने का दबाव बनाएंगे? यह एक ऐसा पेचीदा मुद्दा है जो भारत और बांग्लादेश की नई दोस्ती के रास्ते में कांटा बन सकता है।
संतुलन की राजनीति की ओर बांग्लादेश
शेख हसीना के पतन के बाद बांग्लादेश में जो शून्य पैदा हुआ था, उसे कट्टरपंथी भरने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन तारिक रहमान की वापसी ने उस शून्य को एक राजनीतिक विकल्प दे दिया है। उनके बयानों से लग रहा है कि वे बांग्लादेश को एक आधुनिक और लोकतांत्रिक देश के रूप में पेश करना चाहते हैं।
भारत के लिए फिलहाल जस्ट वेट एंड वॉच की स्थिति है। तारिक रहमान की धर्मनिरपेक्षता की बातें अगर धरातल पर उतरती हैं और वे कट्टरपंथी ताकतों को काबू में रखते हैं, तो यकीनन भारत के साथ उनके रिश्ते एक नई और बेहतर शुरुआत की ओर बढ़ सकते हैं। लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि चुनाव के बाद सत्ता की कुर्सी पर बैठकर वे अपने इन वादों को कितना याद रखते हैं।