Vivah Panchami Kyu Nahi Karte Shadi: विवाह पंचमी का धार्मिक महत्व इस दिन क्यों नहीं करते शादी,जानिए कैसे हुआ था राम सीता का मिलन

Vivah Panchami Par Kyu Nahi Karte Shadi: इस दिन है विवाह पंचमी, जानिए कैसे कब हुआ था राम सीता का मिलन।

Update: 2023-12-04 04:48 GMT

Vivah Panchami Par Kyu Nahi Karte Shadi: विवाह पंचमी पर क्यों नहीं करते शादी:  विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और माता सीता के विवाह की वर्षगांठ कोमनाया जाता है। कहते हैं कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था, इसलिए इस तिथि को विवाह पंचमी भी कहा जाता है। हर साल विवाह पंचमी के दिन भगवान राम ओर माता सीता की वर्षगांठ मनाई जाती है। इस साल विवाह पंचमी मार्गशीर्ष में 17 सितंबर, 2023 को रविवार को है।

मार्गशीर्ष पंचमी पर  विशेष आयोजन और पूजन और अनुष्ठान भी किए जाते हैं। यह दिन भगवान राम और माता सीता की उपासना के लिए बड़ा ही शुभ माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह दिन शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यों को करने के लिए अच्छा नहीं माना जाता है

विवाह पंचमी का शुभ मुहूर्त

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 16 दिसंबर रात 8 बजे से शुरू होकर अगले दिन 17 दिसंबर की शाम 5 बजकर 33 मिनट पर समाप्त होगी।
 उदया तिथि के अनुसार, 17 दिसंबर, 2023 को ही विवाह पंचमी मनाई जाएगी।

इस दिन पूजा के लिए तीन शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। पूजा के लिए सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 8:24 से लेकर दोपहर 12:01 तक है
। दोपहर का शुभ मुहूर्त 1:34 से लेकर 2:52 तक है. इसके बाद शाम को शुभ मुहूर्त 05:02 से लेकर रात 10:34 तक है।

विवाह पंचमी पर क्यों नहीं करते शादी?

देवउठनी एकादशी के बाद से ही सभी मांगलिक और शुभ कार्यों पर लगी पाबंदी समाप्त हो जाती हैं और इसके बाद लोग शुभ मुहूर्त देखकर विवाह कर सकते हैं, हालांकि इस दौरान विवाह पंचमी भी पड़ती है, जिसमें शादी करना अशुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, विवाह पंचमी के दिन शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यों को करना अच्छा नहीं माना जाता है।

हिंदू धर्म में विवाह पंचमी को बेहद ही शुभ माना जाता है। क्योंकि इस दि मर्यादा पुरुषोत्तम राम और माता-सीता के विवाह का दिन है, लेकिन भगवान श्रीराम को मिले 14 साल के वनवास और उसके बाद हुई कई घटनाओं के बाद माता सीता को अपने जीवन में काफी कष्ट सहने पड़े थे। इसलिए विवाह पंचमी के दिन शादियां नहीं की जाती हैं।

ऐसे हुआ था श्रीराम सीता का मिलन

धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह किया था। अतः इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसको विवाह पंचमी भी कहते हैं। भगवान राम चेतना के प्रतीक हैं और माता सीता प्रकृति शक्ति की, अतः चेतना और प्रकृति का मिलन होने से यह दिन काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इस बार यह पर्व आठ दिसंबर को है। इस उत्सव को सबसे अधिक नेपाल में मनाया जाता है क्योंकि माता सीता जनक की पुत्री थीं, जो कि मिथिला नरेश थे और मिथिला नेपाल का हिस्सा है। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं कि श्रीरामचरितमानस के अनुसार श्रीराम ने सीता को पहली बार कहां और कब देखा था तथा श्रीराम-सीता विवाह का संपूर्ण प्रसंग, जो इस प्रकार है…

जब श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुंचे तो राजा जनक सभी को आदरपूर्वक अपने साथ महल लेकर आए। अगले दिन सुबह जब श्रीराम और लक्ष्मण फूल लेने बागीचे में गए तो वहीं उन्होंने देवी सीता को देखा। अगले दिन राजा जनक के बुलावे पर ऋषि विश्वामित्र, श्रीराम और लक्ष्मण सीता स्वयंवर में गए।

जब श्रीराम सीता स्वयंवर में पहुंचे तो जो राक्षस राजा का वेष बनाकर वहां आए थे, उन्हें श्रीराम के रूप में अपना काल नजर आने लगा। इसके बाद शर्त के अनुसार वहां उपस्थित सभी राजाओं ने शिव धनुष उठाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।

अंत में श्रीराम शिव धनुष को उठाने गए। श्रीराम ने बड़ी फुर्ती से धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा बांधते समय वह टूट गया। सीता ने वरमाला श्रीराम के गले में डाल दी। उसी समय वहां परशुराम आ गए। उन्होंने जब शिवजी का धनुष टूटा देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गए और राजा जनक से पूछा कि ये किसने किया है, मगर भय के कारण राजा जनक कुछ बोल नहीं पाए।

परशुराम ने जब श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु की छवि देखी तो उन्होंने अपना विष्णु धनुष श्रीराम को देकर उसे खींचने के लिए कहा। तभी परशुराम ने देखा कि वह धनुष स्वयं श्रीराम के हाथों में चला गया। यह देख कर उनके मन का संदेह दूर हो गया और वे तप के लिए वन में चले गए।

सूचना मिलते ही राजा दशरथ भरत, शत्रुघ्न व अपने मंत्रियों के साथ जनकपुरी आ गए। ग्रह, तिथि, नक्षत्र योग आदि देखकर ब्रह्माजी ने उस पर विचार किया और वह लग्न-पत्रिका नारदजी के हाथों राजा जनक को पहुंचाई। शुभ मुहूर्त में श्रीराम की बारात आ गई। श्रीराम व सीता का विवाह संपन्न होने पर राजा जनक और दशरथ बहुत प्रसन्न हुए।

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