vishwakarma puja 2025 : प्रजापति ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र हैं भगवान विश्वकर्माजी... इंद्रपुरी, लंका, द्वारिका, हस्तिनापुर, जगन्नाथपुरी के साथ सुदर्शन चक्र, शिव जी का त्रिशूल, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज भी है इनका निर्माण

vishwakarma puja 2025 : ऐसी मान्यता है कि जब ब्रह्राा जी ने सृष्टि की रचना की तो भवनों और महलों के निर्माण का कार्य इन्हें सौपा था।

Update: 2025-09-17 09:22 GMT

vishwakarma puja 2025 : आज विश्वकर्मा जयंती है. हिंदू धर्म में विश्वकर्मा जयंती पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि जब ब्रह्राा जी ने सृष्टि की रचना की तो भवनों और महलों के निर्माण का कार्य इन्हें सौपा था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के सबसे बड़े और अद्भुत शिल्पकार और प्रजापति ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र भगवान विश्वकर्माजी का प्राकट्य दिवस हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाता है। विश्वकर्मा जी को दुनिया का पहले शिल्पकार, वास्तुकार और इंजीनियर थे। 


पौराणिक कथाओं के अनुसार विश्वकर्माजी ने इंद्रपुरी, त्रेता में लंका, द्वापर में द्वारिका और हस्तिनापुर, कलयुग में जगन्नाथपुरी आदि का निर्माण किया था। इसके अलावा श्रीहरि भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र, शिव जी का त्रिशूल, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज को भी भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था। विश्वकर्मा जयंती पर विशेष तौर पर निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है।




 इसकी होती है पूजा 


इस दिन का विशेष महत्व फैक्ट्री, कारखानों और शिल्पकारों के लिए होता है, जिसमें देवताओं के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने का महत्व होता है। इस दिन प्रतिष्ठानों में विशेष रूप भगवान विश्वकर्मा की पूजा और आराधना होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका और भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मी ने की किया था।


कथा




 


 सूतजी बोले, प्राचीन समय की बात है, मुनि विश्वमित्र के बुलावे पर मुनि और संन्‍यासी लोग एक स्थान पर एकत्र हुए सभा करने के लिए। सभा में, मुनि विश्वमित्र ने सभी को संबोधित किया। मुनि विश्वमित्र ने कहा कि, हे मुनियों आश्रमों में दुष्ट राक्षस यज्ञ करने वाले हमारे लोगों को अपना भोजन बना लेते हैं। यज्ञों को नष्ट कर देते हैं। जिसके कारण हमारे पूजा-पाठ, ध्यान आदि में परेशानी हो रही है। इसलिए अब हमें तत्काल् उनके कुकृत्यों से बचने का कोई उपाय अवश्य करना चाहिए।

मुनि विश्वमित्र की बातों को सुनकर वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि एक बार पहले भी ऋषि-मुनियों पर इस प्रकार का संकट आया था। उस समय हम् सब मिलकर ब्रह्माजी के पास गए थे। ब्रह्माजी ने ऋषि मुनियों को संकट से छुटकारा पाने के लिए उपाय बताया था। ऋषि लोगों ने ध्यानपूर्वक वशिष्ठ मुनि की बातों को सुना और कहने लगे कि वशिष्ठ मुनि ने ठीक ही कहा है, हमें ब्रह्मदेव की ही शरण में जाना जाना चाहिए।

ऐसा सुन सब ऋषि-मुनियों ने स्वर्ग को प्रस्थान किया। मुनियों के इस कष्ट को सुनकर ब्रह्माजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। ब्रह्माजी कहने लगे कि, हे मुनियों राक्षसों से तो स्वर्ग में रहने वाले देवता को भी भय लगता रहता है। फिर मनुष्यों का तो कहना ही क्या जो बुढ़ापे और मृत्यु के दुखों में लिप्त रहते हैं। उन राक्षसों को नष्ट करने में श्री विश्वकर्मा समर्थ हैं, आप लोग श्रीविश्वकर्मा के शरण में जाएं।

इस समय पृथ्वी पर अग्नि देवता के पुत्र मुनि अगिंरा यज्ञों में श्रेष्ठ पुरोहित हैं और जो श्री विश्वकर्मा के भक्त हैं। वही आपके दुखों को दूर कर सकते हैं, इसलिए हे मुनियों, आप उन्हीं के पास जाएं। सूतजी बोले, ब्रह्माजी के कथन के अनुसार मुनि लोग अगिंरा ऋषि के पास गए। मुनियों की बातों को सुनकर अगिंरा ऋषि ने कहा, हे मुनियों आप लोग क्यों व्यर्थ में इधर-उधर मारे-मारे फिर रहे हैं। दुखों दूर करने में विश्वकर्मा भगवान के अतिरिक्त और कोई भी समर्थ नहीं है।

अमावस्या के दिन, आप लोग अपने साधारण कर्मों को रोककर भक्ति पूर्वक श्रीविश्वकर्मा कथा सुनें और उनकी उपासना करें। आपके सारे कष्टों को विश्वकर्मा भगवान अवश्य दूर करेंगे। महर्षि अगिंरा के बातों को सुनकर सभी लोग अपने-अपने आश्रमों को चले गए। तत्प्रश्चात् अमावस्या के दिन, मुनियों ने यज्ञ किया। यज्ञ में विश्वकर्मा भगवान का पूजन किया। श्रीविश्वकर्मा कथा को सुना। जिसका परिणाम यह हुआ कि सारे राक्षस भस्म हो गए। यज्ञ विघ्नों से रहित हो गया, उनके सारे कष्ट दूर हो गए। जो मनुष्य भक्ति-भाव से विश्वकर्मा भगवान की पूजा करता है, वह सुखों को प्राप्त करता हुआ संसार में बड़े पद को प्राप्त करता है।

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