Sarveshvari Samooh: सर्वेश्वरी समूह में साधु के साथ सैनिक धर्म की मिलती है प्रेरणा, सैनिकों के लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि है...

Sarveshvari Samooh: सर्वेश्वरी समूह में साधु के साथ सैनिक धर्म की मिलती है प्रेरणा, सैनिकों के लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि है...

Update: 2024-07-20 14:33 GMT

डॉ० बामदेव पाण्डेय

सामान्यतया सैनिक शब्द का अर्थ किसी राष्ट्र की सेनाओं में सेवारत जवानों के लिए किया जाता है जो राष्ट्र-रक्षा की सपथ लिए रहते हैं, साथ ही कहीं-कहीं इसका प्रयोग किसी संगठन से जुड़े उन अनुशासित सदस्यों के लिए भी किया जाता है जो अपने संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति में सेना के जवानों जैसे ही कर्तव्यनिष्ठा से समर्पित रहते हैं। श्री सर्वेश्वरी समूह के मूल उद्देश्यों में प्रथम उद्देश्य राष्ट्रहित को ही सर्वोपरि समझना है। इसके सदस्य, अनुयायी या उपासक धर्म, मजहब, जात-पात व ऊँच-नीच से परे रहकर रूढ़िवादिता, अंध-विश्वास, नशाखोरी, तिलक-दहेज इत्यादि कुरीतियों के सम्पूर्ण उन्मूलन हेतु प्रयासरत रहकर राष्ट्र-सेवा उसी प्रकार करते हैं जैसे एक सैनिक अपने राष्ट्र-धर्म का पालन करता है। श्री सर्वेश्वरी समूह के मुख्यालय- अवधूत भगवन राम कुष्ठ सेवा आश्रम, पड़ाव, वाराणसी के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही एक सन्देश पर प्रथम दृष्टि पड़ती है, जिसमें लिखा है कि ‘‘यह सर्वेश्वरी समूह के सैनिकों की मीटिंग है। हर छावनी से सैनिक यहाँ आते हैं और अपनी मीटिंग करते हैं। यहाँ वह सैनिक रहेंगे जो कुप्रथा-कुव्यवस्था के बारे में, अज्ञान और नशाखोरी के बारे में लड़ाई लड़ रहे हैं। बहुत-से ऐसे गलत काम हैं जिसके विरोध में लड़ रहे हैं न कि यहाँ कोई खेल तमाशा होता है”।

सैनिक-गुणों का महत्व समझाते हुए परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु ने कहा है कि ‘‘समूह-सदस्यों को साधु और सैनिक धर्म का पालन करना चाहिए। यदि हम अपने राम की तरह सैनिक धर्म के गौरव को नहीं समझेंगे तो अपनी माताओं, बहनों, अपने परिवार और गाँव की महिलाओं की इज्जत नहीं बचा पायेंगे। ऐसी साधुता समाज और राष्ट्र के लिए कोई महत्व नहीं रखती। जिस समाज और राष्ट्र से हम ईश्वर तक की और अपनी भी सेवा करने में समर्थ होते हैं उसकी सुरक्षा के लिए साधु के साथ-साथ सैनिक धर्म अपनाना महत्वपूर्ण है। इसके लिए हमें बराबर सतर्क रहना चाहिए”।

भारतीय समाज में आदिकाल से ही संत-महात्मा तथा औघड़-अघोरेश्वर के आदर-सम्मान की एक अनूठी परम्परा रही है। क्योंकि समाज को एकजुट रखने में, उसे सच्ची राह दिखाने में इन्हीं की भूमिका को सर्वोच्च मान्यता थी, इनके निरादर के दुष्परिणामों से शासक भी काँपते थे। लेकिन पिछली कुछ सदियों विशेषकर मुगल और अंग्रेजी शासन-काल से समाज के इस सर्वाधिक सम्मानित और पूजनीय घटक का उत्तरोत्तर निरादर होने लगा और विगत् कुछ दशकों में लोकतंत्र के सत्तानायकों की दुर्बुद्धि और अभिमान तो इनके सामाजिक सुदृढ़ीकरण के महत्व को तिरस्कृत ही कर दिया। जनमत के बूते सत्ता के पक्ष-विपक्ष में उठने-बैठने वाले ये खद्दरधारी स्वयं को ही जनता का सर्वाधिक हितैषी होने का दम्भ भरकर जनाधिकारों की अवहेलना करने लगे हैं। यह सर्वविदित है कि देश या समाज में शिक्षा, चिकित्सा, यातायात, सुरक्षा तथा रोजगार इत्यादि की व्यवस्था सरकारों का ही कार्य है। लेकिन आज कोई सरकार यदि जनहित का कुछ कार्य करती है तो उससे सैकड़ों गुना अधिक जनता के सामने स्वयं का महिमामंडन अवश्य करती है। दुर्भाग्यवश भारतीय जनमानस का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस महिमामंडन में सहभागी होकर गौरवान्वित अनुभव करता है। ऐसे गुमराह करने और होने वाले लोगों से एक समृद्धशाली राष्ट्र का निर्माण कदापि नहीं हो सकता। हमें अपनी अतीत की गलतियों से सीख लेना होगा।

विशुद्ध सामाजिक-आध्यात्मिक संस्था सर्वेश्वरी समूह अपने सैनिकों के अनमोल सहयोग से देश के विभिन्न प्रान्तों में स्थापित अनेकों आश्रमों व शाखाओं के माध्यम से लोककल्याणकारी कार्यों का अनवरत सम्पादन करती रहती है। सर्वेश्वरी कोई अलग प्रकार की देवी नहीं बल्कि भारतमाता ही हैं। हम उनकी कृपा के तभी पात्र होंगे जब साधु के साथ-साथ सैनिक गुणों से भी सुसज्जित होंगे। इसी के महत्व पर बल देते हुए परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु ने कहा है कि ‘‘प्रियदर्शी! अपने देश में देशहित, राष्ट्रहित और समाजहित के निमित्त साधु और सैनिक विशिष्ट सम्मान के पात्र माने जाते हैं। उसी प्रकार देशहित, सामाजहित, आश्रम और आश्रम के आश्रितों के हित के लिए साधुओं तथा सैनिकों के गुणों को सम्मान और आदर देना चाहिए। हमारी प्राचीन जनश्रुतियाँ हमें यही बताती हैं, यही सीख देती हैं। इस देश के इतिहास को देखकर भी तुम इसकी आवश्यकता समझ सकते हो। अपनी क्रूर प्रकृति के कारण आततायियों ने, अल्पबुद्धि-अल्पज्ञान वालों ने निष्ठुरता, निर्ममता और बर्बरता के साथ तक्षशिला से लेकर नालंदा तक संचित हमारी सभ्यता और संस्कृति की धरोहर के केंद्रों में आग लगाकर हमारे ऋषियों की पवित्र कृतियों को जला दिया। हमारे बहुतेरे देवालयों, सतियों के चबूतरों, ऋषियों के आश्रमों को क्षतिग्रस्त कर दिया, नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।

अतः अपने सामूहिक और सार्वभौमिक हित में हमें इन दोनों प्रकार के गुणों को जानना और समझना होगा, उन्हें आदर देना होगा, उन्हें अंगीकार करना होगा। पूछ सकते हो किन गुणों को? हमें साधु और सैनिक दोनों के गुणों को स्वीकार कर आत्मसात् करना होगा। ऐसा होने पर ही हम आर्य-सत्य को, आर्यों की पुण्य भूमि को सभी सम्भव सुरक्षा प्रदान कर, कल्याण का अनुशासन स्थापित कर, अघोरेश्वर के अनुशासन में अनुशासित जीवन जीने का गौरव प्राप्त कर सकते हैं। यही कल्याण का अनुशासन अघोरेश्वर के अनुशासन के नाम से जाना जाता है। “संत का हाल भगवंत न जाने”। आज श्री सर्वेश्वरी समूह अपने वर्तमान अध्यक्ष पूज्यपाद बाबा औघड़ गुरुपद संभव राम जी के निर्देशन में मानवता के रक्षार्थ हर प्रकार के सामाजिक दुर्बलताओं के उन्मूलन के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अनुकरणीय कार्य कर रहा है।

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