Roza Rules : आज से शुरू हो गया रमजान का महीना, जानिए रोजा के नियम और इन कामों से रहें दूर

Roza Rules :ईद से पहले मुसलमान लोग 30 दिन तक रोजा रखते हैं। जिसे रमजान का पाक महीना कहा जाता है। जानते हैं इसके नियम...

Update: 2024-03-11 12:45 GMT

Roza Rules :इस साल माह-ए-रमजान की शुरुआत सोमवार, 11 मार्च 2024 से होगी। रमजान का महीना मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बहुत ही पवित्र और खास महीना होता है। रमजान इस्लामिक कैलेंडर का 9वां महीना होता है। शाबान यानी इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने के आखिरी दिन चांद का दीदार होने के बाद रमजान महीने की शुरुआत होती है और इसके बाद मुसलमान 29 या 30 दिनों का रोजा रखते हैं। मुस्लिम धर्म का प्रमुख त्योहार ईद होता है। ईद से पहले मुसलमान लोग 30 दिन तक रोजा रखते हैं। जिसे रमजान का पाक महीना कहा जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान के पूरे महीने अल्लाह की इबादत करते हुए 30 दिन तक प्रतिदिन रोजा रखते हैं।

रोजा के दौरान इन कामों से रहें दूर

सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रोजा का पालन करें और इन दौरान कुछ भी खाने-पीने से परहेज करें।यदि कोई दिन में रोजे के दौरान खा या पी लेता है, तो रोजा खत्म हो जाएगा। लेकिन यदि कोई भूलवश रोजा रखते हुए खा या पी लेता तो रोजा सही माना जाएगा।

यदि कोई व्यक्ति उल्टी की तरह महसूस करता है, तो रोजा जारी रख सकता है। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति रोजे के दौरान उल्टी करना है तो रोजा टूट जाएगा।

यदि कोई रोजा रखते हुए संभोग करता है तो उसका रोजा नहीं रहेगा। उसे कफ्फराह करना होगा। इसके लिए, उसे साठ गरीब लोगों को खाना खिलाना होगा।

केवल भूखा-प्यासा रहना ही रोजा नहीं है, बल्कि आंख, कान और जीभ का भी रोजा होता है. यानी रोजा के दौरान बुरा देखने, सुनने और बोलने से तौबा करें।

रोजा रखने को दौरान शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए और ना ही बुरी सोच रखनी चाहिए. इससे रोजा टूट सकता है।

रोजा के दौरान झूठ बोलने, बदनामी करने, झूठी गवाही देने, पीठ पीछे बुराई करने, झूठी कसम खाने जैसे काम भी न करें।

इस्लाम के 5  नियम

इस्लाम धर्म  में फर्ज या मूलभूत सिद्धांतों का जिक्र किया गया है। दुनियाभर के हर मुसलामन को ताउम्र इन सिद्धांतों का पालन और अनुसरण करना अनिवार्य होता है।  इस्लाम धर्म के इन 5 स्तंभ को अरकान-ए-इस्लाम या अरकान-ए-दीन भी कहा जाता है।  इस्लाम के ये 5 स्तंभ या फर्ज हैं- कलमा (Kalma), नमाज (Namaz), रोजा (Roza), जकात (Zakat) और हज (Hajj)

इस्लाम का तीसरा स्तंभ है रोजा

इस्लाम में रमजान को पाक यानी पवित्र महीना माना गया है और इस माह हर दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त कर रोजा यानी उपवास रखने का हुक्म है। रोजा को इस्लाम तीसरा स्तंभ माना गया है। रोजा के दौरान मुसलमान दिनभर उपवास रखते हैं और कुछ भी खाते-पीते नहीं है, लेकिन रोजा का सही अर्थ केवल सुबह से शाम तक भूखे रहना मात्र नहीं हैं। बल्कि रोजा रखने के दौरान कई कठोर नियमों का पालन भी करना पड़ता है। कुरान के अनुसार रोजा वह जरिया है जिससे आप गरीब और भूखों का दर्द समझ सकते हैं। इसलिए रमजान महीने में रोजा रखने के साथ ही दान करना भी जरूरी होता है। साथ ही रोजा दुनियादारी के बंधनों से ध्यान हटाकर अल्लाह से नजदीकियां महसूस करना भी है।

इस्लाम मानता है कि धरती पर मानव के अलावा ईश्वर के फरिश्ते यानी अदृश्य देवदूत भी होते हैं, जो ईश्वर के आदेशों का पालन करते हैं और उनका काम करते हैं।  हालांकि, इसे ईश्वर की तरह पूजनीय या ईश्वर की तरह पॉवरफुल नहीं माना जाता है। फरिश्ते पैगंबरों के पास ईश्वर का संदेश लेकर आते थे। 

रमजान करीब आते ही लोग रोजे को लेकर सावधानियां रहे हैं। कोई इस्लामिक किताबें खंगालने का प्रयास कर रहा है। कई ऐसे हैं जो सीधे आलिम से संपर्क कर अपनी जिज्ञासा शांत करने में लगे हैं। इसी क्रम में मुस्लिम नाउ भी अपने स्तर पर कोशिश में है कि रमजान और रोजे से संबंधित सवालों के जवाब यहां आपको दिए जाएं। 

रमजान को इस्लामी संस्कृति में एक पवित्र त्योहार माना जाता है। रमजान का महीना इस धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत अधिक कीमती है। इस्लाम के मानने वालों को विश्वास है कि रोजे से वे अपने पापों यानी गुनाहों को कम कर सकते हैं। रोजा इस्लाम के मूल स्तंभों से एक है और यह अधिकांश मुसलमान के लिए अनिवार्य है। इस्लाम के मार्ग का पालन करने के लिए इसका यानी रमजान का पालन करना जरूरी है।



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