Feeding Crows for the Shradh : कौवा को अर्पित भोजन मिलता है पितरों को, इनके बिना श्राद्ध कर्म अधूरा

Feeding Crows for the Shradh : श्राद्ध पक्ष में कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है। इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है।

Update: 2024-09-15 17:19 GMT

Feeding Crows for the Shradh :   श्राद्ध पक्ष में कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है।  इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है। एक कथा है कि, इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था।

त्रेता युग की घटना कुछ इस प्रकार है कि, जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आँख को क्षतिगग्रस्त कर दिया था। जयंत ने अपने कृत्य के लिये क्षमा मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है।

भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का  समय श्राद्ध एवं पितृ पक्ष कहलाता है। श्राद्ध पक्ष पितरों को प्रसन्न  करने का एक उत्सव है। इन 16 दिनों में (श्राद्ध पक्ष) पितरों के अलावा देव, गाय, श्वान, कौए और चींटी को भोजन खिलाने की परंपरा है। गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है इसलिए गाय का महत्व है। वहीं पितर पक्ष में  श्वान और कौए पितर का रूप होते हैं इसलिए उन्हें भोजन खिलाने का विधान है। 




श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कई परम्पराएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। ऐसी ही एक परम्परा है, जिसमें कौवों को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन  खिलाते हैं। पितृपक्ष में कौओं को भोजन देने का विशेष महत्व होता है। कौआ यमराज का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कौआ  श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर लेता है, तो पितर प्रसन्न और तृप्त माने जाते  हैं।

भारत के अलावा दूसरे देशों की प्राचीन सभ्यताओं में भी  कौवे को महत्व दिया गया है। गरुड़ पुराण में बताया है कि कौवे यमराज के  संदेश वाहक होते हैं।  ग्रीक माइथोलॉजी में रैवन (एक प्रकार का कौवा) को  अच्छे भाग्य का संकेत माना गया है। वहीं, नोर्स माइथोलॉजी में दो रैवन हगिन  और मुनिन की कहानी मिलती है, जिन्हें ईश्वर के प्रति उत्साह का प्रतीक  बताया गया है।

पितृ दूत है कौवा




शास्त्रों में वर्णित है कि कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है। यदि पितरों के लिए बनाए गए भोजन को यह पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। कौआ सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर  यदि वह कांव-कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है।

धर्म शास्त्र श्राद्ध परिजात में वर्णन है कि पितृपक्ष में गौ ग्रास के साथ काक बलि प्रदान करने की मान्यता है। इसके बिना तर्पण अधूरा है। मृत्यु  लोक के प्राणी द्वारा काक बलि के तौर पर कौओं को दिया गया भोजन पितरों को  प्राप्त होता है। कौआ यमस्वरूप है। इसे देव पुत्र कहा जाता है। रामायण में  काग भुसुंडी का वर्णन मिलता है।

आचार्य ने रामायण में आए प्रसंग का  हवाला देते बताया कि त्रेतायुग युग में इन्द्र के पुत्र जयन्त ने ही सबसे  पहले कौए का रूप धारण किया था। श्रीराम एवं सीता पंचवटी में एक वृक्ष के  नीचे बैठे थे। श्रीराम सीता माता के बालों में फूलों की वेणी लगा रहे थे।  यह दृश्य इंद्रपुत्र जयंत देख नहीं सके। ईष्यार्वश उन्होंने कौए का रूप  धारण किया एवं सीताजी के पैर पर चोंच मारी। राम ने उसे सजा देने के लिए  तिनके का बाण चलाकर एक आंख फोड़ दी। उसने अपने किए की माफी मांगी, तब राम ने  उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परम्परा चली आ रही है।

 

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