Karwa Chauth 2024: 20 अक्टूबर को करवा चौथ, जानें कथा, मुहूर्त, मंत्र और पूजन विधि

करवा चौथ पति-पत्नी के आपसी प्रेम और विश्वास का त्योहार है। पत्नी इस व्रत को रखकर अपना स्नेह प्रदर्शित करती है और अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती है। महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के साथ इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ रखती हैं। इस साल 20 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत है।

Update: 2024-10-14 06:09 GMT

रायपुर, एनपीजी न्यूज। करवा चौथ पति-पत्नी के आपसी प्रेम और विश्वास का त्योहार है। पत्नी इस व्रत को रखकर अपना स्नेह प्रदर्शित करती है और अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती है। महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के साथ इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ रखती हैं। इस साल 20 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत है।

करवा चौथ पर भद्रा का साया

वहीं इस बार करवा चौथ पर भद्रा का साया रहेगा। हालांकि इसका समय 21 मिनट तक रहेगा। सुबह 6 बजकर 25 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 46 मिनट तक भद्रा रहेगा। हालांकि इस दौरान करवा माता की पूजा और मंत्र जाप से इसका नेगेटिव असर खत्म हो जाएगा।

20 अक्टूबर को है करवा चौथ

हिन्दू पंचाग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 20 अक्टूबर 2024 को सुबह 6 बजकर 46 मिनट पर होगी, जिसका समापन 21 अक्टूबर 2024 को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर होगा। इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर की शाम 5 बजकर 46 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 2 मिनट तक है।

निर्जला व्रत रखती हैं महिलाएं

करवा चौथ में सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद की पूजा करने के बाद पति के हाथों पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं। इस व्रत को माता पार्वती ने भी भगवान शिव के लिए रखा था।

करवा चौथ के दिन पूजा का मुहूर्त

  • चतुर्थी तिथि की शुरुआत- अक्टूबर 20 को 06:46 बजे
  • चतुर्थी तिथि समाप्त- अक्टूबर 21 को 04:16 बजे
  • करवा चौथ व्रत का समय- सुबह 6 बजकर 25 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 54 मिनट तक
  • करवा चौथ पूजा मुहूर्त- शाम 05:46 बजे से शाम 07:02 बजे तक
  • करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय का समय- शाम 07:54 बजे

करवा चौथ की पूजा विधि

  • करवा चौथ के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि वगैरह से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें और व्रत का संकल्प करें।
  • इसके बाद घर की दीवारों पर गेरु से करवा का चित्र बनाएं।
  • सोलह श्रृंगार कर पूजा स्थल पर माता पार्वती, भगवान शिव, गणेशजी, कार्तिकेय की तस्वीर को रखें।
  • एक करवा में जल भरकर पूजा के स्थान पर रखें।
  • इसके बाद सूर्य को अर्घ्य दें और चौथ माता की कहानी सुनें।
  • शाम की पूजा के लिए थाली तैयार कर लें।
  • एक चौकी पर करवा माता की तस्वीर रखें।
  • उनके सामने दीया जलाएं।
  • पार्वती, चौथ माता और पूरे शिव परिवार की पूजा करें।
  • करवा चौथ की कथा सुनें और पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करें।
  • इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें और छलनी की सतह पर जलता हुआ दीया रखकर चंद्र दर्शन करें।
  • फिर इसी छलनी से पति का चेहरा देखें।
  • चंद्रदेव से अपनी पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करें।
  • फिर पति के हाथों से पानी पीकर व्रत को खोलें।
  • करवा को सास या किसी सुहागिन स्त्री को दें और उनके पैर छुएं।

करवा चौथ की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन उनके पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया। मगरमच्छ देवी करवा के पति को नदी में खींचने लगा। वे तुरंत अपनी पत्नी करवा को पुकारने लगे। इधर पति की आवाज सुनकर तुरंत करवा दौड़कर आईं। उन्होंने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छ कच्चे धागे में ऐसा बंधा कि हिल तक नहीं पा रहा था। इधर करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राणों पर संकट था।

यमराज ने करवा माता के पति को दिया जीवनदान

इस पर देवी करवा ने तुरंत यमराज को पुकारा। करवा ने यमराज से मगरमच्छ के लिए मृत्युदंड और अपने पति का जीवन मांगा। इस पर यमराज ने असमर्थता जताते हुए कहा कि मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा कि अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।

सावित्री के सतीत्व ने भी उनके पति की रक्षा की

करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रखा था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग लंबे समय तक बना रहेगा।

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