Ganga Dussehra 2024 on 16th June : गंगा दशहरा 16 जून को, आइए जानें गंगा जी के बारे में सब कुछ

मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि के द‍िन माना जाता है। पुराणों में देवी गंगा के जन्म कई कथाएं मिलती हैं। साथ ही इनमें गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का रहस्य भी बताया गया है।

Update: 2024-06-12 11:21 GMT

हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का विशेष महत्व है. पौराणिक मान्यता है कि जीवनदायिनी गंगा जी आज ही के दिन धरती पर अवतरित हुई थी और राजा भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया था. यही वजह है कि गंगा दशहरा बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस साल गंगा दशहरा 16 जून 2024 को है. इस दिन दशमी तिथि सुबह 02.32 पर शुरू होकर 17 जून को सुबह 04.43 तक रहेगी.

मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि के द‍िन माना जाता है। पुराणों में देवी गंगा के जन्म कई कथाएं मिलती हैं। साथ ही इनमें गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का रहस्य भी बताया गया है।

यही नहीं देवी गंगा के मनुष्‍य रूप में प्रेम की भी अत्‍यंत रोचक कथा म‍िलती है। जो यह दर्शाती है कि गंगा की अव‍िरल धार न केवल तन-मन को पव‍ित्र करती है बल्कि यह प्रेम का संचार भी करती है। तो आइए जानते हैं क्‍या है मां गंगा के जन्‍म की कथा और कैसे हुआ इनका मनुष्य से विवाह?




श्रीहर‍ि से जानें देवी गंगा का नाता

वामन पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में अपना एक पैर आकाश की ओर उठाया तो तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के चरण धोकर जल को अपने कमंडल में भर लिया। इस जल के तेज से ब्रह्मा जी के कमंडल में गंगा का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी ने गंगा हिमालय को सौंप दिया इस तरह देवी पार्वती और गंगा दोनों बहन हुई। इसी में एक कथा यह भी है कि वामन के पैर के चोट से आकाश में छेद हो गया और तीन धारा फूट पड़ी। एक धारा पृथ्वी पर, एक स्वर्ग में और एक पाताल में चली गई और गंगा त्रिपथगा कहलाईं।

मां गंगा को जब हुआ भोलेशंकर से प्रेम

शिव पुराण में ऐसी कथा मिलती है कि गंगा भी देवी पार्वती की तरह भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी। देवी पार्वती नहीं चाहती थी कि गंगा उनकी सौतन बने। फिर भी गंगा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें अपने साथ रखने का वरदान दे दिया। इसी वरदान के कारण जब गंगा धरती पर अपने पूरे वेग के साथ उतरी तो जल प्रलय से धरती को बचाने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में लपेट लेते हैं, इसतरह गंगा को भगवान शिव का साथ मिल जाता है।

यहां गंगा को मानते हैं श‍िवजी की दूसरी पत्‍नी

मराठी लोक कथाओं में भी इसी तरह की कुछ बातें मिलती हैं। यहां गंगा को भगवान शिव की दूसरी पत्नी बताया जाता है। पार्वती गंगा को परेशान करती है जिसकी शिकायत गंगा भगवान शिव से करती हैं। पार्वती के कोप से गंगा की रक्षा के लिए भगवान शिव उन्हें अपनी जटाओं में छुपा लेते हैं। गंगा के जन्म और नदी रूप में प्रकट होने की जिस तरह अनेकों कहानियां हैं उसी प्रकार इनके मानव रूप में प्रेम की भी कई कथाएं हैं।

तब ऐसे हुआ गंगा का मनुष्‍य से व‍िवाह

ब्रह्मा जी के शाप के कारण गंगा नदी रूप में धरती पर आईं और दूसरी ओर महाभिष को हस्तिनापुर के राजा शांतनु के रूप में जन्म लेना पड़ा। एक बार शिकार खेलते हुए शांतनु जब गंगा तट पर पहुंचे तो गंगा मानवी रूप धारण कर शांतनु के पास आईं और दोनों में प्रेम हो गया। शांतनु और गंगा की आठ संतानें हुई जिनमें सात को गंगा ने अपने हाथों से जल समाधि दे दी और आठवीं संतान के रूप में देवव्रत भीष्म का जन्म हुआ। लेकिन देवव्रत को गंगा जलसमाधि नहीं दे पाईं। कहते हैं कि गांगा के आठों संतान वसु थे जिन्हें शाप मुक्त करने के लिए गंगा उन्हें जल समाधि दे रही थी। लेकिन आठवीं संतान को शाप मुक्त कराने में गंगा असफल रही।

देवी गंगा के प्रेम की यह भी अनूठी कथा

महाभारत की कथा के अनुसार देवी गंगा अपने पिता ब्रह्मा के साथ एक बार देवराज इंद्र की सभा में आईं। यहां पर पृथ्वी के महाप्रतापी राजा महाभिष भी मौजूद थे। महाभिष को देखकर गंगा मोहित हो गईं और महाभिष भी गंगा को देखकर सुध-बुध खो बैठे। इंद्र की सभा में नृत्य चल रहा था तभी हवा के झोंके से गंगा का आंचल कंधे से गिर गया। सभा में मौजूद सभी देवी-देवताओं ने शिष्टाचार के तौर पर अपनी आंखें झुका ली लेकिन गंगा में खोए महाभिष उन्हें एकटक निहारते रह गए और गंगा भी उन्हें देखती रह गई। क्रोधित होकर ब्रह्मा जी ने शाप दिया कि आप दोनों लोक-लाज और मर्यादा को भूल गए हैं इसलिए आपको धरती पर जाना होगा। और आप दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं इसलिए वहीं आपका मिलन होगा।

Full View

Tags:    

Similar News