Chhattisgarh Festival Chherchhera: छत्तीसगढ़ का लोकपर्व छेरछेरा: जानिए छेरछेरा पर्व के बारे में, क्या है इसका महत्व

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Update: 2023-01-06 11:30 GMT

Chhattisgarh Festival Chherchhera: छत्तीसगढ़ का लोकपर्व छेरछेरा किसानों, अन्न और दान की परंपरा से जुड़ा हुआ है। पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह त्योहार नए धान से कोठार के भर जाने का उत्सव है। और इसके पीछे संदेश है कि अपनी जरूरत का धान रखो और जो भी द्वार पर दान मांगने को दस्तक दे, उसे खाली हाथ वापस न जाने दो। इस दिन बच्चे टोलियों में घर-घर जाते हैं और आवाज़ देते हैं "छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा" वहीं युवाओं की टोलियाँ घूम-घूमकर डंडा नृत्य करती हैं। इस दिन माँ शाकंभरी और देवी अन्नपूर्णा की पूजा होती है।

सामाजिक समरसता का लोक पर्व छेरछेरा

आज छह जनवरी को छत्तीसगढ़ का स्थानीय त्योहार छेरछेरा मनाया जा रहा है। धान के कटोरे छत्तीसगढ़ का यह पर्व सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करता है। पौष पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर सभी एक-दूसरे के जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं।

माँ शाकंभरी की जयंती

लोक परंपरा के अनुसार भीषण अकाल और भुखमरी से त्रस्त जनों की मदद के उद्देश्य से माँ दुर्गा ने ही माँ शाकंभरी के रूप में जन्म लिया। माँ शाकंभरी ने लोगों का कष्ट दूर कर उनके आंगन अन्न, फल, साग-सब्जी और औषधि से भर दिए। अमीर-गरीब सभी के कष्ट हरने वाली माँ शाकंभरी की जयंती पर छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं माना जाता। कोई किसी के भी द्वार पर मांगने जा सकता है और याचक को निराश नहीं किया जाता।

महिलाएं निभाती हैं माँ शाकंभरी की भूमिका

घर-घर में महिलाएं इस दिन बरा, अइरसा , सोहरी, बोबरा, चौसल्ला रोटी, भजिया आदि लोकल पकवान बनाती हैं और द्वार पर आए बच्चों को क्षमतानुसार नकद पैसा, पकवान, अनाज का दान करती हैं। इस तरह से वे माँ शाकम्भरी की भूमिका निभाती हैं। कई लोग इस दिन भंडारे का भी आयोजन करते हैं और मुक्त हस्त आगंतुकों को खिचड़ी का भोग बांटते हैं।

मेल-मिलाप, दान और सदाशयता का पर्व छेरछेरा छत्तीसगढ़ की मूल प्रेम भावना का परिचय कराता है।

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