Baba Sambhav Ram: ईश्वर पर लोगों को भरोसा नहीं, अहंकार और भटकाव से मनुष्य अच्छी चीजें ग्रहण नहीं कर पा रहा, यही दुख और वेदना का कारण: बाबा संभव राम...
Baba Sambhav Ram: जशपुर के गम्हरिया स्थित सर्वेश्वरी समूह आश्रम में 15 मार्च को अघोरेश्वर भगवान राम की समाधि स्थापना दिवस मनाया गया। दो दिन के समारोह के समापन मौके पर अपने आर्शीवचन में गुरू पद बाबा संभव रामजी ने देश भर से आए भक्तों और श्रद्धालुओं को अपने आर्शीवचन से उनका मार्ग प्रशस्त किया। बाबा ने कहा कि शरीर घोखेबाज है, यह कभी भी घोखा दे सकता है। लोग घोखे में जी रहे हैं। भटकाव और अहंकार के चलते हम अच्छी बातों का ग्रहण नहीं कर पा रहे। उन्होंनें इस श्लोक से आगाह किया “हरिया हरि के रूठते गुरु के शरण में जाए, गुरु रूठे तो कोई नहीं साथ।“ बाबा ने कहा कि गुरू की वाणियों को यहां बार-बार दुहराई जाती है। हर साल हम यहां एकत्र होते हैं, वाणियों को श्रवण करते हैं, उसके बाद भी हम अपना उद्धार नहीं कर पाते। तो इसका कारण है माया-मोह, भटकाव और अहंकार, जो हमारे शरीर से निकलने का नाम नहीं ले रहा। ऐसा इसलिए हो रहा कि हमें ईश्वर पर भरोसा नहीं है। इसी वजह से हमारे जीवन में दुख, तकलीफ, वेदना बढ़ती जा रही है। अच्छा होगा, हम अपना आत्मउद्धार करें। आत्मा के उत्थान से सब अपने आप ठीक हो जाएगा।

Baba Sambhav Ram: जशपुर। बाबा संभव राम जी ने आर्शीवचन में कहा कि जीवन से जुड़ी जो बातें संगोष्ठी में की गई, ऐसा नहीं कि लोग उसे नहीं जानते। मगर उसका अनुसरण नहीं करते। उसका कारण यह है कि लोगों को अब ईश्वर पर भरोसा नहीं रह गया है। ईश्वर का लोग नाम तो लेते हैं, पूजा करते हैं मगर धर्म के पथ पर चलते नहीं। लोगों में काफी भटकाव आ गया है। इसलिए, अच्छी बातों को हम सुनते तो हैं मगर उसे जल्द ही बिसार देते हैं और फिर अपने ढर्रे पर चल पड़ते हैं।
बाबा ने कहा कि आज के समय में हमें आत्मउद्धार की आवश्यकता है। अगर हम आत्मा के उद्धार करने का प्रयास करेंगे तो सारे गुण हममें आ जाएंगे। मगर हमें ईश्वर पर विश्वास नहीं है। इससे भटकाव आता है। भटकाव के चलते हम कुकृत्य करना प्रारंभ कर देते हैं, उटपटांग कार्य करते हैं।
गुरूपद बाबा ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है। वो सब सुन रहा है, सब देख रहा है, फिर भी हमलोग भटक जाते हैं। इसी भटकाव के चलते हमारे जीवन में दुख, तकलीफ और वेदनाएं आती है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्र की दुर्दशा का कारण राष्ट्र नहीं है। इसके दुर्दशा के जिम्मेदार हम, आप हैं, जो इस राष्ट्र में रह रहे हैं। इसे उन्नति की राह पर नहीं ले जा रहे हैं।
पढ़िये बाबा संभव राम जी का आर्शीवचन उनके शब्दों में....
आज विभिन्न क्षेत्रों से आए और इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए हैं, हमारा जो लक्ष्य हैं, ध्येय है,हमारा जो कर्तव्य है, कर्म है,कार्य है, उन सभी की जो प्रेरणाएं हैं, आप सभी लोगों ने सुना होगा, तथा आप लोगों की बातों में भी बहुत सा सार है, बहुत सी चीज़ें हैं,जो हम लोग जानते भी हैं लेकिन बार बार उसको दुहराना, बार बार उसका श्रवण करना, वो इसी लिए होता है कि हम लोग बहुत जल्दी भटक जाते हैं। इस दुनिया में,समाज में बहुत भटकाव है, इसलिए इन बातों को बार बार दोहराया जाता है। ये कोई नई बात नहीं है जो हम कर रहे हैं, या हमने कभी इसे सुना नहीं,देखा नहीं या अध्ययन नहीं किया है, ऐसा नहीं है। हम सभी लोग जानते है। लेकिन हमारा जो भटकाव है और वो भटकाव हमारा इस माया से, इस मोह से इस ममता से, और ऐसे ही जो राग, द्वेष, ईर्ष्या, घृणा ये शब्द मात्र नहीं है, ये परिलक्षित हो रहे हैं। ये समाज में दिखाई दे रहा है, इसका कारण भी यही है क्योंकि ये जो दिखाई दे रहा है, हम देख रहे है, कर रहे है, और हम इसको भी भली प्रकार हम जानते है कि इस अवस्था में हमारे पूर्वज लोग भी रहे हैं। इस धरती पर जिसका जन्म हुआ है उसको वापस जाना ही होगा, उसका मृत्यु सुनिश्चित है।
जब हम अपने आप का उद्धार करने के लिए चलते है उस आत्मा की ओर तो सारे गुण स्वतः हममें आते है, लेकिन हममें उस ईश्वर पर भी विश्वास नहीं है। उसके ऊपर पूर्ण विश्वास नहीं होने से हममें भटकाव भी आता है। हमें दुख भी महसूस होते हैं। हम उठपटाग कृत्य करने को भी तैयार हो जाते हैं वो सब इसलिए क्योंकि हममें वो विश्वास नहीं है। हम ईश्वर का नाम जरूर लेते हैं, जैसे वो शब्द मात्र शब्द नहीं है। और वे ईश्वर हैं वे भी शब्द मात्र नहीं हैं। जब तक हम उसको परखेंगे नहीं अपने आप में, और इसलिए कहा गया है कि वो आत्मा क्या है क्यों है तो सभी सयानों का एक ही मत है कि हरि को हर में देखना। तो हरि को हर में देखने का मतलब क्या है, जब हम जानते है कि वो ईश्वर सर्वव्यापी है, वो सब देख रहा है, सुन रहा है, फिर भी हम भटक जाते है। और इसी भटकाव के चलते हमारे जीवन में दुःख, क्लेश, वेदनाएं आती है। और ये जो भटकाव है, पूरा समाज भटका हुआ है।
इस राष्ट्र की दुर्दशा का कारण वह राष्ट्र नहीं है, हम और आप है जो राष्ट्र में रह रहे है,उस राष्ट्र को उन्नति की ओर पूर्णतः न ले जाने के कारण हममें विकृत भावना का उदय होने के कारण हमारा विश्वास उस सर्वव्यापी के प्रति समाप्त होने के कारण ये सब कुकृत्य हो रहे हैं ।
इन सब कुकृत्यो से बचने के लिए हमें अपनी आत्मा का उत्थान करना होगा क्योंकि हमारा जीवन, यह जीवन और आने वाला जीवन भी हमारे हाथों में है। और जो भी कहा जाता है, जिसको हम गुरु भी मानते है, विशेषकर जो देखते है, अपना सब कुछ मानते है, उनके विषय में भी कहा गया है “हरिया हरि के रूठते गुरु के शरण में जाए, गुरु रूठे तो कोई नहीं साथ।“ तो हमें जो उस गुरु की जो वाणियां हैं, जो परम पूज्य अघोरेश्वर ने हमें बताई है, सुनाई है, हमारे पास साहित्य हैं, उसी का अवलंबन लेकर हम यहां आते है, एकत्रित होते है, उसके बाद भी हम अपना उद्धार नहीं कर पाए, और इसी में भटकते रहे, इसी माया में मोह में, हम लोग उसी में पड़े रहे, लेकिन यह चीज तो व्यापक है, यह सबसे भी छूटता नहीं है।
लेकिन यही है कि माया का हम समझ नहीं पाए, उस माता के लिए पुत्र भी बहुत कुछ होता है, सब कुछ होता है, चाहे वो मनुष्य के हो,पशु-पक्षियों के हो, जानवर के हो, आपने देखा होगा कि अपने बच्चों को सुरक्षा देने के लिए अपने से भी शक्तिशाली से भीड़ जाएंगे और उनमें अपने आप आप अपार शक्ति आ जाएगा। वह लड़ने के लिए, भिड़ने के लिए यहां तक कि अपने जान की भी परवाह नहीं करते। तो ऐसा ही हमारे साथ हो रहा है, घट रहा है, उस सर्वेश्वरी के हम लोग सपूत हैं, वो भी हमें अपने में मिलाना चाहती हैं, लेकिन जो हमारे कर्म हैं कृत्य है, चाहे इस जन्म के हो जो भविष्य बनायेगा, चाहे हम लोग कर चुके हो, जो हमारे साथ आया है, वो हमें भोगना ही पड़ेगा, वो भोगना पड़ता है। किसी को किसी माध्यम से किसी माध्यम से, किसी को शारीरिक माध्यम से, किसी को मानसिक माध्यम से, किसी को पारिवारिक माध्यम से। वैसे हमने कोई कुकृत्य किया तो वैसा होता भी है। हमने किसी के साथ दुर्व्यवहार किया, दुराचार किया, किसी की हत्या की है, तो वही हो सकता है, आगे के जन्म में जो चुकाना होगा वो हमारे ही परिवार में आकर जन्म ले लेता है। हम लोग कितने लाड़ प्यार से आने वाले का, उसकी खुशियां मनाते है, उसको कितना संरक्षण देते है। कितना लाड़ प्यार देते हैं, उससे आशाएं रखते हैं। लेकिन हम देख रहे हैं कि समाज में बहुत कुछ हो रहा है। बड़ा होने पर वो कैसा व्यवहार कर रहे हैं। आप के साथ, अपनों के साथ और वो भी वो उपभोग हैं जो हमें भोगना ही पड़ता है।
यदि गुरुजनों का सान्निध्य नहीं है, वो विश्वास नहीं है तब हम प्रताड़ित होते है। हर दुख हमें दुखित करता है, हर प्रताड़ना हमें प्रताड़ित करती हैं। हर रोग व्याधि हमें कष्ट देते रहती है। लेकिन हम कभी ये नहीं सोचते कि ईश्वर हैं। मैं ऐसे लोगों को जानता हूं,जिनसे मैं मिला नहीं हूं, मेरी बातचीत होती हैं। उनसे रूबरू नहीं मिला हुं, लेकिन दूरभाष के माध्यम से वार्तालाप होता है। उनका कभी कभी उठना भी मुश्किल हो जाता है, चलना भी मुश्किल हो जाता है। जब मैं उनको कहता हूं कि ईश्वरी हैं, सर्वेश्वरी है, वो सबके साथ है, बस रोग हैं थोड़ा हिम्मत रखिए, ये कट जाएगा। कई वर्षों से मै देख रहा हु कभी इस भोग के कारण दवा भी काम नहीं करती, दुआ भी काम नहीं करती।
किसी-किसी को आप देखे होंगे कि ईश्वर को याद करके दे देते हैं तो तत्काल रोग व्याधि दूर हो जाता है। किसी को आप कुछ कर लीजिए, कोई भी औषधि दे दीजिए नहीं जाता, तो यही भोग है, एक को देने से तत्काल उसका व्याधि रोग खत्म हो जाता है, और दूसरे को वही दवाएं दे दीजिए, वहीं दुआएं दे दीजिए उसको फर्क नहीं पड़ता है। उसके लिए जो निश्चित है वह होगा और उससे जुड़ा जो परिवार है वह प्रताड़ित होगा ही, उससे जिसे लगाव है, प्रेम है, मोह है वह सभी प्रताड़ित होंगे, यह स्वाभाविक बात है। मैं यह नहीं कह रहा कि आप सब कुछ छोड़ दीजिए। आप लोग अपने कर्तव्य को जितना कर सकते हैं करें, सेवा करें ईश्वर की। इसी के अभाव में हम लोग लड़ रहे हैं, मर रहे हैं, एक दूसरे को मार रहे है, प्रताड़ित कर रहे है, छीन रहे हैं, किसी का कब्जा कर ले रहे है, इसलिए कर रहे है कि हम तो मरेंगे नहीं, हम उस ईश्वर को, आत्मा को न मानकर अपने अहंकार को सबसे ज्यादा मानते हैं। मैं हूं, मुझे इससे सुख मिलेगा, मै इसको प्रताड़ित कर दूंगा, भाई हो, बंधु हो कोई भी हो, अपने मिलने जुलने वाले हो मित्र हो साथी, उसको प्रताड़ित कर दूंगा तो मुझे आनंद मिलेगा। मुझे धन मिलेगा, मुझे संपत्ति मिल जाएगी। लेकिन हमारा ये शरीर ही अच्छा नहीं है, यह कब धोखा दे देगा, मैं देखा भी हूं, सुना भी हूं। एक सज्जन आए थे बाहर, मै भी वही खड़ा था। उनको जो इंगित किया था कि शरीर जो है वो धोखेबाज है, बहुत बड़ा धोखेबाज है और लोग उसी धोखे में जी रहे है। हम लोग अपना जी रहे है, हम लोग समझ नहीं पा रहे है क्योंकि कि संगतिया बहुत हैं, कुविचार बहुत हैं, कुदृष्टि बहुत हैं, जो हम लोग देखते हैं, सुनते हैं। जो हम ऐसे चलचित्र है, दृश्य हैं, समाचार है देखेंगे तो विकृति आएगी। इसलिए हमारे महा पुरुषों की, संतो की तस्वीरें रखते है इसलिए रखते हैं कि उनको देख के सुविचार उत्पन्न होते है, जो विकृतियां आती है उनको देख के नहीं आती। कई घरों में देखे होंगे, कई लोग आधुनिकता में रंगे लोग ऊटपटांग लोगों को अपना आदर्श मानते है। मैं विदेश गया था रूस, वहां मैंने देखा कि विवाह पर जो हमारे यहां आडंबर होता है वह विदेश में नहीं होता। वे लोग जो शहीद स्मारक है, जिनकी वजह से आज हम जिंदा है वहां गए। हमारी जो संस्कृति थी आज वह उनकी है, अपने इतिहास के, अपने संस्कृति के, अपने पूर्वजों के जो भी चिन्ह है वे सम्हाल के रख रहे हैं। बच्चों को उनके शिक्षक माता-पिता ऐसे म्यूजियम में ले जाते हैं और अपनी संस्कृति और सभ्यता तथा इतिहास के बारे में बताते हैं। अन्य देशों के बारे में भी बताते हैं। एक जगह मैं गया तो रामायण के बारे में, राम के बारे में बताया जा रहा था। हमें भी अपने संस्कृति को सहेजना है। हमें अच्छे कर्म करने हैं और अपने तथा दूसरों के बारे में भी अच्छे विचार रखने हैं।
मेडिकल कैंप
बाबा भगवान राम समाधि स्थापना दिवस के मौके पर सर्वेश्वरी आश्रम में मेडिकल कैंप लगाया गया। इसमें देश भर से आए डॉक्टरों ने करीब चार सौ मरीजों को उपचार कर निःशुल्क दवाइयां वितरित की।