World Tribals Day 2024 : छत्तीसगढ़ की कुल आबादी की 30 फीसदी जनसंख्या आदिवासी... आइए जानें इनकी अनोखी परंपरा के बारे में

World Tribals Day 2024 : छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी बाहुल्य राज्य है. यहां की कुल आबादी की 30 फीसदी जनसंख्या ट्राइबल है. आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ में आदिवासियों कि कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में.

Update: 2024-08-09 08:21 GMT

Chattisgarh Tribal Traditions : आज विश्व आदिवासी दिवस है। आंकडे बताते है की छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी बाहुल्य राज्य है. यहां की कुल आबादी की 30 फीसदी जनसंख्या ट्राइबल है. आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में अलग-अलग ट्राइबल ग्रुपों के करीब 78 लाख लोग रहते हैं.

वैसे तो पूरे छत्तीसगढ़ में आदिवासी रहते हैं लेकिन मुख्य तौर पर बस्तर और सरगुजा में इनकी बड़ी आबादी रहती है.

इनके अपने त्योहार, देवता, धर्म, भाषा, बोली और प्रथाएं हैं. आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ में आदिवासियों कि कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में जानते हैं जिनको सुन आप हैरान रह जाएंगे.




हरियाली अमावस्या से 75 दिनों तक ये दशहरा 


75 दिन का दशहरा पूरे देश में भले ही शारदीय नवरात्रि के बाद रावण के वध पर दशहरा मनता है, लेकिन बस्तर के आदिवासी हरियाली अमावस्या से ही दशहरा मनाना शुरू कर देते हैं. सावन के महीने में पड़ने वाली हरियाली अमावस्या से 75 दिनों तक ये दशहरा मनाया जाता है, जिसे बस्तर दशहरा भी कहा जाता है. इस दौरान आदिवासी रावण नहीं जलाते बल्कि,लकड़ी का रथ बनाते हैं और मुरिया महाराज का दरबार लगाकर जनता की समस्याएं सुनते हैं.


दूर पहाड़ी से पत्थर लाकर बनाया जाता है मृतक स्तंभ गुड़ी

मृतक स्तंभ 'गुड़ी' दक्षिण बस्तर में मारिया और मुरिया जनजाति में मृतक स्तंभ 'गुड़ी'बनाने की प्रथा है. इस प्रथा के चलते परिजन के मरने के बाद जिस जगह उन्हें दफनाया जाता है, वहां 6 से 7 फीट ऊंचा, चौड़ा और नोकीला पत्थर रख दिया जाता है. यह पत्थर दूर पहाड़ी से लाया जाता है और इसे लाने में गांव के अन्य लोग भी मदद करते हैं.


घोटुल जनजाति में लड़का-लड़की चुनते हैं अपना जीवनसाथी

लड़का-लड़की चुनते हैं अपना जीवनसाथी गोंड और मारिया जनजाति में घोटुल की प्रथा है. इस प्रथा के तहत घोटुल गांव के किनारे बनी एक मिट्टी की झोपड़ी होती है. कई बार घोटुल में दीवारों की जगह खुला मंडप भी होता है.यहां लड़का-लड़की अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनते हैं. वे एक से ज्यादा साथी भी चुन सकते हैं.


आदिवासियों का लिव इन रिलेशनशिप पैठू


आदिवासियों का लिव इन रिलेशनशिप 'पैठू' बस्तर में लड़की शादी करने से पहले अपनी पसंद के लड़के के घर जाकर रह सकती है.इस प्रथा को आदिवासी पैठू कहते हैं. लड़की अपने पसंद के लड़के के घर जब जाती है तो ससुराल पक्ष की ओर से उस पर पानी डालने की एक रस्म अदा की जाती है. लड़की को यदि लड़के के साथ उसके परिवार वाले भी पसंद आ गए तो उसके बाद रीति-रिवाज से दोनों की शादी कर दी जाती है.


जानिए क्या है उधलका विवाह

आदिवासियों का उधलका विवाह इस विवाह के तहत कोई भी युवक किसी पब्लिक प्लेस पर लड़की का हाथ पकड़ सकता है.अगर लड़की आपत्ति नहीं करती तो लड़का उसे अपने घर ले जाता है और समाज को उधलका विवाह के बारे में बताता है. आम तौर पर यह मेलों और त्योहारों पर किया जाता है.


बस्तर की भतरा, दोरला और महारला जनजातियों में लड़का देता है दहेज


लड़का देता है दहेज बस्तर की भतरा, दोरला और महारला जनजातियों में जब कोई जोड़ा शादी करने का फैसला करता है, तो 'दहेज' लड़का देता है. यह दहेज आमतौर पर उत्सव का खर्च या महुआ शराब के रूप में दिया जाता है. इसे महला कहा जाता है. इसमें पैसा, बकरी, बैल या सूअर भी शामिल हो सकते हैं.

 

बैगा जनजाति में तलाक के नियम सरल


 बैगा जनजाति में तलाक के नियम सरल हैं. अगर कोई जोड़ा यह तय कर ले कि वे अब साथ नहीं रहना चाहता है और अगर महिला अलग होने की पहल करती है, तो महिला के नए साथी को शादी या महुआ के लिए पुराने साथी द्वारा उठाए गए खर्च की भरपाई करनी होती है.

अगर माता-पिता नहीं लेते जिम्मेदरी तो समुदाय बच्चे को पालता है


समुदाय बच्चे को पालता है छत्तीसगढ़ की बैगा जनजाति में यदि माता-पिता अलग होने का फैसला करते हैं और दोनों बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं, तो समुदाय एक अभिभावक को नियुक्त करता है जो 15 साल की उम्र तक बच्चे का पालन-पोषण करता है. गांव के बाकी लोग भी इसमें सहायता करते हैं


बछड़ा क्या पिएगा सोचकर दूध नहीं पीते 


छत्तीसगढ़ की कई जनजातियों के खान-पान में दूध शामिल नहीं हैं. दरअसल, उन्हें चिंता है कि अगर वे गाय का दूध लेंगे, तो फिर बछड़ा क्या पिएगा. अपने खेतों के लिए खाद (गोबर) प्राप्त करने के लिए वे गाय पालते हैं.

प्रतीकात्मक तौर पर कुम्हड़े  की बलि


बस्तर में स्थित दंतेवाड़ा 52 शक्तिपीठों में से एक है. नवरात्रि में यहां गुप्त पूजा की जाती है और इसमें जीव बलि की कूप्रथा सदियों पहले समाप्त कर दी गई. इसके बाद से पूजा में प्रतीकात्मक तौर पर कुम्हड़े (एक प्रकार का कद्दू) की बलि दी जाती है. यह पूजा पंचमी की रात मंदिर के मुख्य पुजारी अपने करीबी सहयोगियों के साथ करते हैं. आधी रात को होने वाली इस पूजा में अन्य लोगों का मंदिर में प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है.

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