Swatantrata Divas 2024 Special : हमें देखनी है आज़ादी, हर हाल में देखनी है आज़ादी... जब एक ही सुर में ऐसा कहकर आजादी की लड़ाई लड़ने कूद पड़ी थी "छत्तीसगढ़ की महतारियाँ"

woman freedom fighter of chhattisgarh : भारत देश की आजादी के आंदोलनों में छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने भी बड़ा योगदान दिया था। सोनाखान से लेकर रायपुर, धमतरी, दुर्ग सहित अलग-अलग स्थानों पर इन महिलाओं ने आजादी की लड़ाई में योगदान दिया। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं की भूमिका पुरुषों के साथ बराबरी की रही।

Update: 2024-08-14 18:12 GMT

 woman freedom fighter of chhattisgarh :    आज स्वतंत्रता दिवस है. जब बात स्वतंत्रता की आये और इसमे छत्तीसगढ़ का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. भारत देश की आजादी की लड़ाई में छत्तीसगढ़ के वीरों ने जहां बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई है, वहीं छत्तीसगढ़ी महतारियों ने भी अपना बख़ुबी योगदान दिया है। 

भारत छोडो आंदोलन में डा. खूबचंद बघेल की पत्नी रामकुंवर की गिरफ्तारी के बाद प्रदेश में महिलाओं ने विरोध तेज कर दिया। मनोहर श्रीवास्तव की मां फुलकुंवर उनकी पत्नी पोचीबाई ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें महिलाओं ने स्वतंत्रता का बिगुल फूंका।

12 साल की उम्र में रोहिणी बाई को आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए चार महीने का कारावास हुआ था। मिनीमाती और करूणामाता का योगदान छत्तीसगढ़ के लोगों को आज भी याद है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ की महिलाओं के योगदान पर डिग्री गर्ल्स कालेज raipur की छात्रा अर्चना बौद्ध ने शोध किया है। अपने शोध में उन्होंने पुराने दस्तावेजों और प्राप्त संकलन के आधार पर प्रदेश में ऐसी 60 महिलाओं का जिक्र किया है, जिन्होंने इस संघर्ष में बड़ी भूमिका निभाई है।




सबसे पहला डा. राधाबाई का नाम

स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ महिलाओं के योगदान की बात की जाए तो सबसे पहला नाम डा. राधाबाई का आता है। डा. राधाबाई की छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलनों में लंबे समय तक भूमिका रही। वे गांधी जी के सभी आंदोलनों में आगे रहीं। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। स्वदेशी अपनाओं, नारी जागरण, शराबबंदी, अस्पृश्यता निवारण जैसे आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका रही। डा. राधा बाई का जन्म 1875 में नागपुर में हुआ था।

1918 में वो रायपुर आई और दाई का काम करने लगी। इस काम को राधाबाई प्रेम और लगन के साथ करती थीं। इसलिए सब उन्हें मां कहकर पुकारते थे। उनके कामों की वजह से राधाबाई को लोग डाक्टर कहने लगे। साल 1920 में जब महात्मा गांधी पहली बार रायपुर आए, उस दौरान डाक्टर राधाबाई ने स्वतंत्रता के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना शुरू किया। 1930 से लेकर 1942 तक वो सत्याग्रह आंदोलनों से जुड़ी रहीं। इस दौरान उन्होंने सैंकड़ों लड़कियों को वैश्यावृत्ति से मुक्ति दिलाई। 75 वर्ष की आयु में 2 जनवरी 1950 को उनका देहांत हो गया।

बापू की मयारू बेटी 12 साल की रोहिणी बाई 

देश के स्वाधीनता आंदोलन में रोहिणी बाई परगनिहा का विशेष योगदान रहा। डाक्टर राधाबाई की टोली में रोहिणी बाई 10 साल की उम्र में शामिल हो गई थी। 1931 में जब रोहिणी बाई 12 साल की थी तब उन्हें पहली बार जेल जाना पड़ा। उनकों जुर्माने के साथ चार माह की सजा दी गई। रोहिणी बाई कम उम्र की होने के बावजूद भी सत्याग्रह में बढ़ चढ़कर भाग लेती रही। वे सत्याग्रह के दौरान झंडा लेकर आगे चलती और नारे लगाती। विदेशी सामानों के बहिष्कार के दौरान जब महिलाओं की टोली पुलिस चौकी के सामने से गुजरी, तो अंग्रेज सेना रोहिणी बाई के हाथ से झंडा छीनने लगे। लेकिन 12 साल की रोहिणी ने झंडे को कसकर पकड़े रखा। ब्रिटिश जवान ने उन्हें घसीटा, डंडे से पीटने लगे लेकिन उनके हाथों से झंडा नहीं छूटा। जब गांधाजी का दसरी बार छत्तीसगढ़ आगमन हुआ, तब रोहिणी को उनके साथ महासमुंद, भाटापारा एवं धमतरी जाने का मौका मिला। लोग उनकों बापू के मयारू बेटी कहने लगे। चंदा इकट्ठा करके रोहिणी और उनकी महिला साथियों ने गांधीजी के हरिजन कोष में 11 हजार रुपए भेंट किए थे।

छुआछूत मिटाने में केकती बाई का बड़ा योगदान

छत्तीसगढ़ के महान स्वतंत्रता सेनानी और छत्तीसगढ़ निर्माण के स्वप्नदृष्टा डा. खूबचंद बघेल की माता केकती बाई ने महात्मा गांधी के आन्दोलनों में बढ़ चढ़कर हिसा लिया था। केकती बाई बहुत कम उम्र में विधवा हो गई थी। उन्होंने अपने बच्चे खूबचंद बघेल को रायपुर से पढ़ाई कराने के बाद नागपुर मेडिकल कालेज में भेजा था। उस दौरान नागपुर में अखिल भारतीय अधिवेशन आयोजित हुआ था। जिसमें खूबचंद बघेल भी शामिल हुए थे। जब वह घर आते तो उनकी मां केकती बाई भी महात्मा गांधी के बारे में सुनकर प्रभावित होती थी। 1930 में स्वाधीनता आंदोलन के दौरान केकती बाई ने भी बढ़ चढ़कर योगदान दिया। वे डाक्टर राधाबाई के साथ मिलकर छुआछूत मिटाने जैसे सामाजिक को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छुआछूत मिटाने में उनका बहुत बड़ा योगदान था।

बस्तर विद्रोह के लिए रानी सुबरन कुंवर ने फूक था बिगुल

छत्तीसगढ़ में गांधीजी के आगमन के पुर्व महिलाओं की सक्रियता ज्यादा दिखाई नहीं देती, परन्तु 1910 के भूमकाल आंदोलन विद्रोह में रानी सुबरन कुंवर ने गुंडाधर एवं लाल कालेन्द्र सिंह के साथ मिलकर बस्तर अंचल में बिगुल फुंका। बस्तर अंचल शोषण एवं अन्याय के विरूद्ध उठ खड़ा हुआ। 1 फरवरी 1910 को सम्पूर्ण बस्तर विद्रोह के आग में भड़क उठा। रानी सुबरन कुंवर ने मुरिया राज की स्थपना एवं ब्रिटिश राज की समाप्ति की घोषणा कर दी।

छत्तीसगढ़ की 60 वीरांगनाएं




रानी सुबरन कुंवर, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव की बहन मनोबाई, नत्थू जगताप की पत्नी लीलाबाई, डारन बाई गोड़, अंजुमन बानो, पार्वती बाई, जैतूसमठ सत्याग्रह का नेतृत्व करने वाली अंजनी बाई, रजनी बाई, और जानकी बाई। पं. रविशंकर शुक्ल की पत्नी भवानी शुक्ल, रूखमनी बाई तिवारी, राधाबाई। असहयोग आंदोलन के समय फुटेनिया बाई, मनटोरा बाई, मटोलिन बाई, मुटकी बाई, केजा बाई, रामती बाई, अमृता बाई, कुंवर बाई, केकती बाई और 12 वर्षिय रोहणी बाई प्रमुख महिला आंदोलरकारी थी। डा. खूबचंद बघेल की पत्नी कुंवर बाई बघेल, फुलकुंवर, पोची बाई, पार्वती बाई, बेला बाई, रोहणी बाई, अंजनी बाई, इंदिरा लाखे, उमा लाखे, कोसी बाई, कृष्णा बाई, सीता बाई, रोहणी, रामकुंवर, अंबिका पटेरिया, यशोदा बाई गंगले, गोमती बाई मरवाड़ी, सुशीला बाई गुजराती, अन्नापुर्णा शुक्ला, ममादाई, भगवती बाई, मिनीमाता, करूणामाता, रामबती, भगवंतीन बाई, गया बाई, देवमती बाई, बंगी बाई, लीला बाई, इंद्रौतिन, मोहरी बाई, सोनबर्द, उदिया बाई, तारा बाई, सुविजीता देवी, सिताभी फुलिहले प्रमुख है।

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