Lingeshwari Mata Temple: लिंगेश्वरी माता मंदिर, यहां के खीरे का सेवन दिलाता है नि:संतानता से मुक्ति...जानिए रहस्यमयी मान्यता

History Of Lingeshwari Mata Temple: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में हरी भरी वादियों और घने जंगलों के बीच बसे लिंगेश्वरी माता का मंदिर एक ऐसा आध्यात्मिक स्थल है जो न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि रहस्य के प्रेमियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है।

Update: 2025-09-19 07:53 GMT

History Of Lingeshwari Mata Temple: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में हरी भरी वादियों और घने जंगलों के बीच बसे लिंगेश्वरी माता का मंदिर एक ऐसा आध्यात्मिक स्थल है जो न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि रहस्य के प्रेमियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर आलोर गांव की झाटीबन पहाड़ी पर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहां माता लिंगेश्वरी विराजमान है। यह स्थान अपनी अनूठी परंपराओं, गहरी आस्था और रहस्यमयी कहानियों के लिए जाना जाता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह साल में केवल एक बार ही खुलता है और यहां माता की शिवलिंग के रूप में पूजा की जाती है।

मंदिर का स्थान और प्राकृतिक सौंदर्य

यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में बना है जो चारों ओर से घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य इसे और भी आकर्षक बनाता है। हरे–भरे पेड़, चट्टानों से गिरी गुफा और शांत वातावरण यहां श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। हालांकि यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है जिसकी वजह से सुरक्षा बलों की उपस्थिति यहां अनिवार्य होती है। यहां हर साल हजारों भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

मंदिर की अनूठी परंपरा: साल में एक दिन का दर्शन

लिंगेश्वरी माता मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह साल में केवल एक दिन ही भक्तों के लिए खुलता है। आमतौर पर यह मंदिर भाद्रपद नवमी के बाद आने वाले पहले बुधवार को एक दिन के लिए ही खुलता हैं। इस दिन सुबह पुजारी विधिवत पूजा अर्चना करते हैं और गुफा का प्रवेश द्वार जो एक बड़े पत्थर से बंद है उसे खोला जाता है। सुबह भक्त दर्शन करते हैं और शाम होते ही फिर से मंदिर बंद कर दिया जाता है। यहां एक दिन का मेला भी आयोजित किया जाता है।

धार्मिक महत्व: संतान सुख की कामना

लिंगेश्वरी माता मंदिर की एक और विशेषता है जो इसे काफी खास बनाती है कि वे दम्पत्ति जो संतान सुख से वंचित है वे माता के दर्शन और उनके प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले खीरे को ग्रहण करने से निःसंतानता दूर होती है। इस अनूठी परंपरा में माता के दर्शन के बाद पुजारी भक्तों को एक खीरा देते हैं जिसे पति और पत्नी अपने नाखूनों से दो हिस्से में बांटते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस वजह से भी यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है।

रहस्यमयी भविष्यवाणी की परंपरा

मंदिर की एक और भविष्यवाणी परंपरा चली आ रही है इसमें ऐसा होता है कि जब मंदिर के पूरी तरह कपाट बंद किए जाते हैं तो गुफा के प्रवेश द्वार में रेत बिछाई जाती है और फिर जब अगले साल गुफा को पुनः खोला जाता है तो इस रेत पर कई अलग-अलग जानवरों व वस्तुओं के निशान दिखाई देते हैं जैसे कमल के निशान हो तो उसे सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

दर्शन और मेले का आयोजन

हर साल सितंबर में जब मंदिर का द्वार खुलता है तब यहां एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। 2025 में भी यह मेला 3 सितंबर को आयोजित हुआ था जिसमे भक्तों का सैलाब उमड़ा। मेला एक उत्सव की तरह होता है जहां भक्ति, संस्कृति और सामुदायिक एकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है मंदिर में प्रसाद के रूप में खीरा वितरित किया जाता है जो संतान सुख के साथ-साथ अन्य मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक माना जाता है।

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