Kukurdev Mandir: ऐसा अनोखा मंदिर जहां होती है कुत्ते की पूजा, जानिए वफादारी और आस्था की अजीबोगरीब मान्यता
Kukurdev Mandir: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक अनोखा मंदिर स्थित है जिसका नाम है कुकुर देव मंदिर। कुत्ते को समर्पित होने के वजह से यह मंदिर काफी दुर्लभ मंदिरों में शामिल किया जाता है।
Kukurdev Mandir: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक अनोखा मंदिर स्थित है जिसका नाम है कुकुर देव मंदिर। कुत्ते को समर्पित होने के वजह से यह मंदिर काफी दुर्लभ मंदिरों में शामिल किया जाता है। इस मंदिर में कुत्ते के मूर्ति को भी देवता के समान सम्मान दिया गया है, जो वफादारी और भक्ति की भावना को जीवंत करता है। यह मंदिर प्राचीन नागवंशी काल से जुड़ा हुआ है और 1993 से पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।
मंदिर से जुड़ी प्राचीन लोककथा
इस मंदिर की जड़ें प्राचीन फणी नागवंशी राजवंश से जुड़ी हुई हैं। लोक कथा के अनुसार एक व्यक्ति (बंजारा) का कुत्ता काफी वफादार था और उस व्यक्ति ने किसी साहूकार से कर्ज ले रखा था। कर्ज न चुका पाने पर साहूकार ने व्यक्ति के कुत्ते को अपने पास रख लिया। उस बंजारे द्वारा किसी कारणवश गुस्से में आकर कुत्ते की हत्या कर दी जाती है, बाद में यह सब बातें राजा को बताई जाती है तो उन्होंने कुत्ते की याद में यह मंदिर बनवाया और उसकी आत्मा को देवता का दर्जा दिया। यह कथा न सिर्फ पश्चाताप की शिक्षा देती है, बल्कि वफादारी की मिसाल भी पेश करती है।
पुरातत्व विशेषज्ञों के मुताबिक, मंदिर की संरचना प्राचीन हिंदू काल की है, जो पूर्व दिशा की ओर मुख करके बना है। बाहरी दीवारों पर सर्पों की नक्काशी नागवंशी प्रभाव को स्पष्ट करती है। 2012 में बालोद जिले के गठन के बाद इस मंदिर को ज्यादा पहचान मिली, और अब यह स्थानीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। ऐसा माना जाता है कि जिस कुत्ते की देवता के रूप में पूजा की जाती है उसे मंदिर के नीचे ही दफनाया गया है। यह परिसर 200 मीटर दायरे में फैला हुआ है। इस मंदिर के दर्शन करने के बाद कुत्ते के काटने और कुकुर खांसी जैसी समस्याएं नहीं होती हैं।
मंदिर की अनोखी वास्तुकला
मंदिर की वास्तुकला प्राचीनता का सुंदर मिश्रण है, जहां प्रवेश द्वार पर कुत्ते की बड़ी पत्थर की मूर्ति सबसे पहले ध्यान खींचती है। गर्भगृह में शिवलिंग मुख्य रूप से स्थापित है, जिसकी दैनिक पूजा होती है। दीवारें मजबूत पत्थरों से बनी हैं। बाहरी हिस्से में नागों की आकृतियां उकेरी गई हैं, जो इसकी ऐतिहासिक जड़ों को दर्शाती हैं। मंदिर छोटा है, लेकिन इसका डिजाइन आदिवासी और हिंदू संस्कृति के संगम को प्रतिबिंबित करता है। यहां की पूजा-अर्चना सुबह-शाम आरती और विशेष अनुष्ठानों से भरी होती है, जहां भगवान शिव और कुकुर देव दोनों की पूजा की जाती है।
कहां स्थित है मंदिर और कैसे पहुंचा जाए
यह मंदिर बालोद जिले के खपरी गांव में स्थित है। जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर की दूरी पर बालोद डोंडिलोहरा सड़क मार्ग पर स्थित मंदिर में आसानी से पहुंचा जा सकता है। बालोद, राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-30 पर स्थित होने के कारण वाहनों से यात्रा और भी आसान हो जाती है। हवाई यात्रियों के लिए रायपुर का स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट लगभग 120 किलोमीटर दूर है, जहां से बस आदि वाहनों से यहां पहुंचा जा सकता है।