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Kukurdev Temple: ना देवी, ना देवता… इस मंदिर में होती है वफादार कुत्ते की पूजा

भारत में मंदिरों की कोई कमी नहीं है, लेकिन कुछ मंदिर अपने अनोखे विश्वास और परंपराओं के कारण खास पहचान रखते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत मंदिर छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित है, जहां किसी देवी या देवता की नहीं, बल्कि एक वफादार कुत्ते की पूजा की जाती है। यह मंदिर “कुकुरदेव मंदिर” के नाम से प्रसिद्ध है और इसकी कहानी जितनी अनोखी है, उतनी ही भावनात्मक भी है।

फाइल फोटो
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Kukurdev Mandir: ना देवी, ना देवता… इस मंदिर में होती है वफादार कुत्ते की पूजा

By Supriya Pandey

भारत में मंदिरों की कोई कमी नहीं है, लेकिन कुछ मंदिर अपने अनोखे विश्वास और परंपराओं के कारण खास पहचान रखते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत मंदिर छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित है, जहां किसी देवी या देवता की नहीं, बल्कि एक वफादार कुत्ते की पूजा की जाती है। यह मंदिर “कुकुरदेव मंदिर” के नाम से प्रसिद्ध है और इसकी कहानी जितनी अनोखी है, उतनी ही भावनात्मक भी है।


खपरी गांव में है कुकुरदेव मंदिर-

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के खपरी गांव में यह मंदिर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की एक प्रतिमा स्थापित है, और उसके ठीक पास एक शिवलिंग भी विराजमान है। सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जो भगवान शिव के साथ-साथ कुकुरदेव की भी पूजा करते हैं।

जैसे शिव मंदिरों में नंदी की पूजा होती है, उसी श्रद्धा और सम्मान के साथ यहां कुत्ते की पूजा की जाती है। मंदिर परिसर लगभग 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है और प्रवेश द्वार पर भी कुत्ते की प्रतिमा विराजमान है। यहां मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मंदिर में दर्शन करता है, उसे कुत्ते के काटने का भय नहीं रहता।


एक वफादार कुत्ते की स्मृति में बना है मंदिर-

इस मंदिर की शुरुआत एक दिल छू लेने वाली कहानी से जुड़ी है। वर्षों पहले एक बंजारे ने एक साहूकार से कर्ज लिया और बदले में अपने वफादार कुत्ते को गिरवी रख दिया। उसी दौरान साहूकार के घर में चोरी हो गई और चोर सारा माल जमीन में गाड़ कर चला गया। लेकिन गिरवी रखा गया कुत्ता इतना वफादार निकला कि उसने छिपाए गए माल का पता लगाकर साहूकार को दिखा दिया। माल वापस मिलने से खुश होकर साहूकार ने कुत्ते को आज़ाद कर दिया और उसके गले में बंजारे के नाम एक चिट्ठी लटका दी।

जब कुत्ता वापस अपने मालिक बंजारे के पास पहुंचा, तो वह बिना चिट्ठी पढ़े ही यह समझ बैठा कि कुत्ता भाग आया है और गुस्से में उसे पीट-पीटकर मार डाला। बाद में जब उसने कुत्ते के गले में लटकी चिट्ठी पढ़ी, तो पछतावे से उसका दिल टूट गया। अपनी गलती सुधारने के लिए उसने वहीं पर कुत्ते को दफनाया और उसकी याद में एक स्मारक बनवाया, जिसे समय के साथ श्रद्धालुओं ने मंदिर का रूप दे दिया। आज यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।


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