History of Bastar Dussehra: सबसे लंबा चलने वाला दशहरा, जानिए बस्तर दशहरे का इतिहास और रोचक तथ्य
History of Bastar Dussehra: भारत विविधताओं का देश है और यहाँ हर क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति व परंपराएँ देखने को मिलती हैं। इन्हीं अनोखी परंपराओं में से एक है बस्तर दशहरा, जो छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाने वाला विश्व का सबसे लंबा चलने वाला त्योहार माना जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता का भी गहरा संदेश देता है।
History of Bastar Dussehra: भारत विविधताओं का देश है और यहाँ हर क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति व परंपराएँ देखने को मिलती हैं। इन्हीं अनोखी परंपराओं में से एक है बस्तर दशहरा, जो छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाने वाला विश्व का सबसे लंबा चलने वाला त्योहार माना जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता का भी गहरा संदेश देता है।
सामान्य दशहरे से बिल्कुल अलग परंपरा
जहाँ सामान्य दशहरा पर्व राम–रावण की कथा और विजयादशमी से जुड़ा होता है, वहीं बस्तर दशहरा का स्वरूप बिल्कुल अलग है। यह पर्व देवी दंतेश्वरी की उपासना पर आधारित है, जिन्हें आदिवासी समुदाय अपनी कुलदेवी मानता है। यहाँ किसी भी प्रकार का रावण दहन नहीं होता, बल्कि इस पूरे आयोजन का केंद्र देवी की शक्ति, प्रकृति के प्रति सम्मान और आदिवासी समाज की गहरी आस्था होती है।
बस्तर दशहरा का इतिहास
बस्तर दशहरा की शुरुआत 15वीं शताब्दी में राजा पुरुषोत्तम देव के समय से मानी जाती है। कथा है कि राजा पुरुषोत्तम देव जगन्नाथपुरी की यात्रा पर गए थे, जहाँ से वे रथ और धार्मिक परंपराओं से प्रभावित होकर लौटे। इसके बाद उन्होंने बस्तर में इस विशिष्ट पर्व की नींव रखी। उस समय से लेकर आज तक यह परंपरा निरंतर जारी है और आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।
इस पर्व की अवधि
इस पर्व की सबसे खास बात यह है कि यह दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला दशहरा माना जाता है। सामान्य दशहरा जहाँ दस दिनों तक चलता है, वहीं बस्तर दशहरा लगभग 75 दिनों तक आयोजित किया जाता है। इसकी शुरुआत सावन–भाद्रपद की हरेली अमावस्या से होती है और समापन अश्विन मास की तृतीया या उसके बाद देवी की विदाई के साथ किया जाता है।
प्रमुख अनुष्ठान और आयोजन
बस्तर दशहरा में कई रस्में और परंपराएँ शामिल होती हैं, जो इसे अन्य सभी पर्वों से अलग बनाती हैं।
1. Pat Jatra – पाट जात्रा
पर्व की शुरुआत पाट जात्रा से होती है। इस दिन जंगल से एक विशेष लकड़ी लायी जाती है, जिसका उपयोग आगे रथ निर्माण में किया जाता है। इसे प्रकृति के प्रति आदिवासी समाज के सम्मान और जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है।
2. Rath Nirman – रथ निर्माण
विशालकाय लकड़ी के रथ तैयार किए जाते हैं। इनमें एक चार पहियों वाला फूल रथ और दूसरा आठ पहियों वाला विजय रथ होता है। रथ निर्माण की प्रक्रिया सामूहिक सहयोग से पूरी होती है, जिसमें विभिन्न गाँव और समुदाय भाग लेते हैं।
3. Kachan Devi Puja – काछन देवी पूजा
इस रस्म में एक छोटी बालिका को देवी स्वरूप मानकर उसकी पूजा की जाती है। उसे “काछन देवी” कहा जाता है और उसकी स्वीकृति के बाद ही दशहरा के कार्यक्रम आगे बढ़ते हैं। यह परंपरा नारी शक्ति और पवित्रता का प्रतीक है।
4. Danteshwari Devi Jatra – दंतेश्वरी देवी की जात्रा
देवी दंतेश्वरी की मूर्ति को मंदिर से निकालकर रथ पर बैठाया जाता है और नगर भ्रमण कराया जाता है। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं और देवी की आराधना करते हैं।
5. Muria Darbar – मुरिया दरबार
दशहरे के दौरान बस्तर के अलग–अलग हिस्सों से आदिवासी मुखिया और समाजजन इकट्ठा होकर अपने मुद्दों और परंपरागत विषयों पर चर्चा करते हैं। इसे एक तरह से सामाजिक न्याय और संवाद का मंच भी माना जाता है।
6. Samapan – समापन
पर्व के अंत में देवी देवताओं की विदाई की जाती है। यह क्षण भावनात्मक होता है क्योंकि इसमें श्रद्धालु अगले वर्ष तक देवी की प्रतीक्षा करने का संकल्प लेते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
बस्तर दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति की आत्मा है। इसमें समाज की एकता, प्रकृति के प्रति श्रद्धा और देवी शक्ति की महिमा का सुंदर संगम दिखाई देता है। यह पर्व स्थानीय निवासियों के लिए आस्था का केंद्र है, वहीं बाहर से आने वाले पर्यटकों को आदिवासी जीवनशैली, लोकनृत्य, गीत और कला–संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है।
दशहरा के दौरान हर गाँव और समुदाय अपने–अपने तरीके से योगदान देता है, जिससे सामूहिकता और परस्पर सहयोग की परंपरा को बढ़ावा मिलता है। यही कारण है कि यह पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि बस्तर के लोगों की सामाजिक संरचना का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है