Ghode par sawar murti ka rahasya: घोड़े के पैर की स्थिति बताती है योद्धा के मौत का रहस्य! जानिए चौराहों पर बने घुड़सवार मूर्तियों का इतिहास
Ghode par sawar murti ka rahasya: विदेशों के साथ साथ भारत देश में जब हम किसी चौराहे से गुजरते हैं, तो हमें घोड़े पर सवार किसी वीर पुरुष की मूर्ति स्थापित हुई दिख जाती है और हमें लगता है कि यह मूर्ति उनकी याद में बनाया गया है। कुछ हद तक यह बात सही भी है परंतु ये मूर्ति महापुरुषों की यादों के साथ-साथ और भी कई जानकारियां हमें देता है। आइए जाानते हैं..
Ghode par sawar murti ka rahasya: विदेशों के साथ साथ भारत देश में जब हम किसी चौराहे से गुजरते हैं, तो हमें घोड़े पर सवार किसी वीर पुरुष की मूर्ति स्थापित हुई दिख जाती है और हमें लगता है कि यह मूर्ति उनकी याद में बनाया गया है। कुछ हद तक यह बात सही भी है परंतु ये मूर्ति महापुरुषों की यादों के साथ-साथ और भी कई जानकारियां हमें देता है। घोड़े पर सवार इन मूर्तियों (Equestrian Statues) को जब आप ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि इन मूर्तियों में घोड़ों के पैर के डिजाइन में काफी अंतर है, जो घोड़े पर सवार महापुरुष के बारे में कई जानकारियां देता है। आज हम इन्हीं मूर्तियो के बारे में जानने वाले हैं।
घोड़े के दोनों पैर का हवा में होना
इस प्रकार की घुड़सवार योद्धाओं वाली मूर्तियों को बनाने वाले मूर्तिकारों ने इसमें कई गुप्त संकेत छुपाए हैं। अगर किसी मूर्ति में घोड़े के दोनों पैर हवा में उठे हुए हैं तो इसका मतलब है कि घोड़े पर बैठे योद्धा की मृत्यु लड़ते हुए युद्ध क्षेत्र में हुई है। इस प्रकार वीरगति को प्राप्त योद्धा की काफी सम्मानजनक मृत्यु मानी जाती है साथ ही उसके मूर्ति को साहस का प्रतीक माना जाता है।
घोड़े के एक पैर का हवा में होना
जब मूर्ति में घोड़े के एक पैर हवा में होते हैं तो ऐसा माना जाता है कि उस पर सवार योद्धा की मृत्यु युद्ध क्षेत्र में तुरंत नहीं हुई है परंतु वह घायल अवस्था में होने के कारण कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। चूंकि योद्धा युद्ध क्षेत्र से घायल होकर आया है इसलिए यह भी एक तरह से सम्मानजनक मृत्यु मानी जाती है।
घोड़े के चारों पैर का जमीन में होना
जब घोड़े के चारों पैर जमीन पर टिके होते हैं तो ऐसा माना जाता है कि उस योद्धा की मृत्यु प्राकृतिक कारणों जैसे बुढ़ापे व बीमारी आदि से हुई है। इसका मतलब है कि यह योद्धा, युद्ध के वजह से नहीं मरा है।
इसकी उत्पत्ति का इतिहास
इस तरह से योद्धाओं की मूर्ति स्थापित करने की परंपरा छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन ग्रीस और रोमन साम्राज्य से मिलती है। इन्हें योद्धाओं के शौर्य और साहस का प्रतीक माना जाता है। इन मूर्तियों में घोड़े के पैरों का यह चलन 19वीं सदी के आसपास अधिक प्रचलित हुआ, खासकर जब अमेरिका के अंदर ही दंगे भड़कने लगे थे तब लोगों ने अपने नायकों और योद्धाओं की मूर्तियां स्थापित करना शुरू किया था। भारत में जब हम शिवाजी और महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं की मूर्तियों को देखते हैं तो इन मूर्तियों में भी इस प्रकार के कोड का इस्तेमाल दिखता है। कई इतिहासकारों ने मूर्तियों के इस कोड का खंडन किया है और माना है कि घोड़े के पैर का योद्धा के जीवन से कोई संबंध नहीं है, यह सिर्फ एक फैलाई गई बात है।