Akbar Ke Navratna: अकबर के नवरत्नों में कौन-कौन है शामिल, जानिए अकबर को महान बनाने में किन लोगों का है महत्वपूर्ण योगदान
Akbar Ke Navratna: 16वीं शताब्दी के समय भारत में एक ऐसे शासक का शासन रहा जिसने यहां की कला संस्कृति और इतिहास को समृद्ध करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया। हम बात कर रहे हैं जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की, आइए जानते हैं अकबर के नौ रत्नों के बारे में...
Akbar Ke Navratna: 16वीं शताब्दी के समय भारत में एक ऐसे शासक का शासन रहा जिसने यहां की कला संस्कृति और इतिहास को समृद्ध करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया। हम बात कर रहे हैं जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की, जिन्होंने दिल्ली की गद्दी पर बैठकर भारत का शासन चलाया। इसे अकबर महान के नाम से भी जानते हैं, इसका शासनकाल 1556 से 1605 तक लगभग 50 वर्षों तक रहा। अकबर के महान बनने का कारण उसके आसपास के बुद्धिमान लोग थे। अकबर ने अपने दरबार में ऐसे नौ विलक्षण प्रतिभाओं को स्थान दिया जो अपने-अपने क्षेत्र में बेमिसाल थे। इन नौ रत्नों को इतिहास में नवरत्न के नाम से जाना जाता है। इस लेख में हम इन्हीं नवरत्नों के बारे में बताने वाले हैं।
बीरबल
बीरबल अकबर के सबसे करीबी सलाहकार और विश्वासपात्र मंत्री थे, जिन्हें महेशदास के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में त्रिबिक्रमपुर गांव में 1528 में बीरबल का जन्म हुआ था। वे एक साधारण ब्राह्मण परिवार से थे, लेकिन उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता और परिस्थितियों को समझने की अद्भुत क्षमता ने उन्हें राजा अकबर के दरबार तक पहुंचाया। बीरबल की खासियत यह थी कि वे संस्कृत, फारसी और हिंदी तीनों भाषाओं में पारंगत थे। बीरबल एकमात्र हिंदू थे जिन्होंने अकबर द्वारा स्थापित दीन-ए-इलाही धर्म को स्वीकार किया था।
अबुल फजल
अकबर के शासनकाल में विशाल क्षेत्र विस्तार का श्रेय अबुल फजल को जाता है। आगरा में जन्मे अबुल फजल अकबर के मुख्य सलाहकार और दरबारी इतिहासकार थे। उन्होंने मुगल साम्राज्य के इतिहास को इतने विस्तार से लिखा कि आज भी इतिहासकार उनकी रचनाओं को प्रामाणिक स्रोत मानते हैं। अबुल फजल की दो रचनाएं अकबरनामा और आइन-ए-अकबरी मुगल इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज माने जाते हैं।
तानसेन
जब भी भारतीय शास्त्रीय संगीत की बात होती है तो तानसेन का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इनका नाम रामतनु पंडित है, जिन्हें दुनिया मियां तानसेन के नाम से जानती है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे महान संगीतकारों में गिने जाते हैं। 1493 के आसपास ग्वालियर में एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में जन्मे तानसेन ने अपने संगीत से अकबर दरबार के साथ पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया। तानसेन ने अपना संगीत सफर ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर के दरबार से शुरू किया। बाद में वे रीवा के राजा रामचंद्र सिंह बघेल के दरबारी संगीतकार बने। 60 साल की उम्र में 1562 में तानसेन अकबर के दरबार में आए। तानसेन को संगीत सम्राट की उपाधि भी प्रदान की गई।
फैजी
फैजी को भी अकबर के नवरत्नों में शामिल किया गया है। ये अबुल फजल के भाई और एक महान कवि थे। अकबर ने उन्हें राजकवि की उपाधि दी थी। फैजी को अकबर के पुत्रों को शिक्षा देने का जिम्मा भी सौंपा गया था। उन्होंने 1566 में अपना करियर शुरू किया और 1595 तक अकबर के दरबार में रहे। अकबर के शासनकाल में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अब्दुल रहीम खान-ए-खाना
रहीम के दोहे आज भी हिंदी साहित्य का अनमोल खजाना हैं। अब्दुल रहीम खान-ए-खाना अकबर के संरक्षक बैरम खान के पुत्र थे। बैरम खान ने अकबर को राजगद्दी तक पहुंचाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। रहीम ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और एक महान कवि के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके दोहे जीवन के मूल्यों को बेहद सरल और प्रभावी तरीके से व्यक्त करते हैं।
रहीम ने नगर शोभा नामक प्रसिद्ध रचना की। उन्होंने बाबरनामा का फारसी में अनुवाद भी किया था। रहीम की खासियत यह थी कि वे फारसी और हिंदी दोनों भाषाओं के समान रूप से जानकर थे।
राजा टोडरमल
अकबर के शासनकाल में राजस्व व्यवस्था की जिम्मेदारी राजा टोडरमल के कंधों पर थी। टोडरमल मुगल साम्राज्य के वित्त मंत्री और राजस्व प्रशासक थे। उन्होंने राजस्व संग्रह की एक ऐसी प्रणाली विकसित की जो किसानों के लिए अत्यंत प्रभावी थी। इस प्रणाली को जब्त प्रणाली के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने मानक बाट और माप की भी शुरुआत की ताकि कर माप तौल व्यवस्था में एकरूपता आए। उन्होंने पूरे साम्राज्य में भूमि सर्वेक्षण करवाया और एक व्यवस्थित बंदोबस्त प्रणाली स्थापित की साथ ही राजस्व जिलों का संगठन और पटवारी प्रणाली को लागू करना टोडरमल की ही देन है।
राजा मान सिंह
आमेर यानी जयपुर के राजा मान सिंह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति थे। वे अकबर के ससुर भारमल के पोते थे। मान सिंह एक महान योद्धा थे जिन्होंने अपनी वीरता और युद्ध कौशल से मुगल साम्राज्य को मजबूत बनाया। उन्होंने अकबर की ओर से कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े और विजय प्राप्त की।
सबसे प्रसिद्ध युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध था जो 1576 में लड़ा गया। इस युद्ध में मान सिंह ने मुगल सेना का नेतृत्व किया और महाराणा प्रताप के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
मुल्ला दो प्याजा
मुल्ला दो प्याजा अकबर के अमात्य यानी सलाहकार थे। कुछ स्रोतों के अनुसार वे रसोइया भी थे और खाना बनाने में उनकी खास रुचि थी। किसी भी वाद विवाद में उनकी अच्छी पकड़ होती थी, वे किसी की भी बात काट सकते थे और अपनी बात रखने में कभी नहीं हिचकिचाते थे। अकबर को उनकी यह खासियत पसंद थी और इसीलिए उन्हें नवरत्नों में शामिल किया। मृत्यु के बाद इनकी मजार मध्य प्रदेश के हरदा जिले में बनाई गई है।
हकीम हुकाम या फकीर अजियाओ-दीन
फकीर अजिआओ-दीन अकबर के निजी चिकित्सक यानी हकीम थे। वे एक सूफी फकीर और अकबर के बेहद करीबी थे। अकबर उनसे धार्मिक मामलों में सलाह लेते थे, जिसकी वजह से उन्हें धार्मिक मंत्री बनाया गया था। फकीर अजिआओ-दीन एक रहस्यवादी और आध्यात्मिक समझ रखने वाले व्यक्ति थे।