Vishnudeo Sai Cabinet: गृह मंत्री कौन? छत्तीसगढ़ का कौन होगा गृह मंत्रीः जानिये कौन-कौन हैं दावेदार, किसमें है कितना दम

Vishnudeo Sai Cabinet: किसी भी सरकार में गृह मंत्री का पद बेहद महत्‍वपूर्ण माना जाता है। मुख्‍यमंत्री के बाद दूसरे नंबर का। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के फर्स्ट गृह मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने गृह मंत्री का जलवा काटा तो उन्हें बदल दिया गया। इसके बाद गृह मंत्री के पद को लेकर एक ट्रेंड बन गया था। सवाल है कि क्‍या इस बार वह ट्रेंड टूटेगा।

Update: 2023-12-27 13:49 GMT

Vishnudeo Sai Cabinet: रायपुर। छत्‍तीसगढ़ की विष्‍णुदेव साय सरकार के गठन को करीब 14 दिन हो गए हैं। सीएम और दोनों डिप्‍टी सीएम का शपथ ग्रहण 13 दिसंबर को हुआ था। इसके बाद 21 दिसंबर को मंत्रिमंडल का विस्‍तार हुआ, जिसमें 9 मंत्री कैबिनेट में शामिल किए गए। इस तरह सरकार में अब मुख्‍यमंत्री सहित 12 मंत्री हो चुके हैं, लेकिन मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा अब तक नहीं हुआ है। आम लोग ही नहीं अफसर और खुद मंत्री पद की शपथ लेने वाले भी नहीं जान रहे हैं कि उन्‍हें कौन सा विभाग मिलेगा। इस बीच शपथ ले चुके मंत्री दबी जुबान में अपने लिए विभागों की लॉबिंग करने में जुट गए हैं।

आम और खास सभी लोगों की नजरें विभागों के बंटवारे पर टिकी हुई है। सबसे ज्‍यादा दिलचस्‍पी गृह विभाग को लेकर है। वजह यह है कि मुख्‍यमंत्री के बाद सबसे महत्‍वपूर्ण पद गृह मंत्री का ही होता है। सरकार में इस पद को दूसरे नंबर का माना जाता है। डॉ. रमन सिंह के 15 वर्षों के कार्यकाल के दौरान गृह मंत्री के पद को लेकर एक ट्रेंड बन गया था। डॉ. रमन के पहले कार्यकाल के शुरुआती 2 वर्ष को छोड़कर पूरे समय गृह मंत्री का पद आदिवासी नेता को मिलता रहा है। राम विचार नेताम, राम सेवक पैकरा और ननकीराम कंवर रमन सरकार में गृह मंत्री रहे।

2003 में जब पहली बार राज्‍य में भाजपा की सरकार बनी तब रायपुर शहर सीट से चुनाव जीतकर पहुंचे बृजमोहन अग्रवाल को गृह मंत्री का पद मिला, लेकिन 2 वर्ष बाद 2005 में उनसे गृह विभाग लेकर राम विचार नेताम को सौंप दिया गया। इसके बाद किसी भी सामान्‍य या ओबीसी वर्ग के मंत्री को गृह विभाग की कमान नहीं सौंपी गई। इसकी एक वजह यह मानी जाती है कि चूंकि मुख्‍यमंत्री डॉ. रमन सिंह सामान्‍य वर्ग से थे इस वजह से आदिवासी वर्ग के वोटरों को संतुष्‍ट करने के लिए आदिवासी को गृह मंत्री बनाया गया। हालांकि, दबी जुबान से सियासी प्रेक्षक यह भी स्वीकार करते हैं कि गृ मंत्री के तौर पर बृजमोहन का तामझाम और जलवा बढ़ने लगा था। इसको देखते बीजेपी के रणनीतिकारों ने इस आड़ में उन्हें किनारे किया कि नक्सल स्टेट में आदिवासी को गह मंत्री होना चाहिए। लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग है। 18 साल में खारुन नदी में काफी पानी बह गया है। बीजेपी में मोदी और अमित शाह का दौर चल रहा है। इस बार बीजेपी ने विष्‍णुदेव साय के रुप में एक आदिवासी को मुख्‍यमंत्री बना दिया है। ऐसे में स्‍वभाविक रुप से माना जा रहा है कि गृह मंत्री का पद किसी ओबीसी या सामान्‍य वर्ग के मंत्री के खाते में जा सकता है।

साय कैबिनेट में 2 मंत्री ऐसे हैं जिनका नाम मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ में शामिल था। इनमें प्रदेश अध्‍यक्ष रहे अरुण साव और वरिष्‍ठ आदिवासी मंत्री राम विचार नेताम शामिल हैं। नेताम आदिवासी हैं, इस वजह से उन्‍हें गृह मंत्री बनाने की संभावना बहुत कम है। सत्ता के गलियारों में जैसी कि चर्चाएं हैं, गृह मंत्री दूसरे नंबर का पद होता है। चूकि दूसरे नंबर पर दो डिप्टी सीएम हैं...अरुण साव और विजय शर्मा, लिहाजा दोनों इस पद के स्वाभाविक दावेदार माने जा रहे हैं। गृह मंत्रालय को लेकर भाजपा के अंदरखाने से कुछ अलग तरह की भी खबरें निकल कर आ रही हैं। वह यह कि अरुण साव लोकसभा के सदस्य रहे हैं और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री पद के भी वे प्रबल दावेदार रहे। इस नाते उनकी गृह विभाग को लेकर तगड़ी दावेदारी है। उधर, पहली बार विधायक चुने जाने वाले विजय शर्मा पहली बार में ही डिप्टी सीएम बन गए। विजय नई पीढ़ी के फायर ब्रांड नेता हैं...कवर्धा में कद्दर मंत्री मोहम्मद अकबर को हराने के बाद हिन्दुत्व के आईकान के तौर पर उभरे हैं। उनकी भी गृह मंत्रालय में दिलचस्पी है। अब दो उप मुख्यमंत्रियों की एक विभाग में दिलचस्पी होगी तो ऐसे में बीजेपी को तय करना होगा कि इन दोनों नेताओं में से किसी एक को गृह मंत्री बनाया जाए या फिर किसी तीसरे को कमान सौंपी जाए।

बघेल सरकार में ओबीसी को मिला गृह विभाग

पूर्ववर्ती भूपेश बघेल की सरकार में गृह मंत्री का पद ताम्रध्‍वज साहू के पास था। 2018 में साहू भी मुख्‍यमंत्री पद के दावेदार थे। माना जाता है कि साहू समाज से होने की वजह से उन्‍हें गृह मंत्री बनाया गया था। बता दें कि छत्‍तीसगढ़ में ओबीसी वर्ग में साहू वोटरों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा है। बहरहाल, ये अवश्य है कि गृह मंत्रालय में पुलिस और सिक्यूरिटी का तामझाम होता है मगर छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल राज्य में गृह मंत्रालय किसी चुनौती से कम नहीं है। रमन सरकार में बृजमोहन अग्रवाल को गृह मंत्री से हटा दिया गया था। उसकी वजह बृजमोहन अग्रवाल की खुद की पर्सनालटी है। वे किसी भी विभाग में रहे, अपना औरा बना लेते हैं। बृजमोहन के अलावा किसी और मंत्री ने गृह लेने में कभी कोई रुचि नहीं दिखाई।

पढ़ें- डिप्‍टी सीएम अरुण साव का सफरनामा 

पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़कर 45 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीतने वाले अपने प्रदेश अध्यक्ष को भाजपा ने सूबे के दूसरे बड़े पद डिप्टी सीएम से नवाजा हैं। कानूनविद अरुण साव बिलासपुर लोकसभा से 2019 के लोकसभा चुनाव में सांसद निर्वाचित हुए थे। साथ ही वह प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाल रहे थे। उनके नेतृत्व में ही भाजपा ने चुनाव लड़कर 2023 का किला फतह किया है। विधायक निर्वाचित होने के बाद अरुण साव ने सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी व राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थानेश्वर साहू को लोरमी विधानसभा से चुनाव हराया हैं। 13 दिसंबर 2023 को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में शपथ ग्रहण किया हैं।

संघ से है पुराना नाता

अरुण साव का जन्म 25 नवंबर 1968 को मुंगेली के लोहड़िया गांव में हुआ था। उनके पिता स्व. अभयाराम साव 80 के दशक में मुंगेली मंडल के अध्यक्ष रहें। तथा 1977 से 1980 तक जरहागांव विधानसभा के चुनाव संचालक रहें। जनसंघी पिता से अरुण साव को बचपन से संघ के संस्कार मिले। अरुण साव कबीर वार्ड मुंगेली में रहकर पले–बढ़े है। मुंगेली के एसएनजी कॉलेज से बीकॉम कर बिलासपुर से एलएलबी किया। वह 1990 से 1995 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मुंगेली तहसील इकाई के अध्यक्ष रहे। फिर जिला 1996 में युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष, प्रांतीय सह मंत्री और राष्ट्रीय कार्य समिति सदस्य बने। तत्कालीन विधायक अमर अग्रवाल के साथ महामंत्री भी रहें। ग्रेजुएशन के दौरान कॉलेज में सीआर ( कक्षा प्रतिनिधि) बनें। साहू समाज की राजनीति में भी अरुण साव की अच्छी पैठ है। साहू समाज युवा प्रकोष्ठ मुंगेली के तहसील सचिव के अलावा जिला अध्यक्ष साहू समाज भी रहें। छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू समाज के सह संयोजक बने।

अरुण साव की शादी मीना साव से हुई है। अरुण साव 1996 से 2005 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा मे विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। 1998 में दशरंगपुर से जनपद सदस्य के लिए भाजपा समर्थित प्रत्याशी बनें। 2001 से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की स्थापना के साथ ही अरुण साव यहां वकालत कर रहें हैं। 2004 में राज्य सरकार के पैनल लायर, 2005 से 2007 तक उप शासकीय अधिवक्ता, 2008 से 2013 तक उपमहाधिवक्ता छत्तीसगढ़ शासन रहें।

पिछली बार बिलासपुर लोकसभा से लखनलाल साहू सांसद निर्वाचित हुए थे। वे 1 लाख 76 हजार वोट से विजयी हुए थे। बावजूद इसके उनका टिकट काट कर अरुण साव को टिकट दिया गया और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव को हरा कर जीत हासिल की थी। अगस्त 2022 को आदिवासी वर्ग के विष्णुदेव साय को हटा कर अरुण साव को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंपा गया। प्रदेश में बड़ी संख्या में ओबीसी वोटो की बहुलता को देखते हुए अरुण साव को अध्यक्ष बनाना ओबीसी वोटों को साधने की कवायद के रूप में देखी जा रही हैं।अरुण साव को कुल 75070 वोट मिले है। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी थानेश्वर साहू को 29179 वोट मिले है। अरुण साव ने 45891 वोट से जीत हासिल की है। वही जोगी कांग्रेस 15910 वोट मिले है। पिछले चुनाव में यहां से चुनाव लड़ रहे धर्मजीत सिंह को 51608 वोट मिले थे। नोटा को यहां से 814 वोट मिले है। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां तोखन साहू को टिकट दिया था। पर उन्हें छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के धर्मजीत सिंह से हार का सामना करना पड़ा था।

वकाल करते-करते राजनीति में भी रहे सक्रिय

अरुण साव लगभग 33 साल से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं। उन्होंने वकालत और राजनीति में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया है। साव का पैतृक गांव लोहड़िया है और उन्होंने बीकाम एसएनजी कालेज मुंगेली से तथा एलएलबी कौशलेंद्र राव विधि महाविद्यालय बिसालपुर से किया है। राजनीतिक जीवन में निरंतर पहचान बनाने के साथ ही साव वकालत में भी सक्रिय रहे। उन्होंने 1996 में सिविल न्यायालय मुंगेली से वकालत आरंभ की। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर में वकालत आरंभ की। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में उप शासकीय अधिवक्ता, शाकीय अधिवक्ता एवं उप महाधिवक्ता जैसे पदों में रहे।

पढ़ें- डिप्‍टी सीएम विजय शर्मा का सफरनामा

छत्‍तीसगढ़ के डिप्‍टी सीएम बनाए गए विजय शर्मा मास्टर आफ कम्प्यटूर एप्लीकेशन (MCA) किया है। उन्‍होंने अपने कॉरियर की शुरुआत इसी डिग्री के आधार पर नौकरी से की थी। शुरुआत में उन्‍होंने कुछ कॉलेजों में अध्यापन का कार्य किया फिर एमसीए की डिग्री के आधार पर उन्‍हें पेजर कंपनी में नौकरी की। इसके बाद वे लंबे समय तक रिलायंस टेलीकॉम में ऑपरेटर के रुप में काम किया। छत्‍तीसगढ़ राज्‍य का निर्माण (2000) हुआ तब वे रिलायंस के साथ ही जुड़े हुए थे। चर्चित कवर्धा विधानसभा से भाजपा के विजय शर्मा ने कांग्रेस के कद्दावर मंत्री रहे मोहम्मद अकबर को 39592 वोटों के अंतर से चुनाव हराया है। भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें छत्तीसगढ़ का उप मुख्यमंत्री बनाया है। डिप्टी सीएम के रूप में विजय शर्मा ने 13 दिसंबर को शपथ ली। सामुदायिक तनाव व हिंसा के बाद हाईप्रोफाइल सीट बनी कवर्धा से भाजपा ने विजय शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया था।

भाजपा के तेज तर्रार नेताओं में होती है गिनती

विजय शर्मा वर्तमान में प्रदेश भाजपा संगठन में महामंत्री के पद पर है। पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर चुके विजय शर्मा कवर्धा के जिला भाजपा अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसके अलावा जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। 50 वर्षीय विजय शर्मा को भाजपा के तेज तर्रार नेताओं में गिना जाता है। वे भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। पिछले पांच सालों से सत्ताधारी पार्टी से लड़ाई लड़ने के दौरान झंडा कांड में जेल भी गए थे।

भौतिक शास्‍त्र में एमएससी और एमसीए की भी डिग्री

विजय शर्मा के पिता का नाम रतन लाल शर्मा है। वे मकान नंबर 26 शास्त्री मार्ग महावीर स्वामी चौक कवर्धा तहसील कवर्धा जिला कबीरधाम के रहने वाले हैं। उनका मोबाइल नंबर 9425564966 है। उनका विवाह रश्मि शर्मा से हुआ है। पुत्र का नाम अभिनव शर्मा है। विजय शर्मा ने शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कवर्धा माध्यमिक शिक्षा मंडल भोपाल मध्य प्रदेश से सन 1991 में 12वीं बोर्ड पास किया है। इसके बाद पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी रायपुर से संबद्ध शासकीय महाविद्यालय कवर्धा से 1994 में बीएससी गणित किया है। 1996 में पंडित रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी रायपुर से भौतिक शास्त्र में एमएससी किया है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से ही 1997 में पीजीडीसीए किया है। सन 1998 में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से डिप्लोमा इन इंग्लिश किया है। 2001 में भोज विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश भोपाल से एमसीए किया है।

कवर्धा में हुए झंडा विवाद से आए चर्चा में

कवर्धा विधानसभा सीट में झंडा विवाद का बड़ा असर देखने को मिला है। वर्ष 2021 में कवर्धा शहर में हुए झंडा विवाद के चलते कर्फ्यू की स्थिति बनी थी और प्रदेश भर के बड़े अफसर व पुलिस बल को कवर्धा में तैनात करना पड़ा था। हालात यहां तक बने कि पुलिस अधीक्षक का लॉ एंड ऑर्डर के चलते तबादला करना पड़ा। भाजपा ने इस सीट पर हिंदुत्व को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा। यहां प्रचार करने के लिए हिंदुत्व का चेहरा माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद कवर्धा विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी विजय शर्मा के प्रचार के लिए पहुंचे। जिसका फायदा भी भाजपा को मिला और शहर के साथ ही वनांचल क्षेत्र में भी भाजपा आगे बढ़ गई और पिछले चुनाव में 58000 वोट से जीतने वाले मोहम्मद अकबर इस बार हार गए।

जनता की समस्‍याओं को लेकर मुखर रहते हैं शर्मा

विजय शर्मा की जीत का मुख्य आधार उनकी जनता की समस्याओं को मुखर होकर सामने लाना है। चाहे वह धान खरीदी मामला हो या फिर राशन कार्ड बनवाना बिजली व्यवस्था में सुधार करना जैसे कार्य को वह जनता के बीच जाकर ही कराते रहे। इसके लिए वह अधिकारियों से लड़ते सांस ही जनता की समस्याओं के समाधान के लिए धरना प्रदर्शन तक किया। उन्होंने कवर्धा विधानसभा अंतर्गत मैदानी वनांचल गांव में पानी बिजली सड़क स्वास्थ्य जैसी मूलभूत समस्याओं को दूर करने का वादा किया था। सरकार रहने के बाद भी यह पूरा नहीं हुआ जिससे लोगों में आक्रोश भी था।कवर्धा विधानसभा में 2695 35 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। भाजपा के प्रत्याशी विजय शर्मा को 1442 257 वोट मिले। वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी मोहम्मद अकबर को 104665 वोट मिले। मोहम्मद अकबर को विजय शर्मा ने 39552 वोटो से हराया। इस विधानसभा में तीसरे स्थान पर आम आदमी पार्टी के खड्गराज सिंह रहे उन्हें 6334 वोट मिले। नोटा को 925 वोट मिले। इस विधानसभा से 16 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे।कवर्धा विधानसभा में 81.34% पुरुषों एवं 81.1 15% महिलाओं ने मतदान किया। मोहम्मद अकबर को महिला व पुरुष मिला कर कुल 38.61% वोट मिले। वही विजय शर्मा को 53.22% वोट मिले।

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