तुलसीदास जयंती: जन्म लेते ही तुलसीदास के मुख से निकला था 'राम', तुलसीदास की जन्मस्थली,तीर्थनगरी सोरोंजी ही है
नई दिल्ली । हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। इस साल तुलसीदास जयंती 4 अगस्त, गुरुवार को है। गोस्वामी तुलसीदास भक्ति रस के कवि थे। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की लेकिन रामचरितमास की रचना कर तुलसीदास अमर हो गए। कहा जाता है कि जब तुलसीदास का जन्म हुआ तो उनके मुख से 'राम' शब्द निकला था। यही कारण है कि उनका नाम रामबोला पड़ गया। तुलसीदास का जन्म चित्रकूट के राजापुर गांव में आत्माराम दुबे और हुलसी के घर पर संवत 1554 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था।
तुलसी की जीवनी में सदैव सोरोंजी जन्मस्थान छपता रहा
हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य प्रोफेसर डॉ. योगेंद्र मिश्र ने बताया कि शूकर क्षेत्र सोरोंजी में संत तुलसीदास का जन्म हुआ यह सत्य सभी को मुक्त भाव से स्वीकारना होगा। इस सत्य को छीनने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। संत तुलसीदास ने 36 वर्ष की अवस्था में सोरोंजी से प्रस्थान किया और उन्होंने 63 वर्ष की अवस्था तक अयोध्या, प्रयाग, मथुरा, कासगंज आदि स्थानों में भ्रमण किया। 89 वर्ष की अवस्था तक चित्रकूट व यमुना किनारे निवास करते रहे।
कई ग्रंथों की रचना-
तुलसीदास रामचरितमानस, बरवै रामायण, विनय पत्रिका, राम लला नहछू आदि प्रमुख ग्रंथों के रचयिता हैं। राम भक्त हनुमान को तुलसीदास का अध्यात्मिक गुरू कहा जाता है। हनुमान जी की उपासना के लिए भी तुलसी दास ने विभिन्न रचनाएं लिखी हैं। जिनमें हनुमान चालिसा और बजरंग बाण आदि प्रमुख हैं।
तीर्थ पुरोहित पंडित अखिलेश तिवारी ने कहा कि तीर्थनगरी में आकर तमाम शोधार्थियों ने शोध किया है और सोरोंजी को संत तुलसीदास की जन्मभूमि माना है। स्वयं संत तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है कि- मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेत, समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहउं अचेत। उन्होंने इस दोहे माध्यम से बताया कि सूकरक्षेत्र में बालपन में संत तुलसीदास ने अपने गुरु से रामकथा सुनी, लेकिन बालअवस्था के कारण समझ नहीं पाए। लगातार इसे सुनते हुए भाषा बद्ध किया है। उनका जन्म सोरों जी में ही हुआ है। तुलसीदास जी ने उस समय में समाज में फैली अनेक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने सामाज में उत्पन्न बुराईयों को खत्म करने की बात कहीं। आज भी देशभर में रामलीलाओं का मंचन होता है। तुलसीदास जयंती पर पूरे देशभर में रामचरित मानस व ग्रंथों का पाठ किया जाता है। तुलसीदास जी ने अपना अंतिम समय काशी में बिताया और वहीं राम जी के नाम का स्मरण करते हुए अपने शरीर का त्याग किया।