President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh: राष्‍ट्रपति के लिए सामने आई 1300 साल पुरानी मंजुश्री, जानिए... क्‍या है मामला

President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh:

Update: 2023-08-31 14:03 GMT

President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh: रायपुर। छत्‍तीसगढ़ प्रवास के पहले दिन राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राजधानी रायपुर के विभिन्‍न कार्यक्रमों में शामिल हुईं। इस दौरान वे यहां स्थित महंत घासी संग्राहालय भी गईं। जहां वे राज्‍य की पुरातात्विक वैभव से रू-ब-रू हुईं। राष्ट्रपति ने इस बहुआयामी संग्रहालय में छत्तीसगढ़ और अन्य क्षेत्रों से प्राप्त प्राचीन मूर्तियों, अभिलेखों और ताम्रपत्रों के बारे में विस्तार से जाना। वे यहां की प्राचीन मूर्त धरोहर, राम वन गमन पथ व शिवनाथ नदी के दोनों ओर बसे गढ़ों से भी रू-ब-रू हुईं। संग्रहालय के भ्रमण के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राष्ट्रपति को तालागांव से प्राप्त रुद्रशिव प्रतिमा की प्रतिकृति भेंट की।

President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अपने दो दिवसीय छत्तीसगढ़ प्रवास के पहले दिन आज रायपुर में महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय का अवलोकन किया। वे इस दौरान छत्तीसगढ़ की पुरातात्विक वैभव से रू-ब-रू हुईं। 

संग्रहालय में राष्‍ट्रपति मुर्मू को मंजुश्री की मूर्ति भी दिखाई गई। करीब 1300 साल पुरानी यह मूर्ति सुरक्षाकारणों से ज्‍यादातर समय डब्‍ल लॉक में रखी जाती है। यानी इस मूर्ति को आम लोग नहीं देख पाते हैं। राष्‍ट्रपति के लिए इस मूर्ति को आज लॉकर से बाहर निकाला गया। यह प्रतिमा सिरपुर में मिली थी। बताते चले कि 5वीं शताब्‍दी के शहर सिरपुर की खुदाई के दौरान बौद्धकाल की कई निशानियां मिली हैं। लेकिन इनमें कांस्‍य की बनी मंजुश्री की मूर्ति खास है। हाथ में पुस्तक, कमल की डंडी, गले में रत्नों की माला है। बीच में हरे पन्ने का रंग प्रतिमा को बेहद खास बनाता है। एक प्रतिमा के सामने भक्त की छोटी मूर्ति है।

President Draupadi Murmu Visit in Chhattisgarh: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अपने दो दिवसीय छत्तीसगढ़ प्रवास के पहले दिन आज रायपुर में महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय का अवलोकन किया। वे इस दौरान छत्तीसगढ़ की पुरातात्विक वैभव से रू-ब-रू हुईं। 

राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन और संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने भी राष्ट्रपति के साथ संग्रहालय का अवलोकन किया। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 21 मार्च 1953 को महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय भवन का उद्घाटन किया था। यह संग्रहालय न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश में अपनी प्राचीनता और पुरातनता के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रपति मुर्मु ने महंत घासीदास संग्रहालय में बिलासपुर जिले के तालागांव में देवरानी मंदिर से प्राप्त रुद्रशिव प्रतिमा, सरगुजा के रामगढ़ में पत्थरों को काटकर बनाई गई विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला के रूप में मशहूर सीताबेंगरा गुफा, सिरपुर में पक्के ईंटों से निर्मित लक्ष्मण मंदिर, शिल्प और स्थापत्य में समानता के कारण छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहे जाने वाले भोरमदेव के शिव मंदिर और बारसूर में पत्थर से निर्मित भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा की प्रतिकृतियों और तस्वीरों का अवलोकन किया। उन्होंने सिरपुर में वर्ष 1953 में टीलों की खुदाई में प्राप्त धातु निर्मित बौद्ध मूर्तियों जिनमें बौद्ध धर्म में ज्ञान के देवता मंजुश्री, भूमिस्पर्शमुद्रा व वरमुद्रा में बुद्ध और उनके अवतार वज्रपाणी की प्रतिमाएं शामिल हैं, उनको भी देखा। ये प्रतिमाएं केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि देश की उत्कृष्ट धातु शिल्प की धरोहर हैं जिनका प्रदर्शन कई अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में हो चुका है। इन मूर्तियों को यहां संग्रहालय में सुरक्षित ढंग से रखा गया है।

राष्ट्रपति ने संग्रहालय के भ्रमण के दौरान रतनपुर से मिले 11वीं और 12वीं शताब्दी की भगवान विष्णु की प्रतिमा तथा जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के बारे में भी जाना। इनमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ तथा 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की प्रतिमाएं शामिल हैं। उन्होंने ग्राम किरारी के तालाब से प्राप्त दो हजार वर्ष पुराना और अनूठा काष्ठ स्तंभ लेख तथा सिरपुर से खुदाई में मिला एक हजार वर्ष पुराना मिट्टी का अन्न संग्राहक पात्र भी देखा। राष्ट्रपति के संग्रहालय भ्रमण के दौरान संस्कृति विभाग के सचिव अन्बलगन पी. और संचालक विवेक आचार्य भी मौजूद थे।

राष्ट्रपति ने गौरवशाली अतीत के साक्ष्यों को संभालने के लिए संग्रहालय की पूरी टीम को दी बधाई

महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय के भ्रमण के बाद राष्ट्रपति मुर्मु ने संग्रहालय की टीम की सराहना की। उन्होंने विजिटर्स बुक में लिखा कि यहां प्रदर्शित कलाकृतियां और प्राचीन अवशेष भारतीय इतिहास के ज्ञान में वृद्धि करते हैं। रुद्रशिव की मूर्ति, सिरपुर की धातु मूर्तियां तथा लकड़ी के खंभे पर दो हजार साल पहले लिखा गया लेख इस संग्रहालय में सावधानीपूर्वक रखे गए हैं। उन्होंने गौरवशाली अतीत के साक्ष्यों को संभालने के लिए संग्रहालय की पूरी टीम को बधाई दी।

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