वन रैंक वन पेंशन: SC ने सरकार के फैसले को रखा बरकरार, कहा- इसमें कोई कमी नहीं
नईदिल्ली 16 मार्च 2022. सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों के लिए लागू वन रैंक वन पेंशन की मौजूदा नीति को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस नीति में कोई संवैधानिक कमी नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि नीति में पांच साल में पेंशन की समीक्षा का प्रावधान है. इसलिए सरकार एक जुलाई 2019 की तारीख से पेंशन की समीक्षा करे. कोर्ट ने सरकार को तीन महीने में बकाया राशि का भुगतान करने को कहा है.
केंद्र सरकार ने 7 नवंबर 2015 को वन रैंक वन पेंशन' (OROP) योजना की अधिसूचना जारी की थी. इसमें कहा गया था कि योजना 1 जुलाई, 2014 से प्रभावी मानी जाएगी. इंडियन एक्स-सर्विसमैन मूवमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों की 5 साल में एक बार पेंशन की समीक्षा करने की सरकार की नीति को चुनौती दी है. वहीं केंद्र ने दायर हलफनामे में 2014 में संसद में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान पर विसंगति का आरोप लगाया है. केंद्र ने कहा कि चिदंबरम का 17 फरवरी 2014 का बयान तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया गया था. दूसरी ओर कैबिनेट सचिवालय ने 7 नवंबर, 2015 को भारत सरकार (कारोबार नियमावली) 1961 के नियम 12 के तहत प्रधानमंत्री की मंजूरी से अवगत कराया है.
बता दें, वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर इंडियन एक्स सर्विसमेन मूवमेंट की ओर से एक याचिका दाखिल की गई थी. इस मामले पर सुनवाई पिछले महीने फरवरी में ही हो गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रख लिया था.
इस मामले में याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (IESM) ने वन रैंक वन पेंशन पर 7 नवंबर, 2015 को दिए फैसले को चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन ने इसमें दलील देते हुए कहा था कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है. आईईएसएम का कहना है कि, यह वर्ग के अंदर एक और वर्ग बनाता है और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग पेंशन देता है, दूसरे को अलग.
मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सरकार से कई सवाल किए. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र से पूछा था कि क्या केंद्र पेंशन के स्वत: वृद्धि के फैसले पर वापस चला गया है. पेंशन संशोधन 5 साल पर क्यों तय किया गया? कोर्ट ने पूछा कि इसे सालाना क्यों नहीं किया जा सकता?