Om Mathur vs Selja: ओम माथुर वर्सेज सैलजाः संगठनात्मक व्यूहरचना में भारी पड़ रहे ओम, सैलजा के होते बालदास का BJP में जाना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका
Om Mathur vs Selja: संगठनात्मक ढांचे की बात करें तो भाजपा प्रभारी ओम माथुर लगभग सभी विधानसभा के कार्यकर्ताओं से बात कर चुके हैं। कांग्रेस प्रभारी कुमारी सैलजा सभी सीटों तक नहीं पहुंच पाई हैं। कांग्रेस के लिए सतनामी समाज के धर्म गुरु बालदास का जाना बड़ा झटका है।
Om Mathur vs Selja: रायपुर। छत्तीसगढ़ में अब सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा चुनावी मोड पर आ चुके हैं। भाजपा ने तो 21 उम्मीदवारों की सूची जारी कर पहली चाल चल दी है। अब कांग्रेस की बारी है। जहां तक संगठनात्मक ढांचे की बात करें तो भाजपा प्रभारी ओम माथुर लगभग सभी विधानसभा के कार्यकर्ताओं से बात कर चुके हैं। कांग्रेस प्रभारी कुमारी सैलजा सभी सीटों तक नहीं पहुंच पाई हैं। कांग्रेस का संकल्प शिविर भी 90 में से आधी सीटों तक नहीं हो पाया है। इस पखवाड़े तक पहली सूची जारी होने की उम्मीद जताई जा रही है। सियासी पंडितों को सबसे अधिक सतनामी समाज के धर्म गुरू बालदास का भाजपा प्रवेश चौंकाया। कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी सैलजा दलित समुदाय से आती हैं फिर भी बालदास ने भाजपा का दामन थाम लिया। बालदास ने 2013 के विस चुनाव में भाजपा का साथ दिया था तो 10 में से नौ सीटें बीजेपी की झोली में चली गई। और 2018 में कांग्रेस को सपोर्ट किया तो 10 में से सात सीटें सत्ताधारी पाटी को मिल गई।
राज्य में यह विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास होने जा रहा है। 15 साल तक भाजपा सरकार वर्सेस कांग्रेस रहा। इस बार कांग्रेस सरकार वर्सेस भाजपा के बीच मुकाबला है। सरकार की बात करें तो भूपेश बघेल ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो हर विधानसभा तक पहुंच चुके हैं। इसमें भी बाकायदा तीन-तीन गांव के लोगों से सीधी बात कर चुके हैं। एक-एक विधानसभा में तीन-तीन जगह भेंट मुलाकात कार्यक्रम के बाद अब वे युवाओं से सीधे संवाद कर रहे हैं। मगर संगठन लेवल पर जिस तरह काम होना चाहिए उसमें कांग्रेस के लोगों का ही मानना है कि पार्टी उसमें पिछड़ रही है।
संगठन के लिहाज से देखें तो भाजपा ने ओम माथुर जैसे दिग्गज रणनीतिकार को उतारा है। माथुर के नाम पर गुजरात से लेकर महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में जीत दिलाने का सेहरा बंधा है। दूसरी ओर कांग्रेस की प्रभारी कुमारी सैलजा हैं। पीएल पुनिया के बाद सैलजा प्रभारी बनीं। उनके प्रभारी बनने के बाद पीसीसी चीफ बदले और प्रदेश कार्यकारिणी भी। मगर संगठन को जिस तरह रिचार्ज होना चाहिए वो नजर नहीं आ रहा। यद्यपि, सैल्जा की गिनती तेज तर्रार नेत्री में होती है। केंद्र में वे मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन पीएल पुनिया की तरह छत्तीसगढ़ में प्रभाव नहीं दिखा पा रही हैं।
बालदास का जाना बड़ा झटका
कांग्रेस के लिए सतनामी समाज के धर्म गुरु बालदास का जाना बड़ा झटका है। 2013 के चुनाव में भाजपा की जीत में धर्म गुरु बालदास की बड़ी भूमिका मानी जाती है। छत्तीसगढ़ में एससी समाज के लिए 10 सीटें आरक्षित हैं। उस दौर में एससी समाज की सरकार के प्रति नाराजगी मानी जा रही थी, लेकिन भाजपा ने धर्म गुरु को बड़ी जिम्मेदारी दी। वे एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों के अलावा एससी बहुल अन्य सीटों पर भी गए। बाकायदा उन्हें हेलिकॉप्टर भी उपलब्ध कराया गया था। इसका असर दिखा और भाजपा 9 सीटें जीती थी। 2018 में बालदास कांग्रेस से जुड़ गए। तब पीएल पुनिया प्रभारी थे। पुनिया की खासियत यह रही कि उन्होंने पार्टी में समन्वय बनाकर रखा।
नए चेहरों को दांव देने का दबाव
भाजपा ने 21 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर यह संकेत दे दिए हैं कि इस बार वह नए चेहरों पर दांव लगाएगी। पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा और ओबीसी समाज के बड़े नेता चंद्रशेखर साहू को टिकट नहीं मिली। यह सब माथुर की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस में पहले ही 71 विधायक हैं। सिटिंग एमएलए की टिकट काटना पार्टी के लिए आसान बात नहीं होगी। नहीं काटने की स्थिति में भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि राज्य सरकार को लेकर नहीं, बल्कि विधायकों के लिए नाराजगी है। ऐसे में सैलजा के सामने यह चुनौती होगी कि किस सीट से किसका नाम काटें और कितने नए चेहरों को मौका दें।
कांग्रेस को सीटें खोने का ज्यादा डर
छत्तीसगढ़ में अभी के हालात को देखें तो भाजपा के बजाय कांग्रेस को सीटें खोने का डर है, क्योंकि भाजपा के पास 14 सीटें हैं। भाजपा संगठन इस बात के लिए आश्वस्त है कि हर हाल में सीटों की संख्या बढ़ेगी। इसी आत्म विश्वास के साथ भाजपा ने आचार संहिता से काफी पहले 21 प्रत्याशी घोषित कर दिए। इसके विपरीत कांग्रेस में फिलहाल टिकट घोषित करने पर मंथन चल रहा है। दावेदारों की संख्या दर्जनों में है। बेलतरा जैसी सीटों पर 100 के करीब दावेदार हैं। ऐसे में टिकट वितरण में चूक का खामियाजा कांग्रेस को हो सकता है। सियासी प्रेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी पार्टी के विधायकों के खिलाफ एंटी इंकाम्बेंसी अधिक है। कांग्रेस जितने नए विधायकों को टिकिट देगी, उसकी जीत की गारंटी उतनी ही बढ़ेगी।