NPG विशेष: भूपेश Vs रमन होगा अगला चुनाव! Ex सीएम 70 साल के हुए पर आक्रामकता बढ़ी, बीजेपी में चेहरे बदले मगर विरोध के केंद्र में रमन ही
मनोज ब्यास
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बार फिर भूपेश बघेल वर्सेस डॉ. रमन सिंह की स्थिति बन गई है। इतना ही अलग है कि चार साल पहले बघेल पीसीसी अध्यक्ष थे और रमन मुख्यमंत्री और अब रमन पूर्व मुख्यमंत्री व बघेल मुख्यमंत्री हैं। इसमें यह भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के रूप में दो अहम चेहरे बदल गए लेकिन केंद्र में रमन सिंह ही हैं।
छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री या 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह 70 साल के हो गए हैं। हालांकि पिछले कुछ समय में उनमें आक्रामकता लगातार बढ़ी है। ऐसे समय में जब छत्तीसगढ़ में एक पक्ष लगातार यह बातें प्रचारित करता रहा कि उन्हें राज्यपाल बनाकर भेजा जाएगा, तब भी उनके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखे कि वे छत्तीसगढ़ की राजनीति से अलग हो सकते हैं या विपक्ष के चेहरे के रूप में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय या नेता प्रतिपक्ष के रूप में धरमलाल कौशिक या अब अरुण साव व नारायण चंदेल आवाज उठाएं। रमन तब भी और अब भी लगातार सक्रिय हैं। कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री बघेल के निशाने पर भी रमन ही हैं। जाहिर है कि पार्टी के केंद्र में कहीं न कहीं रमन की भूमिका बनी हुई है। समय समय पर जब केंद्रीय नेता राजधानी रायपुर आए तब वे रमन के निवास पर रुककर ही एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए हैं।
मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद जब जोगी शासन का मुकाबला करने की बारी आई तब रमन सिंह से केंद्रीय राज्यमंत्री का पद लेकर प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बुलाया गया था। उस समय जो हालात थे, उसमें यह उम्मीद नहीं थी कि भाजपा सत्ता में आ सकती है, क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी साम दाम दण्ड भेद की राजनीति में माहिर थे। हालांकि राजनीतिक पंडितों के कयास कमजोर साबित हुए और भाजपा सत्ता में आ गई। यह ऐसा समय था, जब भाजपा को सत्ता का उतना अनुभव नहीं था, फिर भी सरकार चल निकली और देखते देखते 15 साल तक भाजपा सत्ता में रही। एक और दो रुपए किलो चावल जैसी योजनाओं ने चाऊंर वाले बाबा के रूप में मशहूर किया। इन्फ्रास्ट्रक्चर की मजबूत नींव डली। हालांकि, इस बीच कई विवादों से भी नाम जुड़ा, लेकिन ऐसे कोई तथ्य सामने नहीं आ पाए।
इन सवाल और जवाब से समझें क्या है समीकरण
क्या छत्तीसगढ़ भाजपा सर्वमान्य नेता की कमी से जूझ रही है? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि 15 साल तक रमन सिंह ही पार्टी का चेहरा थे। इस बीच ऐसे चेहरे सामने नहीं आए या मजबूती से स्थापित नहीं हो पाए जो रमन सिंह को रिप्लेस कर सके। अरुण साव भी कार्यकर्ताओं के पास जाकर एक ट्यूनिंग बनाने के लिए जूझ रहे हैं। उन्हें सर्वमान्य चेहरा बनने में वक्त लगेगा। फिर क्या रमन सिंह के चेहरे पर ही भाजपा चुनाव लड़ेगी? इसका जवाब जानकार नेता इस रूप में देते हैं कि रमन पोस्टर में चेहरा नहीं होंगे। पोस्टर में नरेंद्र मोदी होंगे, लेकिन परदे के पीछे उनकी भूमिका रहेगी।
इसी में एक बात यह भी कही जा रही है कि पिछले कुछ सालों में भाजपा के दिग्गज नेता किनारे कर दिए गए हैं। इनमें नितिन गडकरी जैसे नेता भी शामिल हैं, जो पीएम कैंडिडेट के रूप में भी देखे जाते थे। इसके विपरीत रमन सिंह की छवि ऐसे नेताओं के रूप में नहीं रही, जो पीएम बनने के लिए लॉबिंग कर रहे हों। वे हमेशा पार्टी लाइन पर चलने वाले नेता माने गए। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि उनके जरिए भाजपा यह संदेश दे सकती है कि सारे वरिष्ठ नेताओं को किनारे नहीं किया गया है। जन्मदिन के बहाने क्या यही संदेश देने की कोशिश की गई है? कोराेना के बाद रमन सिंह का यह जन्मदिन खास रहा। अखबारों के पहले और अंतिम पेज पर विज्ञापन और अभिनंदन समारोह के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई कि परदे के पीछे रमन सिंह की भूमिका अब भी काफी महत्वपूर्ण है।