Raipur Land Scam: 1 प्लॉट की 3 रजिस्ट्री, तीनों में अलग-अलग रेट, पार्किंग तक में रजिस्ट्री, सरकार और इंकम टैक्स को लगाया चूना, रजिस्ट्री अफसरों को क्लीन चिट, सरकार को किया गुमराह

Raipur Land Scam: रजिस्ट्री विभाग ने एक ही जमीन की तीन अलग-अलग लोगों के नामे रजिस्ट्री कर दी। तीनों में गाइइलाइन रेट में खेल करके सरकार के खजाने का बड़ा चूना लगाया। पहली रजिस्ट्री में टीडीएस काटा, दूसरी और तीसरी में गोल कर दिया। पहली रजिस्ट्री में जमीन को व्यवसायिक बताया गया और दूसरी, तीसरी में आवासीय। शिकायत की जांच हुई। रजिस्ट्री अधिकारियों को दूध का धुला करार दिया गया। कलेक्टर ने पंजीयन सचिव को इसकी रिपोर्ट भी भेज दी।

Update: 2022-11-15 14:26 GMT



विशेष संवाददाता 

Raipur Land Scam: रायपुर। छत्तीसगढ़ में रजिस्ट्री विभाग के अफसर जो करें, वो कम है। राजधानी में छह महीने के भीतर एक ही जमीन की तीन लोगों को रजिस्ट्र्री कर दी। और जब पीड़ित व्यक्ति ने मंत्री से इसकी शिकायत की तो गलत जांच रिपोर्ट के आधार पर रजिस्ट्री अधिकारियों को क्लीन चिट दे दिया। एनपीजी ने अपनी तहकीकात में पाया कि एक प्लाट की तीन रजिस्ट्री में नियम-कायदों को धज्जियां उड़ाई गई।

दरअसल, राजधानी के भाटागांव के पास रिंग रोड पर नीलम अग्रवाल ने 16 फरवरी 2018 को 7000 हजार वर्गफुट का प्लाट लखनउ के साइन सिटी ड्रीम रियेल्टर को बेचा था। उसके लिए 4.26 करोड़ जमीन का गाइडलाइन रेट तय कर रजिस्ट्री फीस ली गई। यही जमीन 20 मार्च 2021 को साइन सिटी कंपनी ने मुंबई के मनमोहन सिंह गाबा को बेच दिया। तब रजिस्ट्री रेट घटाकर 3.64 करोड़ कर दी गई। रजिस्ट्री अधिकारी थे एसके देहारी। साइन सिटी ने मनमोहन सिंह गाबा को बेची गई जमीन फर्जीवाड़ा करते हुए फिर 18 मई 2021 को रुपेश चौबे को बेच दिया। तब रजिस्ट्री अधिकारी देहारी ने उसका गाइडलाइन रेट घटाकर 2.74 करोड़ कर दिया। याने 4.26 करोड़ से 2.74 करोड़ पर आ गया। यानी सरकारी खजाने को लगभग 15 लाख का चूना। रुपेश चौबे ने यह प्लॉट 26 जुलाई 2021 को अशोका बिरयानी को बेच दिया। इसकी रजिस्ट्री भी एसके देहारी ने की। याने एक ही जमीन चार सौ बीसी कर बार-बार बेची जाती रही और रजिस्ट्री अधिकारी आंख मूंदकर रजिस्ट्री करते रहे। अब क्लास देखिए मनमोहन गाबा ने नामंतरण कराने के लिए रायपुर के नायब तहसीलदार के यहां आवेदन लगाया तो कहा गया साइन सिटी के बाकी डायरेक्टरों के दस्तखत रजिस्ट्री में नहीं है, इसलिए नामंतरण नहीं किया जा सकता। और रुपेश चौबे के नाम पर करने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई।

इस साल जनवरी में जब एनपीजी के लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश में यह खबर छपी तो मामले की जांच हुई। मगर जांच में रजिस्ट्री अधिकारियों ने कई महत्वपूर्ण पहलुओं को अनदेखी कर दी। और रजिस्ट्री अधिकारियों को क्लीन चिट दे डाला।

जांच अधिकारी ने जिस झूठ के आधार पर रजिस्ट्री अधिकारी को क्लीन चिट दिया है, वह इस प्रकार है....

1. जांच अधिकारी का कहना है, कि आपसी लेनदेन की रकम है। गाइडलाइन रेट से ज्यादा होने के कारण स्टांप और रजिस्ट्री खर्चा में अंतर आया।

जांच अधिकारी का यह कथन सिरे से गलत है। पहली बार 20/09/2019 के रजिस्ट्री में आपसी लेन देन रकम 3 करोड़ था। दूसरे बार 19/05/2019 के रजिस्ट्री में 1 करोड़ पचास लाख था, और तीसरी बार 02/08/2021 के रजिस्ट्री में 1 करोड़ 60 लाख था।

रजिस्ट्री का गाइडलाइन कीमत पहले रजिस्ट्री में 3,63,98,000 था। वह बाकि दो रजिस्ट्री में कम कर दिया गया।

स्टांप और रजिस्ट्री, लेनदेन या गाइडलाइन कीमत में से अधिकतम में लगता है। लेनदेन का रकम बदल सकता है, लेकिन उसी प्रॉपर्टी का गाइडलाइन तो सेम रहेगा। इस प्रकार जांच अधिकारी ने शासन को गुमराह किया।

पार्किंग में रजिस्ट्री

जांच अधिकारी ने कई बिंदुओं में जांच ही नही किया है। जैसे-

1. दूसरी रजिस्ट्री ऑफिस के पार्किंग में कैसे हो गई? जब लखनऊ का वह आदमी रजिस्ट्री के लिए पार्किंग तक आ सकता था, तो ऑफिस अंदर कैसे नही आया। इसके लिए कुतर्क दिया गया...कोविड के चलते अंदर नहीं आया। जबकि, कोविड के चलते ही टोकन सिस्टम प्रारंभ किया गया था। ताकि, एक साथ लोग न आएं। और सवाल उठता है, कोविड में लखनउ से आदमी आ सकता है मगर आफिस के भीतर नहीं। फिर बिना टोकन उसे कैसे इंटरटने किया गया।

2. संपत्ति अग्रोहा गृह निर्माण सहकारी समिति में आता है। सहकारी समिति में जमीन बेचने के लिए परमिशन लगता है। बिना परमिशन के 20/03/2021 और 19/05/2021 के रजिस्ट्री कैसे हो गया। तीसरे रजिस्ट्री दिनांक 02/08/2021 में सोसायटी का वह परमिशन लगा था।

3. 19/05/2021 के रजिस्ट्री में पेमेंट डिटेल नही है। जबकि, 50 लाख से ज्यादा के रजिस्ट्री को रजिस्ट्रार टीडीएस नहीं कटने पर लौटा देते है। केवल पहली रजिस्ट्री 20/03/2021 में टीडीएस कटा है। बाकि दो रजिस्ट्री में टीडीएस नही कटा है। इनकम टैक्स कानून का पालन रजिस्ट्रार के लिए अनिवार्य है। इसके बावजूद रजिस्ट्रार ने 19/05/21 और 02/08/21 के रजिस्ट्री को क्यों मना नही किया। रजिस्ट्री अधिकारियों की इस कदाचारिता से इंकम टैक्स को लाखों का चूना लगा।

4. एक ही संपत्ति का एक ही रजिस्ट्रार द्वारा छः महीने में तीन बार रजिस्ट्री हुआ। रजिस्ट्री के समय जमीन का रिकॉर्ड रजिस्ट्रार के पास ऑनलाइन आ जाता है। पहले और तीसरे रजिस्ट्री में बी 1 में संपत्ति को दुकान बताया है। जबकि 19/05/21 के रजिस्ट्री में बी1 में उसी संपत्ति को आवास बता दिया गया है। राजस्व अभिलेख में छेड़छाड़ किसके द्वारा किया गया और रजिस्ट्रार ने ऑनलाइन रिकॉर्ड के साथ इसका मिलान क्यों नही किया। सवाल यह भी है कि शासकीय दस्तावेज में हेर-फेर वाले रजिस्ट्री को रायपुर के तत्कालीन तहसीलदार उमग जैन ने कैसे नामांतरण कर दिया।

हालांकि, रायपुर कलेक्टर ने जनवरी 2022 में एसपी रायपुर को इस संबंध में पत्र लिखा है और फिर 19 मई 2022 को पंजीयन सचिव को। मगर इन दोनों में रजिस्ट्री अधिकारी की कोई भूमिका नहीं बताई गई है। सूत्रों का कहना है कि रजिस्ट्री अधिकारियों ने झूठी जांच रिपोर्ट के आधार पर वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह किया।

रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर भुरे ने NPG.News को बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में है। इस मामले में जांच करा रहे हैं। जो भी तथ्य सामने आएंगे, उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी। 

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