Loksabha Chunav 2024: ये हैं सीजी के मल्‍टी सीट सांसद: जानिए...कौन हैं वो नेता जो 3 अलग-अलग सीट से जा चुके हैं संसद

Loksabha Chunav 2024: छत्‍तीसगढ़ राज्‍य को बने हुए अभी करीब 24 साल ही हुआ है, लेकिन इसका संसदीय इतिहास देश के बाकी हिस्‍सों की तरह काफी पुराना है। अविभाजित मध्‍य प्रदेश के दौर में शुरुआत में यहां 6 से 8 ही लोकसभा की सीटें थीं, लेकिन बाद में यह बढ़कर 11 हो गईं, जो अब तक बनी हुई है।

Update: 2024-03-21 08:21 GMT

Loksabha Chunav 2024: रायपुर। आजादी के बाद से छत्‍तीसगढ़ ने देश और प्रदेश को कई दिग्‍ग नेता दिए हैं। अविभाजित मध्‍य प्रदेश के प्रथम मुख्‍यमंत्री पं. रविशंकर शुक्‍ल छत्‍तीसगढ़ के थे। उनके पुत्र पं. श्‍यामाचरण शुक्‍ल भी एमपी के सीएम रहे। दूसरे पुत्र पं. विद्याचरण शुक्‍ल केंद्र में मंत्री रहे। उनकी गिनती देश के दिग्‍गज नेताओं में होती थी। मध्‍य प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री मोतीलाल वोरा भी छत्‍तीसगढ़ के ही थे। ये वो नाम हैं जिनकी हमेशा चर्चा होती है। इन सबके बीच आज हम प्रदेश के उन दिग्‍गज नेताओं के बारे में बताने जा रहे हैं जो एक से ज्‍यादा सीटों से चुनाव लड़कर संसद तक पहुंचे हैं।

एक से ज्‍यादा संसदीय क्षेत्रों में चुनाव जीतने वाले नेताओं की संख्‍या 7 है। इनमें एक नेता तीन संसदीय सीटों से चुनाव लड़े कर संसद पहुंचे है। यही नेता 3 अलग-अलग पार्टियों से भी लोकसभा का चुनाव लड़े हैं। इनमें 2 पार्टी से उन्‍हें जीत मिली, जबकि एक बार पार्टी से चुनाव लड़ने के दौरान उन्‍हें हार का सामना करना पड़ा।


विद्याचरण शुक्‍ल: विद्याचरण यानी देश और प्रदेश की राजनीति के वीसी। वीसी पहली बार 1951 में कांग्रेस की टिकट पर बलौदाबाजार सीट से लोकसभा पहुंचे। इसके बाद वे महासमुंद संसदीय सीट से चुनाव लड़ने लगे। वहां से वे 1962 और 1967 में लगातार 2 बार संसद पहुंचे। 1971 में वे रायपुर आ गए और यहां से भी जीत दर्ज की। 1991 में भी वे रायपुर से सांसद चुने गए। उससे पहले 1980, 1984 और 1989 में महासमुंद से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। 1989 का चुनाव उन्‍होंने जनता दल की टिकट पर लड़ा था और जीते थे। वहीं, 2004 में वीसी ने महासमुंद सीट से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। 3 अलग-अलग सीटों से सांसद चुने जाने वाले वीसी प्रदेश के अकेले नेता थे।

मिनीमाता: मिनीमाता छत्‍तीसगढ़ की पहली महिला सांसद हैं। वे पहली बार बलौदाबाजर सीट से निर्वाचित हुईं थी। इसके बाद वे 1967 और 1971 में जांजगीर सीट से सांसद चुनी गईं।

दिलीप सिंह जूदेव: प्रदेश के मल्‍टी सीट सांसदों में बीजेपी के दिग्‍गज नेता दिलीप सिंह जूदेव का नाम भी शामिल है। जूदेव पहली बार 1989 में जांजगीर सीट से सांसद चुने गए थे, तब जांजगीर सीट आरक्षित नहीं थी। इसके बाद वे 2009 में दूसरी बार सांसद चुने गए। इस बार वे बिलासपुर संसदीय सीट से संसद पहुंचने में सफल रहे।

अजीत जोगी: ज्‍यादातर लोग अजीत जोगी को छत्‍तीसगढ़ के प्रथम मुख्‍यमंत्री के रुप में जानते हैं, लेकिन जोगी छत्‍तीसगढ़ का मुख्‍यमंत्री बनने से पहले सांसद रह चुके थे। जोगी पहली बार रायगढ़ सीट से सांसद चुने गए थे। जोगी 1998 में पहली बार रायगढ़ सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े थे। इसके एक साल बाद 1999 में हुए चुनाव में वे हार गए। इसके बाद वे 2004 में महासमुंद सीट से सांसद चुने गए।

नंद कुमार साय: छत्‍तीसगढ़ के वरिष्‍ठ आदिवासी नेताओं में शाामिल नंद कुमार साय भी 2 अलग-अलग लोकसभा सीटों का प्रतिनिधित्‍व कर चुके हैं। साय 3 बार लोकसभा सांसद रहे हैं। इनमें 2 बार रायगढ़ और एक बार सरगुजा सीट से चुनाव जीते हैं। साय पहली बार 1989 में रायगढ़ सीट से बीजेपी की टिकट पर संसद पहुंचे थे। इसके बाद 1996 में भी वे इसी सीट से चुनाव जीते। 2004 में बीजेपी ने उन्‍हें सरगुजा सीट से टिकट दिया और वे जीत कर संसद पहुंचने में सफल रहे।

डॉ. चरणदास महंत: छत्‍तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्‍यक्ष और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत भी संसद में 2 लोकसभा सीटों का प्रतिनिधित्‍व कर चुके हैं। वे 1998 और 1999 में लगातार 2 बार जांजगीर सीट से चुनाव जीते। जांजगीर सीट के एससी आरक्षित होने के बाद 2009 में कांग्रेस ने उन्‍हें कोरबा सीट से मैदान में उतारा और डॉ. महंत वहां से जीतने में सफल रहे।

गुहाराम अजगले: राज्‍य निर्माण के बाद गुहाराम अजगले भी बीजेपी की टिकट पर दो बार अलग-अलग सीटों से सांसद रहे हैं। 2004 में वे पहली बार वे एससी आरक्षित सारंगढ़ सीट से सासंद चुने गए। इसके बाद 2019 में एससी आरक्षित जांजगीर-चांपा सीट से दूसरी बार सांसद चुने गए। 

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