क्या वाकई केसीआर और उनकी बेटी कविता में राजनीतिक मतभेद शुरू हो गए हैं ?
अखिलेश अखिल
छत्तीसगढ़ का पडोसी राज्य तेलंगाना राजनीतिक रूप से कुछ ज्यादा ही गर्म हो चला है। एक तो वहाँ केसीआर और बीजेपी के बीच में भारी राजनीतिक अदावत है तो दूसरी तरफ बीजेपी को घेरने के लिए केसीआर कई पहलुओं पर काम कर रहे हैं। केसीआर के लोग बीजेपी विरोधी नारे गढ़ रहे हैं तो बीजेपी वाले केसीआर मुक्त तेलंगाना का शंखनाद कर रहे हैं। इस पुरे मामले में कांग्रेस दुबकी हुई अपने समय का इन्तजार कर रही है। केसीआर और बीजेपी के बीच जारी जंग के बीच एक खबर केसीआर के घर से बाहर तैर रही है जो यह बता रही है कि पिता केसीआर और बेटी कविता के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। कहानी कई तरह की है। एक कहानी यह बता रही है कि केसीआर से नाराज कविता बीजेपी के साथ जाने को तैयार है जबकि एक कहानी यह है कि केसीआर बेटी कविता की जगह अपने बेटे को राजनीति में आगे बढ़ा रहे हैं और अपनी वारिस के रूप में बेटे को स्थापित करना चाहते हैं। हालांकि उनका बेटा विधायक और मंत्री भी है लेकिन जब विरासत और वारिस की बात सामने आती है तो मजा लेने वाले बहुतेरे लोग आग में घी डालने का काम भी करते हैं। कुछ और भी कहानिया है लेकिन सच क्या है कोई जनता।
दरअसल ,बाप -बेटी के बीच राजनीतिक अदावत की कहानी उस समय गढ़ी गई जब दशहरा के दिन केसीआर अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने और उसका विस्तार करने के लिए अपनी पुरानी पार्टी टीआरएस का नाम बदल कर भारत राष्ट्र पार्टी कर रहे थे। बड़ा जलसा था। टीआरएस के लोग केसीआर के इस कदम पर झूम रहे थे और बीजेपी के खिलाफ नारे लगा रहे थे। लेकिन जब कई नेताओं की नजर कविता की अनुपस्थिति पर गई तो कानाफूसी शुरू हो गई। अचानक कविता की याद सबको आयी और फिर कविता के जलसा में न आने के कारण ढूंढे जाने लगे। इधर केसीआर अपनी महत्वाकांक्षा को परवान देने के लिए नयी पार्टी का निर्माण कर रहे थे और उधर कविता अपने घर पर दशहरा का पूजन कर रही थी। याद रहे कविता की बड़ी भूमिका तेलंगाना राज्य को बनाने में रही है और वह हर कदम अपने पिता के साथ चलती रही है। राज्य में वह निजामाबाद से सांसद भी रही और कविता लोगों की काफी पसंद भी है।
कविता केसीआर के हर फैसले में मौजूद रही है और विपक्षी एकता वाली राजनीति को आगे बढ़ाने में भी कविता का बड़ा योगदान रहा है। जब केसीआर अलग -अलग राज्यों के नेताओं से मिलते रहे हैं तो कई बार कविता साथ भी रही है। लेकिन नयी पार्टी के निर्माण के समय कविता नहीं थी। कहने वाले और भी कुछ कहते हैं। कविता न केवल हाई-प्रोफाइल इवेंट से गायब थीं, बल्कि उनका नाम आगामी मुनुगोड़े उपचुनाव के लिए टीआरएस के प्रभारी की सूची से भी गायब था। इन सब गतिविधियों से साफ लग रहा है कि केसीआर के घर में ही सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। कविता क्या है इसकी जानकारी पर और भी बात करेंगे लेकिन टीआरएस पर कुछ और बातें कर ली जाए। गौरतलब है कि इस साल जून में केसीआर ने टीआरएस नेताओं के साथ एक राष्ट्रीय पार्टी बनाने के विचार पर चर्चा की थी। हालांकि तब नई पार्टी के विचार पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया था। उस समय टीआरएस के सूत्रों ने यह भी कहा था कि नई पार्टी के लिए 'भारत राष्ट्रीय समिति' (बीआरएस), 'उज्ज्वल भारत पार्टी' और 'नया भारत पार्टी' जैसे कुछ नामों पर चर्चा की गई थी। लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं हप पाया था। पार्टी की संभावित नामकरण में कविता की बड़ी भूमिका रही।
लेकिन कहा जा रहा है कि पिछले कुछ महीने से बीजेपी के कई नेता कविता से बातचीत बढ़ाते रहे हैं। हालांकि राजनीति में किसी भी दल के साथ बातचीत को गलत नहीं माना जाता लेकिन जानकार यह मान रहे हैं कि अगर केसीआर के घर में कोई राजनीतिक उठापटक हो रही है तो इसमें बीजेपी के हाथ की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बीजेपी की चाहत है कि केसीआर को कमजोर कर तेलंगाना की राजनीति पर कब्जा किया जाए। लेकिन केसीआर के सामने बीजेपी बेदम है। कविता चुकी काफी पढ़ी लिखी है और उसका मॉस अपील भी है इसलिए बीजेपी कविता पर अपने पाले में लाने की कोशिश जरूर कर रही है। लेकिन कविता क्या वाकई बीजेपी से प्रभावित है इसकी पुष्टि नहीं जा सकती।
लेकिन जानकार यह जरूर बता रहे हैं कि केसीआर के घर में फुट वाली जो खबरे सामने आ रही है उसमे बीजेपी का हाथ है और गोदी मीडिया के जरिये इसे प्रचारित किया जा रहा है। सच क्या है कोई नहीं जानता। न तो केसीआर की तरफ़ा से इस पर कोई बयान आया है और न ही कविता ने इस पर कुछ कहा है।
अब कविता के बारे में कुछ जानकारी। चंद्रशेखर राव की बेटी, के कविता ने अलग तेलंगाना राज्य के लिए अपने पिता के आंदोलन में शामिल होकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। जिसके बाद उन्होंने अगस्त 2006 में एक एनजीओ, तेलंगाना जागृति शुरू की। इस संगठन को तेलंगाना के लिए युवाओं और महिलाओं को संगठित करने का श्रेय दिया जाता है। 2014 में तेलंगाना राज्य के गठन के बाद, कविता ने निजामाबाद लोकसभा क्षेत्र से आम चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 170,000 से अधिक वोट मिले। वह तेलंगाना की पहली महिला सांसद भी रही। 13 मार्च 1978 को जन्मी, उन्होंने दक्षिणी मिसिसिपी विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान का अध्ययन किया। स्नातक होने के बाद उन्होंने 2004 में भारत लौटने से पहले यूएसए में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम किया। एक व्यवसायी देवनपल्ली अनिल कुमार से शादी की, उनके दो बेटे हैं। कविता का नाम अक्सर तेलंगाना के पुष्प उत्सव बथुकम्मा के साथ जोड़ा जाता है, जिसे उन्होंने बड़े पैमाने पर प्रचारित किया है।
लेकिन असली बात तो यही है कि क्या केसीआर के घर में फुट पड़ गई है? इसका सही जबाव आखिर कौन दें। ठगिनी राजनीति का जाल इतना बड़ा है कि इसे समझना कठिन है। झूठ ,फरेब और ठगी पर आधारित राजनीति में अगर सब कुछ संभव है तो कविता के खेल से भी भला कौन इंकार कर सकता है। लेकिन अगर ऐसा हुआ तो केसीआर अगली महत्वाकांक्षा वाली राजनीति को बडा धक्का लग सकता है।