कर्मचारियों के निलंबन पर छत्तीसगढ हाईकोर्ट का अहम फैसला...संस्थानों और कर्मचारियों के लिए नजीर बनेगा ये आदेश

Update: 2022-01-15 12:24 GMT

बिलासपुर, 15 जनवरी 2022। उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि छोटी सजा में निलंबन अवधि का वेतन भत्ता नही दिया जाता है तो वह दुगुनी सजा के रूप में माना जायेगा।

याचिकाकर्ता मेघराज एनटीपीसी सीपत में कार्यरत था। उसके विरूद्व दो आरोप के साथ आरोप पत्र जारी किया गया एवं साथ में विभागीय जांच संस्थित करते हुए निलंबित कर दिया गया। विभागीय जांच के पश्चात् एक आरोप को सिद्व मानते हुए उसे लघु शस्ति एक वेतनवृद्वि असंचयी प्रभाव से रोकने की लघु शस्ति (छोटी सजा) दी गयी एवं साथ में यह आदेशित किया गया कि याचिकाकर्ता को निर्वाह भत्ता के अतिरिक्त वेतन एवं अन्य लाभ की पात्रता नहीं होगी, जिसके पश्चात् उसने उक्त आदेश को एकलपीठ के समक्ष चुनौती दी। इस पर सुनवाई पश्चात न्यायमूर्ति संजय के0 अग्रवाल की एकलपीठ ने निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता को लघु शस्ति अधिरोपित की गयी है अतः स्थायी आदेश की कंडिका 29 के तहत् निलंबन अवधि का वेतन एवं अन्य लाभ से वंचित करने का आदेश गलत है। अतः याचिकाकर्ता को 9 प्रतिशत के ब्याज के साथ निलंबन अवधि का समस्त लाभ दिया जाये।

उक्त आदेश के खिलाफ एनटीपीसी ने युगलपीठ के समक्ष एक रिट अपील प्रस्तुत किया कि स्थायी आदेश के तहत् उन्हें निलंबन अवधि के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है, प्रारंभिक सुनवाई के पष्चात् एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाते हुए मेघराज याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया गया, मेघराज की ओर से अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव ने पक्ष रखते हुए बताया कि केंद्र सरकार ने एक परिपत्र जारी किया है कि यदि आरोप पत्र दीर्धशस्ति के लिए दिया जाये किंतु अंत में लघु शस्ति अधिरोपित की जाती है तो कर्मचारी निलंबन अवधि का संपूर्ण लाभ प्राप्त करने का अधिकारी है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति एन0के0 चंद्रवंशी की युगलपीठ ने निर्णित किया कि एक वेतन वृद्वि लधू शास्ति के साथ यदि निलंबन अवधि का वेतन रोका जाता है तो वह मूल सजा से बड़ी सजा हो जायेगी एवं इसी आधार पर केंद्र सरकार ने उक्त परिपत्र जारी किया है कि लधूशस्ति के मामले में निलंबन अवधि का संपूर्ण लाभ कर्मचारी को प्राप्त होगा।

अतः निलंबन अवधि का लाभ एकलपीठ का आदेश उचित है हालांकि न्यायालय ने कहा कि यदि 4 सप्ताह के अंदर एकलपीठ द्वारा आदेषित संपूर्ण लाभ दे दिया जाता है तो 9 प्रतिषत ब्याज देने से छूट रहेगा किंतु यदि 4 सप्ताह के अंदर संपूर्ण लाभ नहीं दिया जाता है तो याचिकाकर्ता 9 प्रतिशत ब्याज प्राप्त करने का हकदार रहेगा।

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