आईएएस पुनर्वास केंद्र!

Update: 2022-03-06 12:00 GMT

संजय के. दीक्षित

तरकश, 6 मार्च 2022

सब कुछ ठीक रहा तो आईएएस पुनर्वास केंद्रों की संख्या में एक और नाम जुड़ जाएगा। नया रिहैबिलिटेशन सेंटर होगा निजी विनियामक आयोग। पता चला है, हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट ने निजी विनियामक आयोग के मेम्बर के लिए रिटायर आईएएस का नाम राजभवन भेजा है। अफसर को अगर पोस्टिंग मिल गई तो गाड़ी-घोड़ा का बंदोबस्त हो जाएगा। राजधानी में एक बंगला भी। मगर जरा सोचिए...वे जांजगीर और दुर्ग के कलेक्टर रहे हैं...रायपुर और दुर्ग के संभागायुक्त भी। प्रोफाइल भी इतना पुअर नहीं। नौकरशाही के लिए जरूर ये खुशी की बात होगी। वैसे भी, अब गरिमा-वरिमा की बातें पुरानी हो गईं। अधिकांश पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग खैरात होती है और मकसद भी सिर्फ और सिर्फ यही...गाड़ी, मकान और नौकर-चाकर की सरकारी सुविधा कुछ दिन और मिल जाए।

2008 बैच क्लोज

कलेक्टरों के पिछले फेरबदल में 2007 बैच क्लोज हुआ था। इस बार संकेत हैं कि 2008 बैच को कलेक्टरी के लिए बंद किया जाएगा। इस बैच के एकमात्र कलेक्टर भीम सिंह रायगढ़ संभाल रहे हैं। हालांकि, कुछ महीने पहिले तक दुर्ग के लिए उनका नाम मजबूती से चल रहा था। मगर अब सुनने में आ रहा कि सरकार अब नए अफसरों को मौका देने के लिए भीम सिंह को रायपुर बुलाएगी। ये अवश्य है कि रायपुर में पोस्टिंग उन्हें अच्छी मिलेगी। वैसे भीम सिंह का कलेक्टर बनना भी किसी चमत्कार से कम नहीं था। पिछली सरकार में तीन जिला करने के बाद वे भी नहीं सोचे होंगे कि उन्हें बड़े जिले की कलेक्टरी मिल जाएगी।

टू ईयर क्लब

विधानसभा के बजट सत्र सामने आते ही कलेक्टरों की सर्जरी की अटकलें शुरू हो गई है। खबर है, इस बार लिस्ट लंबी-चौड़ी होगी। 28 में से पांच जिलों के कलेक्टरों को सरकार ने जनवरी में चेंज किया था। जाहिर है, इनमें से कोई नहीं बदलेगा। बचे 23। इनमें से नौ जिलों के कलेक्टर पिछले साल जून में पोस्ट हुए थे। यानी अभी एक बरस भी नहीं हुआ है। बावजूद इसके इन नौ में भी से दो-एक विकेट चटक सकते हैं। बदलने वालों में उन कलेक्टरों का नाम सबसे उपर हैं, जिनका एक जिले में दो साल हो गया है। याने टू ईयर क्लब वाले। इनमें नौ कलेक्टर शामिल हैं। दुर्ग, बालोद, बिलासपुर, सरगुजा, जगदलपुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, रायगढ़ और कवर्धा। इन नौ में से कुछ को वापिस रायपुर बुलाया जाएगा तो कुछ को अपग्रेड कर बड़े जिलों में ताजपोशी की जाएगी। दुर्ग के सर्वेश् भूरे की हटने की लंबे समय से चर्चा चल रही थी मगर अब सुनने में आ रहा कि शायद कुछ महीनों के लिए वे दुर्ग में रुक जाएं। बाकी जगदलपुर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, सरगुजा, बालोद के कलेक्टरों को बदलना लगभग तय माना जा रहा है। बालोद के जन्मजय मोहबे को शायद कोई बड़ा जिला मिलेगा। सरगुजा के संजीव झा भी अपग्रेड होंगे। कोंडागांव वाले पुष्पेंद्र मीणा ने अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली हैं। हो सकता है, उन्हें अंबिकापुर की कमान मिल जाए। कांकेर के चंदन कुमार का भी और ठीक-ठाक हो जाए। दरअसल, कांकेर के लिए एक प्रमोटी आईएएस का नाम चल रहा है। उधर, 2009 बैच की आईएएस डॉ0 प्रियंका शुक्ला भी इस बार स्ट्रांग दावेदार हैं। जगदलपुर के लिए उनका नाम चर्चा में है। वैसे चर्चा किरण कौशल के भी जिले में जाने की है। रजत बंसल बिलासपुर और संजीव झा का नाम रायगढ़ के लिए कई महीने से चल रहा है। अब देखना है, सरकार उन्हें इन्हीं जिलों में भेजती हैं या कहीं और। ये जरूर है कि दोनों को जिला अच्छा मिलेगा। बिलासपुर कलेक्टर डॉ0 सारांश मित्तर को पहले वहां से हटाकर किसी बड़े मलाईदार बोर्ड का एमडी बनाने की चर्चा थी। मगर अब अचानक उनका एक बड़े जिले के लिए नाम चलना शुरू हो गया है। दंतेवाड़ा से दीपक सोनी को भी मैदानी जिले में लाए जाने की बात हो रही। कुल मिलाकर लिस्ट लंबी होगी। अब सवाल है, आदेश निकलेगा कब? बजट सत्र के बाद? कुछ भी हो सकता है...पिछली सरकार के समय कई बार सत्र के दौरान कलेक्टर बदल दिए गए थे। सो, सत्र कोई रोड़ा नहीं। अगले साल चुनाव का देखते सरकार अब 20-20 के मोड में बैटिंग करेगी, सो कुछ भी हो सकता है।

कड़ा रिव्यू

अगले साल विधानसभा चुनावों को देखते सरकार ने विभागों का रिव्यू प्रारंभ कर दिया है। इसकी शुरूआत जनसंपर्क विभाग से हुई है। सीएम हाउस में ढाई घंटे रिव्यू चला। विभिन्न माध्यमों के जरिये सरकार की योजनाओं को लोगों तक और बेहतर ढंग से पहुंचाने पर गहन चर्चा हुई। सुना है, इसके बाद पीडब्लूडी, पुलिस विभाग के कामकाज की समीक्षा होगी। इन विभागों ने होम वर्क शुरू कर दिए हैं। यूपी चुनाव के बाद सरकार एक्शन मोड में आने वाली है। सो, बताया जा रहा है कि बजट सत्र की कार्रवाई भी चलती रहेगी और विभागों के कामकाज की समीक्षा भी।

काम की खबर

अगर आप जमीनों के नामंतरण, ऋण पुस्तिक आदि के लिए तहसीलदार और पटवारी का चक्कर लगा रहे हैं, तो दसेक दिन ठहर जाइये। कैबिनेट ने भू-संहिता संशोधन विधयेक को पास कर दिया है और अब इसे विधानसभा के बजट सत्र में पेश किया जाएगा। विधयेक चूकि अभी पारित नहीं हुआ है, इसलिए डिटेल पता नहीं। मगर खबर है 1960 में बने भू-संहिता में काफी सुधार किया गया है। नामंतरण और ऋण पुस्तिक की प्रक्रिया सरल की गई है। वैसे मध्यप्रदेश ने नामंतरण और ऋण पुस्तिक समाप्त कर दिया है। कई राज्यों में तो ऋण पुस्तिका का प्रावधान ही नहीं है। छत्तीसगढ़ में ऋण पुस्तिका पटवारियों की कमाई का बड़ा जरिया बन गया है। आदमी और जमीन का साइज देखकर ऋण पुस्तिका के लिए पांच हजार से लेकर लाख-दो लाख तक वसूले जाते हैं। इसी तरह आईटी युग में रजिस्ट्री के साथ ही जमीनों का नामंतरण ऑनलाइन किया जा सकता है। मगर नामंतरण के नाम पर लोगों को परेशान ही नहीं किया जाता, उनसे तगड़ी वसूल की जाती है।

हार्ड लक

बड़ी कवायदों के बाद गिरिजाशंकर जायसवाल को पिछले साल अक्टूबर में नारायणपुर जिले का एसपी बनाया गया। मगर उनका हार्ड लक कि पांच महीने में उन्हें मुख्यालय लौटना पड़ गया। सरकार ने आश्चर्यजनक ढंग से उन्हें हटाकर बालोद एसपी सदानंद को नारायणपुर भेज दिया। गिरिजाशंकर का लंबे समय से एसपी बनने की चर्चा चल रही थी। दो साल पहले उन्हें कोंडागांव का ऑफर दिया गया। लेकिन, छोटा जिला होने के कारण तैयार नहीं हुए। पिछले साल उदय किरण हिट विकेट हुए तो गिरिजाशंकर नारायणपुर जाने के लिए राजी हो गए। मगर किस्मत ने साथ नहीं दिया।

छत्तीसगढ़ियां नहीं मगर...

किसी भी सूबे में आप जाएं, अगर वहां सक्सेस होना है तो सीधा सा फंडा है...वहां की बोली-भाषा, आचार-व्यवहार को एडाप्ट कीजिए। कुछ ब्यूरोक्रेट्स इसको फॉलो करते हैं। दंतेवाड़ा में एसपी अभिषेक पल्लव ने गोंडी सीख लिया था। इसी तरह की एक खबर बिलासपुर से है। अटल बिहार बाजपेयी विश्वविद्यालय के वीसी अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी छत्तीसगढ़ी को बढ़ावा देने छत्तीसगढ़ी में नोटशीट लिखते हैं। वीसी की नोटशीट पर रिप्लाई देने के लिए अधिकारी, प्रोफेसर अब वहां छत्तीसगढ़ी सीख रहे हैं। दरअसल, वे लंबे समय तक कोरबा जिले के किसी कॉलेज के प्रिंसिपल रहे हैं। सो, छत्तीसगढ़त्री जानते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नवा रायपुर में 30 करोड़ का वर्ल्ड लेवल का क्लब मंत्रियों के सेक्टर की बजाए अधिकारियों के सेक्टर 15 के बगल में क्यों बनाया जा रहा है?

2. कलेक्टर कांफ्रेंस में एक शीर्ष अफसर ने धान खरीदी पर सुझाव मांगते हुए ऐसा क्यों कहा, पता नहीं अगले साल धान खरीदी के समय हमलोगों में से कौन रहेगा, कौन नहीं?

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