Devshayani ekadashi Aaj: देवशयनी एकादशी व्रत से पूर्वजों के लिए खुलता है स्वर्ग का द्वार, व्रत नहीं कर पाएं तो न पछताएं, चावल नहीं खाएं, ये करें...
रायपुर। Devshayani ekadashi Aaj: देवशयनी एकादशी का व्रत आज 10 जुलाई को है। यह व्रत समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस दिन से गीता पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करना चाहिए और प्रतिदिन गीता का पाठ करना चाहिए। यह एकादशी मोक्ष देने वाली है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। जो इस दिन किसी योग्य व्यक्ति को श्रीमद्भागवत गीता उपहार स्वरूप प्रदान करता है, वह भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करता है। एकादशी व्रत से बढ़कर मोक्ष प्रदान करने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस व्रत के प्रभाव से घर पर मंडरा रहे संकट दूर होते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन पूजा और नियमों पालन जरूरी होता है क्योंकि भगवान शयन मुद्रा में चले जाते हैं।
एकादशी व्रत करने पर करें यह काम
देशशयनी एकादशी के दिन सुबह स्नान के बाद आसन बिछाकर व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर में गंगाजल छिड़ककर उसे पवित्र करें। भगवान विष्णु को स्नान करवाने के बाद उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं। फिर कथा श्रवण करें और दिन भर व्रत रखें। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। अगले दिन नहा धोकर, पूजा के बाद ही व्रत का पारण करें।
धर्म ग्रंथों में एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इस दिन दान करने से हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन निर्जला व्रत रहा जाता है। जो लोग इस दिन व्रत नहीं रख पाते। वह लोग सात्विक का पालन करते है यानी कि इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा नहीं खाएं और झूठ, ठगी आदि का त्याग कर दें।
कहते हैं यह व्रत पूर्वजों के लिए स्वर्ग का द्वार खोलने में सहायता प्रदान करता है। इस दिन पान न खाएं, न ही किसी की निंदा करें। क्रोध न करें एवं झूठ न बोलें। तेल में बना हुआ भोजन न खाएं।
भगवान विष्णु की पूजा करें और पूजा में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करना चाहिए। एकादशी की रात्रि भगवान श्रीहरि का भजन-कीर्तन करना चाहिए। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें और किसी जरूरतमंद को दान दे।
साथ ही इस दिन चावल और इससे बनी कोई भी चीज नहीं खानी चाहिए। एकादशी के दिन चावल का त्याग जरूर करना चाहिए।
एकादशी पर चावल वर्जित ?
किसी भी एकादशी के दिन चावल वर्जित है। ऐसा इसलिए कि चावल का संबंध जल से हैं और जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं।
एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है। चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं।
धर्मानुसार चावल की उत्पति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी पर व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन चावल खाना अशुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता शक्ति, महर्षि मेधा पर बहुत क्रोधित हो गई थीं। महर्षि मेधा ने माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए अपना शरीर त्याग दिया था। इसके बाद उनका शरीर धरती में समा गया था। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर महर्षि मेधा का शरीर धरती में समाया था, उसी जगह पर चावल और जौ की उत्पत्ति हुई थी। इसी वजह से एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन नहीं किया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, एकादशी के दिन जो व्यक्ति चावल या जौ का सेवन करता है, वह महर्षि मेधा के रक्त और मांस का सेवन करता है।
एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क है। इसके अनुसार, चावल में जल की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजे खाना वर्जित कहा गया है।