Congress Mahadhiveshan RSS-BJP सत्ताग्रही : राहुल गांधी का हमला, कहा- हम सत्याग्रही हैं और वे सत्ताग्रही, सत्ता के लिए किसी के सामने झुक जाएंगे

Update: 2023-02-26 07:24 GMT

रायपुर. कांग्रेस के 85वें राष्ट्रीय महाधिवेशन के तीसरे दिन राहुल गांधी ने अपने संबोधन में भाजपा और आरएसएस पर हमला बोला. राहुल ने कहा कि महात्मा गांधी ने एक शब्द दिया था सत्याग्रह का. इसका मतलब है, सत्य के रास्ते पर चलो. हम सत्याग्रही हैं. और आरएसएस बीजेपी सत्ताग्रही हैं. सत्ता के लिए किसी से मिल जाएंगे, किसी के सामने झुक जाएंगे. राहुल गांधी ने अडानी के मुद्दे पर भी केंद्र सरकार, पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला बोला. राहुल ने कहा कि अडानी सबसे बड़ी देशभक्त हो गए और भाजपा उनकी रक्षा कर रही है. क्या है इस अडानी में कि सारे मंत्री उनकी रक्षा कर रहे हैं. राहुल ने आरोप लगाया कि मोदी और अडानी एक हैं. पूरा का पूरा धन एक व्यक्ति के हाथ में जा रहा है और जब हम प्रधानमंत्री से पूछते हैं, रिश्ता क्या है तो पूरी की पूरी स्पीच हटा दी जाती है. पार्लियामेंट में अडानी के बारे में सवाल नहीं पूछा जा सकता है, लेकिन हम पूछेंगे हजारों बार पूछेंगे रुकेंगे नहीं, जब तक अडानी की सच्चाई नहीं निकलेगी, तब तक नहीं रुकेंगे.

इससे पहले भारत जोड़ो यात्रा के बारे में राहुल गांधी ने बताया...

चार महीने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा हमने की. वीडियो में आपने मेरा चेहरा देखा मगर हमारे साथ लाखों लोग चले थे. हर स्टेट में चले. बारिश में गर्मी में बर्फ में एक साथ हम सब चले. बहुत कुछ सीखने को मिला. अभी जब मैं वीडियो देख रहा था मुझे बातें याद आ रही थीं. वीडियो में आपने देखा होगा कि पंजाब में एक मैकेनिक आकर मुझसे मिला. मैंने उसके हाथ पकड़े और सालों की जो तपस्या थी उसकी सालों का जो दर्द था जो खुशी जो दुख जैसे ही मैंने उसके हाथ पकड़े, हाथों से मैंने बात पहचानी.

वैसे ही लाखों किसानों के साथ. जैसे ही हाथ पकड़ते थे, गले लगते थे, एक ट्रांसमिशन सा हो जाता था. शुरुआत में बोलने की जरूरत थी कि क्या करते हो, कितने बच्चे हैं, क्या मुश्किलें हैं. ये एक डेढ़ महीने चला. उसके बाद बोलने की जरूरत नहीं होती थी. जैसे ही हाथ पकड़ा, गले लगे, सन्नाटे में एक शब्द नहीं बोला जाता था, मगर जो उनका दर्द था, उनकी मेहनत थी, एक सेकंड में समझ आ जाती थी और जो मैं उनसे कहना चाहता था, बिना बोले समझ जाते थे.

आपने बोट रेस देखी होगी केरल में. उस समय जब मैं बोट में बैठा था, पूरी टीम के साथ मैं रोइंग कर रहा था, मेरे पैर में भयंकर दर्द था. मैं उस फोटो में मुस्कुरा रहा हूं मगर मेरे दिल से रोना आ रहा था इतना दर्द था. मैंने यात्रा शुरू की, काफी फिट आदमी हूं. 10-12 किलोमीटर ऐसे ही दौड़ लेता हूं, घमंड था कि 20-25 किलोमीटर चलने में क्या बड़ी बात है. पुरानी इंजरी थी. कॉलेज में चोट लगी थी फुटबॉल खेलते हुए मुझे याद है. मैं दौड़ रहा था, मेरे दोस्त ने अड़ंगी मार दी. दर्द गायब हो गया था सालों के लिए दर्द गायब था और अचानक जैसे ही मैंने यात्रा शुरू की, दर्द वापस आ गया.

आप मेरे परिवार हैं तो मैं कह सकता हूं आपसे सुबह उठता था तो सोचता था कि कैसे चला जाए? और फिर सोचता था कि 25 किलोमीटर नहीं 3500 किलोमीटर चलने हैं, कैसे चलूंगा. कंटेनर से उतरता था, चलना शुरू करता था, लोगों से मिलता तो पहले 10-15 दिन में जिसे आप अहंकार कह सकते हैं, वह गायब हो गया. क्यों गायब हुआ, क्योंकि भारत माता ने मुझे मैसेज दिया, देखो तुम अगर निकले हो, अगर कन्याकुमारी से कश्मीर चलने निकले हो तो अपने दिल से अहंकार मिटाओ नहीं तो मत चलो. मुझे ये बात सुननी पड़ी.

आस्ते आस्ते मैंने नोटिस किया मेरी आवाज चुप होती गई. पहले किसान से मिलता था मैं उसको अपना ज्ञान समझाने की कोशिश करता था थोड़ी जो मुझमें जानकारी है, खेती के बारे में मनरेगा के बारे में, फर्टिलाइजर के बारे में, मैं कहने की कोशिश करता था. आस्ते आस्ते यह सब बंद हो गया. शांति सी आ गई. सन्नाटे में मैं सुनने लगा. ये आस्ते आस्ते बदलाव आया. जब मैं जम्मू कश्मीर पहुंचा वह भी अजीब सी बात थी, मैं बिल्कुल चुप हो गया.

जैसे मेडिटेशन करता है, प्रियंका और मैं विपश्यना करते हैं, बिल्कुल चुप हो गया मैं. मां बैठी हैं. मैं छोटा सा था. 1977 की बात है. चुनाव आया. मुझे चुनाव के बारे में कुछ मालूम नहीं था. 6 साल का था मैं. एक दिन घर में अजीब सा माहौल था. मैं मां के पास गया. मैंने पूछा – मम्मी क्या हुआ? मां कहती हैं, हम घर छोड़ रहे हैं. तब तक मैं सोचता था कि वह घर हमारा था. मैंने मां से पूछा, हम अपने घर को क्यों छोड़ रहे हैं? पहली बार मां ने मुझे बताया कि राहुल ये हमारा घर नहीं है? यह सरकार का घर है. अब हमें यहां से जाना है. मैंने पूछा, कहां जाना है? कहती हैं, नहीं मालूम. नहीं मालूम कहां जाना है. मैं हैरान हो गया. मैंने सोचा था कि वह हमारा घर है.

52 साल हो गए. मेरे पास घर नहीं है. आज तक घर नहीं है. हमारे परिवार का जो घर है. वह इलाहाबाद में है. वह भी हमारा घर नहीं है. जो घर होता है, उसके साथ मेरा अजीब सा रिश्ता है. मैं12 तुगलक लेन में रहता हूं लेकिन वह मेरे लिए घर नहीं है. जब मैं निकला कन्याकुमारी से, मैंने अपने आप से पूछा कि मेरी जिम्मेदारी क्या बनती है? मैं चल रहा हूं, भारत का दर्शन करने, समझने निकला हूं. हजारों लाखों लोग चल रहे हैं, भीड़ है. मेरी क्या जिम्मेदारी है?

मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर मेरे दिमाग में एक आइडिया आया. मेरे ऑफिस के लोगों को मैंने बुलाया जो मेरे साथ चल रहे थे. मैंने कहा, यहां हजारों लोग चल रहे हैं. धक्का लगेगा लोगों को चोट लगेगी बहुत भीड़ है, हमें एक काम करना है. मेरे साइड में मेरे सामने 20-25 फुट चारों ओर ये जो खाली जगह है, जिसमें हिंदुस्तान के लोग आएंगे, हमसे मिलने आएंगे, अगले चार महीने के लिए वो हमारा घर है. यह घर हमारे साथ चलेगा. सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक यह घर हमारे साथ चलेगा. मैंने सबसे कहा देखिए इस घर में जो भी आएगा अमीर हो, गरीब हो, बुजुर्ग हो युवा हो बच्चा हो, किसी भी धर्म का हो, किसी भी स्टेट का हो, देश से बाहर का हो, जानवर हो, उसे यह लगना चाहिए कि मैं आज अपने घर आया हूं.

जब वह यहां से जाए उसे लगना चाहिए कि मैं अपने घर को छोड़कर जा रहा हूं. छोटा सा आइडिया था, लेकिन इसकी गहराई तब समझ नहीं आई. जैसे ही यह मैंने किया, जिस दिन किया, उस दिन यात्रा बदल गई. जादू से बदल गई. लोग मेरे से राजनीतिक बात नहीं कर रहे थे. मैंने क्या क्या सुना यह बता भी नहीं सकता हूं. हिंदुस्तान की महिलाओं ने इस देश के बारे में क्या कहा, मैं बता नहीं सकता हूं. युवाओं के दिल में क्या दर्द है, मैं बता समझा नहीं सकता. कितना बोझ उठा रहे हैं. बिल्कुल रिश्ता बदल गया.

हम सुबह सुबह चल रहे थे, साइड में एक महिला भीड़ में खड़ी थी. मैंने उसे बुलाया. मेरे पास आई, मैंने हाथ पकड़ा. मुझे समझ आ गया कि कुछ न कुछ गलत है. जैसे मैं प्रियंका का हाथ पकड़ता हूं, वैसे ही पकड़ा. ये मेरी बहन नहीं है, जो मेरा प्यार मेरी बहन के लिए है, वह इसे कैसे दे रहा हूं. मुझे कहती है, भैया मैं आपसे मिलने आई हूं. मेरा पति मुझे पीट रहा है. मैंने पूछा कब? कहती है अभी. मैं घर से भागी हूं आपसे मिलने. मैंने कहा कि पुलिस को बुलाएं. पुलिस को नहीं बुलाइए. मैं ये बताना चाहती थी कि मेरे साथ क्या हो रहा है. यह महिला अकेली नहीं है. ऐसी लाखों करोड़ों महिलाएं हैं इस देश में.

इस घर को हम आस्ते आस्ते जम्मू कश्मीर तक ले गए. शायद मेरा परिवार सालों पहले वहां से आया. मैंने सोचा कि अजीब सी बात है कन्याकुमारी से कश्मीर तक ये छोटे से घर को ले जा रहा हूं और यहां मुझे लग रहा है कि मैं वापस अपने घर जा रहा हूं. कश्मीर में हम घुसते हैं. वैली से पहले बर्फ है. धूप है. जैसे आज. हजारों लोग हमारे साथ चल रहे हैं. एक लड़का आता है मेरे पास. मेरे साथ चलता है और कहता है कि मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं. कहता है कि जब कश्मीर के लोगों को दुख होता है, हमारे दिल में चोट होती है, तो बाकी हिंदुस्तान के लोगों को खुशी क्यों होती है?

मैंने कहा कि गलतफहमी में हो ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कन्याकुमारी से यहां आया हूं. मैं दावे से यह कह सकता हूं कि करोड़ों लोग के मन में यह भावना नहीं है. करोड़ों लोग हर हिंदुस्तानी के साथ खड़े हैं. चुने हुए लोग हैं, जो खुश होते हैं. हजारों में होंगे, मगर हिंदुस्तान में करोड़ों लोग हैं. मेरी आंख से आंख मिलाकर वह कहता है कि आज आपने मुझे खुश कर दिया.

बातचीत करते हुए मैं देख रहा था कि चारों ओर तिरंगा, सड़क पर तिरंगा पहाड़ों पर तिरंगा सब तरफ तिरंगा. फिर हम वैली में घुसे. वैली में घुसते हैं. बादल छा जाते हैं. धूप गायब हो जाती है. जैसे ही हम घुसते हैं. पुलिसवालों ने कहा था कि दो हजार लोग आएंगे. जैसे ही हम घुसते हैं तो वहां 40 हजार लोग खड़े हैं. जैसे ही पुलिस वालों ने 40 हजार लोगों को देखा, रस्सी छोड़कर भाग गए. हम देख रहे हैं, जिसको रोक पार्टी कहते हैं, वह सब गायब हो गई. मैं देख रहा था हिंदुस्तान के सबसे उग्रवाद प्रभावित राज्य में, जहां भी आप देखो तिरंगा तिरंगा सब जगह. कौन उठाए थे तिरंगा. हमारे पास 125 यात्री थे, कश्मीर के लोग तिरंगा उठाए थे.

हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री को बात समझ नहीं आई. नरेंद्र मोदी जी ने बीजेपी के 15-20 लोगों के साथ जाकर लाल चौक पर तिरंगा फहराया. भारत जोड़ो यात्रा ने लाखों कश्मीरी युवकों के हाथ से तिरंगा फहराया. प्रधानमंत्री को फर्क समझ नहीं आया. हमने हिंदुस्तान की भावना, इस झंडे की भावना, जम्मू कश्मीर के युवाओं में डाल दी. आपने जम्मू कश्मीर के युवाओं से भावना छीन ली. यह फर्क है. यह जो तिरंगा है, यह दिल की भावना है. यह दिल के अंदर से आती है. हमने इस भावना को कश्मीर के युवाओं के दिल के अंदर जगाया. हमने उनसे नहीं कहा कि तुम्हें तिरंगा लहराना है. किसी से नहीं कहा. अपने आप आए. हजारों लाखों आए और अपने हाथ में तिरंगा उठाकर चले. क्यों चले? मैं बताता हूं.

कश्मीरी युवा ने कहा कि राहुल जी मैं आज आपके साथ तिरंगा लेकर चल रहा हूं, जानते हो क्यों, क्योंकि आपने हम पर भरोसा किया है. आपने अपना दिल हमारे दिल खोला है. हम अपना दिल आपके लिए खोलेंगे. यह फर्क है. हिंदुस्तान एक भावना है. एक सोचने का तरीका है. इज्जत है. आदर है. मोहब्बत है. यह जो तिरंगा है, यह उस भावना का चिह्न है. भारत जोड़ो यात्रा ने इस भावना को पूरे देश में फैलाया है. यह काम कांग्रेस के नेताओं ने किया है. हिंदुस्तान की जनता ने किया है.

सरकार की सोच के बारे में आज आपको बताना चाहता हूं. कुछ दिन पहले इंटरव्यू में एक मंत्री ने कहा कि चाइना की इकॉनामी हिंदुस्तान की इकॉनामी से बड़ी है तो हम उनसे कैसे लड़ सकते हैं? जब अंग्रेज हम पर राज करते थे, तब क्या उनकी इकॉनामी हमसे छोटी थी? इसका मतलब जो आपसे शक्तिमान है, उससे लड़ो ही मत, जो आपसे कमजोर है, उससे ही लड़ो. इसे कायरता कहा जाता है. सावरकर की विचारधारा, अगर जो आपके सामने आपसे तगड़ा है, मजबूत है तो उसके सामने सिर झुका दो.

हिंदुस्तान के मंत्री कह रहे हैं, मंत्री चाइना से कह रहा है कि आपकी इकॉनामी हमसे बड़ी है? इसे देशभक्ति कहते हैं क्या? ये कौन सी देशभक्ति है? जो आपसे कमजोर है, उसे मारो. जो आपसे मजबूत है, उसके सामने झुक जाओ. महात्मा गांधी कहते थे, सत्याग्रह की बात करते थे. सत्याग्रह का मतलब सत्य के रास्ते को कभी मत छोड़ो. इनके लिए एक नया शब्द है आरएसएस बीजेपी वालों के लिए. हम सत्याग्रही हैं, वे सत्ताग्रही हैं. ये किसी से मिल जाएंगे, किसी के सामने झुक जाएंगे सत्ता के लिए, यह इनकी सच्चाई है.

आजादी की लड़ाई भी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हुई थी. वह भी एक कंपनी थी. उस कंपनी ने भी हिंदुस्तान का सारा धन, सारा इंफ्रास्ट्रक्चर पोर्ट, सारा का सारा उठा लिया था. इतिहास रिपीट हो रहा है. ये देश के खिलाफ काम हो रहा है. अगर देश के खिलाफ काम होगा तो कांग्रेस पार्टी खड़ी हो जाएगी, लड़ जाएगी. आखिरी बात कहना चाहता हूं. यह तपस्वियों की पार्टी है, छोटी सी तपस्या की और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता में, देश में कैसी जान आई. तपस्या बंद नहीं होनी चाहिए. प्रोग्राम चलना चाहिए. तपस्या का प्रोग्राम होना चाहिए. हर कांग्रेस के कार्यकर्ता को शामिल होना चाहिए. मुश्किल होनी चाहिए. पसीना निकलना चाहिए. चोट लगनी चाहिए. खरगे जी कांग्रेस के प्रेसीडेंट हैं. तपस्या का प्रोग्राम बनाइए. हम सब मिलकर तपस्या में शामिल होंगे. अपना खून पसीना इस देश को देंगे. जैसे ही हम तपस्या में खड़े हो जाएंगे. पूरा हिंदुस्तान खड़ा हो जाएगा, क्योंकि यह देश तपस्वियों का है. आपकी पूरी टीम उस प्रोग्राम को चलाएंगे. तपस्या करेंगे.

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