कांग्रेस को अध्यक्ष तो मिल गया लेकिन क्या उसकी चुनौतियाँ कम होंगी ?

Update: 2022-10-01 09:17 GMT

अखिलेश अखिल

NPG डेस्क। इसमें अब कोई शक नहीं लम्बे समय के बाद कांग्रेस को कोई गैर गाँधी अध्यक्ष मिलने जा रहा है और वह भी दलित चैहरा। इस चेहरे की राजनीति अगर चल गई तो संभव है कि पार्टी का इकबाल बदल जाए और लगातार हारती कांग्रेस जाए। इस ठगिनी राजनीति में सबकुछ सम्भव जो है। कांग्रेस के इस खेल पर बीजेपी की चौकन्नी निगाह है। अब बीजेपी परिवारवादी पार्टी से कांग्रेस को कैसे बदनाम करेगी ! बीजेपी की परेशानी तो राहुल गाँधी की यात्रा से ही थी और अब दलित चेहरे के साथ मैदान में आती कांग्रेस ने बीजेपी की परेशानी को और भी बढ़ा दिया है। शुक्रवार 30 सितम्बर को कांग्रेस दफ्तर में जलसा का माहौल रहा। इससे पहले कांग्रेस दफ्तर के भीतर इतनी गहमागहमी नहीं देखी गई। झुंड के झुंड सफ़ेद कपड़ों में आते पार्टी नेताओं को देखकर लगता था ,मानो कोई समारोह का आयोजन हो। आयोजन था भी यह। पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के लिए उम्मीदवारी की घोषणा जो होनी थी और फिर चुनाव लड़ने के लिए नॉमिनेशन जो फाइल होना था। गाँधी परिवार ने इस बार चुनाव लड़ने से मना किया था। राहुल गांधी ने तो साफ़ इंकार ही कर दिया। निवर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी बीमारी और उम्र के लिहाज से अब ज्यादा भागदौड़ करना नहीं चाहती और प्रियंका की भी चाहत यही रही कि इस बार गैर गाँधी परिवार के लोग ही पार्टी अध्यक्ष बने। कांग्रेस की यही मुश्किल महीनो से कांग्रेस जनो के लिए परेशानी का सबब बनी हुई थी । उधर मौजूदा कांग्रेस के चाल चलन से नाराज हो चुके जी 23 गुट के बचे खुचे नेता कोई खुरपेंच लगाने की जुगत में तो थे लेकिन थक हार कर उनमे से अधिकतर नेता अंत में पार्टी के वरिष्ठ नेता मलिकार्जुन खड़गे के साथ आ गए। पार्टी के तीन नेताओं ने अध्यक्ष के लिए पर्चा भरा। खड़गे ,थरूर और रांची वाले के एन त्रिपाठी।

लम्बे समय के बाद पार्टी अध्यक्ष का चुनाव और उसके लिए तीन उम्मीदवार ! यह कोई मामूली बात नहीं है। सोनिया गाँधी तो अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनाने को तैयार थी लेकिन गहलोत ने खेल कर दिया। राजस्थान के सीएम पद से उन्हें ज्यादा लगाव है या फिर राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट को आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते हैं इस पर बातें बाद में की जा सकती है लेकिन गहलोत ने पार्टी की परम्परा को तो चुनौती दी ही है। इस चुनौती का आगे क्या असर होगा इसे देखना है। सचिन पायलट आगे क्या करेंगे इसे भी देखना होगा। ऑपरेशन कमल राजस्थान में चलेगा या नहीं इस पर भी सबकी निगाहें होंगी और सबसे बड़ी बात गैर गाँधी अध्यक्ष के चुने जाने के बाद पार्टी अगले चुनाव में कुछ कर पायेगी या नहीं यह भी देखने की बात है। सवाल और भी कई हैं लेकिन आज की तारीख में सबसे बड़ी बात तो यही है कि पार्टी के तीन उम्मीदवारों में से जीत की सम्भावना किसकी है ?

पहले प्रस्तावको पर ही चर्चा कर लीजिये। शशि थरूर काफी पहले से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। थरूर भी जी 23 के सदस्य रहे हैं। पिछले महीने थरूर सोनिया गाँधी से मिले एयर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की। सोनिया ने स्वागत किया और कहा जो चाहे लड़े। बेहिचक लड़े। थरूर के 9 प्रस्तावक थे जबकि खड़गे के 30 प्रस्तावक। आश्चर्य तो इस बात की है कि खड़गे के प्रस्तावकों में ज्यादातर वही लोग हैं जो जी 23 के सदस्य रहे हैं। दूसरा आश्चर्य ये भी है कि इनमे से 6 राजस्थान के हैं। जाहिर है कि गहलोत भी मान गए हैं कि अब उनके खेल से कुछ नहीं हो सकता। संभव है कि आने वाले दिनों में गहलोत को सचिन के लिए कोई जगह बनानी होगी या फिर जगह छोड़नी होगी।

अब खड़गे की बात। साफ़ हो गया है कि खड़गे पार्टी के नए अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। पार्टी को करीब 50 साल बाद कोई दलित अध्यक्ष मिलने जा रहा है। इससे पहले जगजीवन राम पार्टी के अध्यक्ष थे। खड़गे की राजनीति बेदाग़ रही है और वे लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। करीब 9 बार वे विधान सभा जीते हैं और 2014 में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। 2019 के चुनाव में वे हार गए और तब पार्टी ने उन्हें राज्य सभा भेजा।

खड़गे कर्णाटक से आते हैं। उनकी राजनीति बेजोड़ रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यह दलित चेहरा पार्टी को एकजुट कर पाएंगे ? क्या खड़गे बागी नेताओं को साथ लाने में कामयाब होंगे ? क्या खड़गे के नेतृत्वा में पार्टी संगठन मजबूत होकर बीजेपी को चुनौती देने की हालत में आ पायेगी ? क्या खड़गे गुजरात और हिमाचल के चुनाव में कोई करिश्मा दिखा पाएंगे और सबसे बड़ी बात बीजेपी को रोकने के लिए आतुर विपक्ष के साथ मिलकर खड़गे कांग्रेस के लिए पीएम उम्मीदवार की दावेदारी कर पाएंगे ? ऐसे और भी सवाल हैं।

इन सवालों का जबाब अभी नहीं मिल सकता। इसकी वजह भी है। राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं। शुक्रवार को ही राहुल की यात्रा तमिलनाडु से कर्णाटक में प्रवेश कर गयी है। यहां भी लम्बे यात्रा चलेगी। कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है लेकिन कांग्रेस की मजबूती भी है। कांग्रेस के सिद्धरमैया और शिवकुमार यहां बड़े नेता हैं। अबतक दोनों की नहीं पटती थी लेकिन जैसे ही भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में प्रवेश की सूबे के दोनों नेताओं ने जिस तरह से राहुल गाँधी के साथ ढोल मजीरे और मृदंग बजाते हुए स्वागत किया है वह बहुत कुछ कहता है। जानकार मान रहे हैं कि अगर कर्नाटक को कांग्रेस साध लेती है तो आने वाले समय में बीजेपी की परेशानी बढ़ेगी।

दरअसल देश की निगाह अभी राहुल गाँधी की यात्रा पर है। विपक्ष के नेता भी इस यात्रा को निहार रहे हैं और सम्भावना तलाश रहे हैं। यही सम्भावना कांग्रेस के भीतर के बागी लोग भी देख रहे हैं। ऐसे में साफ़ लगता है कि आने वाले समय में कांग्रेस को इस यात्रा का बड़ा लाभ मिल सकता है। जानकार मान रहे हैं कि अगर कांग्रेस इस यात्रा के जरिए दक्षिण भारत को साध जाती है तो अगले लोक सभा चुनाव में गेम बदल सकता है और जिस तरह से विपक्ष के कई नेता पीएम उम्मीदार को लेकर उछल रहे हैं ,उस पर विराम भी लग सकता है। हालांकि कांग्रेस की चाहत है कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष को एक साथ आना चाहिए लेकिन कांग्रेस कभी यह नहीं चाहती कि पीएम की उम्मीदवारी से उसे वंचित किया जाए।

ऐसे में राहुल की यह यात्रा और खड़गे की उम्मीदवारी बहुत की कह जाती है। दलित खड़गे देश भर के दलितों को कितना कांग्रेस के साथ लाते हैं और पार्टी को कितना ताकतवर बनाते हैं इसे देखना है। लेकिन राहुल की यात्रा बहुत कुछ देने वाली है।

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