कांग्रेस का दलित कार्ड: खड़गे से पहले खाबरी की यूपी में नियुक्ति, बीएमडी समीकरण पर जोर

Update: 2022-10-02 09:30 GMT

अखिलेश अखिल

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता अब रंग लाने लगी है। जिस तरीके से भारत जोड़ो यात्रा में बड़ी संख्या में ब्रह्मण ,दलित ,पिछड़े और मुस्लिम वर्ग की शिरकत हो रही है उससे कांग्रेस गदगद है। कांग्रेस को उम्मीद है है कि आगामी चुनाव में इस यात्रा का लाभ उसे मिलेगा। इसी बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मलिकार्जुन खड़गे को आगे किया गया है उससे साफ़ लगने लगने लगा है कि कांग्रेस एक बार फिर से अपनी परंपरागत वोट बैंक ब्राह्मण ,दलित और मुसलमान को साधने की तैयारी कर रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में खड़गे की बहाली इसी महीने में होगी लेकिन उससे पहले कांग्रेस ने यूपी में एक बड़ा दाव खेला है। यूपी में कांग्रेस ने बृजलाल खाबरी को अध्यक्ष नियुक्त कर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी है। यूपी में जमींदोज हो चुकी पार्टी को पटरी पर लाने में नए प्रदेश अध्यक्ष खाबरी कितने कारगर होंगे इसे देखना बाकी है लेकिन दलित समुदाय से आने वाले खाबरी यूपी में बड़े दलित नेता के रूप में जाने जाते हैं और बसपा में रहते हुए वे मायावती के प्रमुख चेहरों में शुमार रहे हैं।

पूर्व सांसद बृजलाल खाबरी की नियुक्ति के साथ ही कांग्रेस पार्टी ने यूपी में नया प्रयोग भी किया है। प्रदेश में संगठन की मजूबती बढ़ाने और जातिगत संतुलन बनाए रखने के लिए यूपी अध्यक्ष के साथ ही 6 प्रांतीय अध्यक्ष भी घोषित किए गए हैं। इन प्रांतीय अध्यक्षों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी, अजय राय, नकुल दुबे के साथ ही वीरेंद्र चौधरी, योगेश दीक्षित और अनिल यादव के नाम शामिल हैं।आपको बता दें कि इस साल मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए अजय कुमार लल्‍लू ने यूपी प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा दे दिया था।

खाबरी को यूपी कांग्रेस का नया अध्‍यक्ष नियुक्‍त कर कांग्रेस अपने पुराने वोट बैंक दलित-मुस्लिम और ब्राह्मण का समीकरण फिर से साधने की कोशिश कर ही है। ब्राह्मणों में पूर्व मंत्री नकुल दुबे और योगेश दीक्षित को प्रांतीय अध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह अजय राय को प्रांतीय अध्यक्ष बना भूमिहार वोट साधने की कोशिश की जा रही है। वीरेंद्र चौधरी और और अनिल यादव को प्रांतीय अध्‍यक्ष बनाकर ओबीसी संतुलन बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें तो सपा और बसपा के प्रदेश अध्यक्ष अन्य पिछड़ा वर्ग से है। प्रदेश में इनका वोट बैंक काफी बड़ा है। सभी पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कमान इस वर्ग के नेता को सौंपकर सेफ गेम खेलने के पक्ष में रहती हैं। भाजपा ने अभी हाल में जाट नेता भूपेंद्र चौधरी को अपना अध्यक्ष बनाया है। इसके पहले इस पद पर स्वतंत्र देव और केशव इनके यहां ओबीसी नेता में शुमार थे।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष बृजलाल खाबरी का राजनीतिक सफर बसपा से शुरू हुआ था। उनकी गिनती बुंदेलखंड के बसपा के कद्दावर नेताओं में होती है। खाबरी 1999 में जालौन-गरौठा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। बसपा के टिकट पर 2004 का भी लोकसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन हार का स्वाद चखना पड़ा था। साल 2008 में बसपा ने उन्हें राज्यसभा पहुंचाया था। 2014 में जालौन-गरौठा सीट से बसपा लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। इसके बाद खाबरी साल 2016 में कांग्रेस में शामिल हो गए गए . 2017 में ललितपुर जनपद की महरौनी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली। जबकि, 2019 में कांग्रेस के टिकट पर जालौन-गरौठा सीट से लोकसभा का चनाव लड़ा और हार गए। 2022 में कांग्रेस से महरौनी से विधानसभा का चुनाव लड़े, इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 86 सीटें आरक्षित हैं। इनमें से 84 सीटें एससी और 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों पर सभी राजनीतिक दलों का जोर रहता है, क्योंकि यह सीटें ही सीएम के कुर्सी तक पहुंचाने का रास्ता भी तय करती हैं।अभी इन सीटों पर बीजेपी की ज्यादा पकड़ है। अब अगले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस इन इलाकों से कुछ पाने की जुगत भिड़ा रही है। इसमें कितनी सफलता मिलेगी इसे देखना बाकी है क्योंकि उत्तरा प्रदेश में पार्टी का संगठनात्मक ढांचा लगभग ढह चुका है।

जानकार मानते हैं कि अगले लोक सभा चुनाव में दलित, अगड़ी जाति ही हार जीत का रुख तय करेगी। यूपी में 25 फीसदी वोट बैंक मुख्य रूप से दलितों का है। इसके बाद अगड़ी जाति का वोट बैंक है जोकि तमाम जातियों में बंटा है। लेकिन वह भी प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाता है। इसमें मुख्य रूप से ब्राह्मण, ठाकुर आते हैं जिनके वोटों पर सभी धर्मों की नज़र रहती है। इसके अलावा पिछड़ी जातियों का वोट बैंक भी प्रदेश के चुनाव में अहम भूमिका निभाता है।एक तरफ जहां दलितों का वोट बैंक 25 फीसदी है तो ब्राह्मणों का वोट बैंक 8 फीसदी, 5 फीसदी ठाकुर व अन्य अगड़ी जाति 3 फीसदी है। ऐसे में अगड़ी जाति का कुल वोट बैंक तकरीबन 16 फीसदी है। वहीं पिछड़ी जाति के वोट बैंक पर नज़र डालें तो यह कुल 35 फीसदी है, जिसमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जातियों के लोग आते हैं। इन सभी जातियों पर तमाम दलों का अलग-अलग वोट बैंक है। एक तरफ जहां सपा को पिछड़ी जाति का अगुवा, तो बसपा को दलित वोट बैंक का प्रतिनिधि तो भाजपा को अगड़ी जाति का पैरोकार माना जाता है। कांग्रेस अब अपनी परंपरागत वोट ब्राह्मण ,मुस्लिम और दलित पर ज्यादा फोकस कर रही है साथ ही पिछड़े समाज को भी अपने पाले में लाने को तैयार है। यही वजह है कि खाबरी के दाहिकाश बनाने के बाद अलग -अलग जातियों को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है।

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को लम्बे समय के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में खड़गे जैसा नेता अगर मिल जाते हैं तो इसका बड़ा असर उत्तरा से दक्षिण तक पडेगा। यूपी और बिहार की राजनीति भी प्रभावित होगी और ऐसे में खाबरी का यूपी प्रदेश का अध्यक्ष बनना बड़ी बात है। संभव है कि बिहार में भी कोई दलित अध्यक्ष बने और अन्य जातियों के कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाएँ। इसका काफी असर पडेगा। 

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