Chhattisgarh Tarkash: शराबी अफसर, बेसुध सिस्टम

Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय के. दीक्षित का 14 वर्षों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Update: 2023-06-25 10:30 GMT

Chhattisgarh Tarkash: 25 जून 2023

संजय के. दीक्षित

शराबी अफसर, बेसुध सिस्टम

शराब पीकर किसी महिला से छेड़खानी कर दें तो कार्रवाई नहीं होगी...राजधानी रायपुर में ऐसा ही कुछ चल रहा है। शराब के नशे में एडिशनल डायरेक्टर ने एक महिला अधिकारी को बीच रास्ते में रोककर छेड़छाड़ किया। पीड़िता ने थाने से लेकर हर उस दरवाजे को खटखटाया, जहां उसे लगा कि न्याय मिल सकता है। मगर 23 जून को घटना को एक महीना गुजर गया। पर वाह रे सिस्टम! तेलीबांधा थाना ने एफआईआर कायम किया तो अफसर ने बड़े फास्ट कानूनी राहत ले ली...आरोपी अधिकारी के ट्रांसफर के लिए विभागीय अधिकारियों ने फाइल चलाई। मगर नोटशीट एक माननीय के यहां जाकर अटक गईं। अफसर को बचाने एक संसदीय सचिव का इतना प्रेशर है कि पूरा सिस्टम हाथ खड़ा कर दिया है। विभाग ने एक महिला आईएएस को जांच के लिए रिकमंड किया। महिला अफसर ने हाथ जोड़ लिया। एक महिला डिप्टी डायरेक्टर ने सीनियर अफसर के खिलाफ जांच नहीं कर सकती, पत्र लिख छुट्टी पर चली गईं। उधर, सिस्टम में बैठे लोग यह कहकर आरोपी अफसर को बचा रहे कि पीने पर थोड़ा बहक जाता है...मगर आदमी बढ़ियां है। कहने का मतलब यह कि शराब पीकर छेड़छाड कर दिया तो यह कोई जुर्म नहीं है। एक महिला अफसर के साथ ऐसी ज्यादती उस राजधानी में हो रही, जहां मंत्री से लेकर प्रशासन से लेकर पुलिस के बड़े-बड़े अफसरान बैठते हैं। उस राजधानी में पीड़िता यह कहने पर मजबूर हो गई है कि मैं अब खुदकुशी कर लूंगी। वाकई ये शर्मनाक है।

सीएम का लंच

चुनाव आयोग की दो दिन की मैराथन बैठक के बाद तीसरे दिन मुख्यमंत्री निवास में सभी 33 जिलों के कलेक्टर-एसपी को लंच के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि, मौका था बोर्ड परीक्षा के मेधावी बच्चों के सम्मान का। मगर सभी कलेक्टर-एसपी का एक साथ इंट्रेक्शन हो गया। जिले के इन दोनों बड़े अधिकारियों को ऐसा अवसर हमेशा मिलता नहीं। साल में एकाध बार कांफ्रेंस में कलेक्टर-एसपी जुटते हैं...सीएम के साथ डिनर भी हुआ है। मगर कांफ्रेंस के टेंशन की वजह से वे नार्मल नहीं रहते...चेहरा लटका होता है। पर इस बार तो सीएम हाउस का आमंत्रण था। सीएम हाउस का आमंत्रण मतलब सीएम का। सूबे का मुखिया घर बुलाकर भोजन कराएंगे तो कलेक्टर-एसपी का खुश होना लाजिमी है। अपने स्टाईल के अनुसार सीएम भूपेश लगभग सभी टेबलों पर जाकर कलेक्टर-एसपी के साथ बैठकर बात किए। बता दें, साढ़े चार साल में मुख्यमंत्री निवास में कलेक्टर-एसपी का पहला भोजन का कार्यक्रम था। यह खास इसलिए भी रहा कि सीएम ने अपने कक्ष में एक-एक कलेक्टर, एसपी से दो-दो, तीन-तीन मिनट का वन-टू-वन भी किया। पहले कलेक्टर, फिर एसपी। कलेक्टरों से उन्होंने उनके जिले में चल रहे विकास कार्याें आदि के बारे में फीडबैक लिया तो एसपी से लाॅ एंड आर्डर आदि के बारे में। लगभग डेढ़ से दो घंटे में सीएम ने सभी कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों से उनके जिले का अपडेट ले लिया।

विषकन्याओं से अलर्ट

2023 का विधानसभा चुनाव कुछ अलग किस्म का होगा। शह-मात के खेल में अलग-अलग हथकंडे अपनाए जाएंगे। खुफिया एजेंसियां भी इसको लेकर चौकस हैं तो केंद्रीय एजेंसियों की भी इस पर पैनी नजर है। दरअसल, सूचना है कि कुछ सियासी नेता टिकिट के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय रहने वाले सियासी पार्टी के एक युवा नेता अपनी विवाहेत्तर महिला मित्र को अभी तक कलेक्टरों के पास भेजकर जमीन-जायदाद, ठेका, सप्लाई का काम करवा रहे थे अब वे टिकिट के फेर में कुछ भी करने पर अमादा हैं। जाहिर है, खुफिया एजेंसियां इसको लेकर चिंतित तो होगी ही...विषकन्याएं कहीं बड़े सूरमाओं को डंस न लें।

निर्भिक कलेक्टर!

चुनावी साल में कुछ कलेक्टर डीएमएफ को लेकर बेहद खौफ में चल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि बचे बजट को खर्च करने को लेकर उन पर काफी प्रेशर है। रायपुर ही नहीं देश भर के सप्लयार गिद्ध की तरह जिलों में मंडरा रहे हैं। कोई इधर से फोन करवा रहा, तो कोई उधर से...कलेक्टरों को पैसों को खर्च करने के लिए भांति-भांति के रास्ते सुझाए जा रहे हैं। कहीं हाथी के हमले से बचने मोबाइल में मैसेज भेजने पर पैसे लुटाए जा रहे तो कहीं कोरोना की जांच के लिए किट खरीदे जा रहे। अब भला बताइये, हाथी के हमले के शिकार कौन लोग होते हैं...वहां क्या मोबाइल होते हैं और मोबाइल होंगे भी तो जंगलों में नेटवर्क नहीं होते। गरीब गुरबे मोबाइल लेकर जंगलों में महुुआ बिनने तो जाते नहीं। मगर डीएमएफ का पैसे को खर्च करना है, सो आग लगा दो। ऐसे निर्भिक कलेक्टरों को सैल्यूट...दोनों हाथों से वे डीएमएफ को उड़ा रहे हैं।

प्रमुख सचिव की क्लास

पिछले हफ्ते कलेक्टरों की हुई वीडियोकांफ्रेंसिंग में प्रमुख सचिव डाॅ0 आलोक शुक्ला ने कई कलेक्टरों की क्लास ले ली। वे नाराज इसलिए थे क्योंकि स्कूल जतन योजना और बेरोजगारी भत्ते पर कई जिलों का पारफारमेंस संतोषप्रद नहीं था। शुक्ला स्कूल शिक्षा के प्रमुख सचिव हैं और रोजगार मिशन के डायरेक्टर भी। शुक्ला के सवालों के बौछारों से कई कलेक्टर लगे बगले झांकने। स्कूल जतन योजना सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। यह ऐसा काम है, जो ग्रामीण इलाकों में विकास को प्रदर्शित करेगा। मगर कुछ कलेक्टर इसमें भी डंडी मार रहे हैं।

पूर्व आईएएस की पोस्टर

प्रमुख सचिव के पद से रिटायर हुए पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा ने दो साल पहले भाजपा का दामन थाम लिया था। सियासत में उतरने के बाद मिश्रा के चुनाव लड़ने की चर्चाएं चलती रहती थीं। मगर लगता है अब वे खुलकर मैदान में उतर आए हैं। राजधानी रायपुर में उनकी सियासी पोस्टर दिखने लगी है। मिश्रा को बीजेपी टिकिट देती है कि नहीं...ये वक्त बताएगा। मगर ये जरूर है कि इस बार कई रिटायर या वीआरएस वाले अफसर चुनावी मैदान में होंगे। रायपुर कलेक्टर से वीआरएस लेकर चुनावी मैदान में कूदे ओपी चैधरी को फिर से चुनाव लड़ने में कोई संशय नहीं है। तो वहीं नीलकंठ टेकाम भी वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिए हैं। केशकाल से उनका चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। कांकेर से कांग्रेस विधायक शिशुपाल सोरी फिर से चुनाव मैदान में होंगे। 

नौकरशाहों से पीछे नहीं

विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने सिर्फ अधिकारी नहीं बल्कि कर्मचारी और शिक्षक नेता भी मौका मिलने पर गोते लगाने तैयार हैं। पिछले चुनाव में शिक्षाकर्मी से नेता बने चंद्रदेव राय कांग्रेस की आंधी में चुनाव जीत गए थे। उनकी देखादेखी इस बार कई शिक्षक नेता अभी से जोर-तोड़ शुरू कर दिए हैं। इनमें से कुछ शिक्षक नेताओं नेे पिछली बार भी प्रयास किया था मगर बात बनी नहीं। इस बार सुनने में आ रहा कि कुछ कर्मचारी नेता भी टिकिट के लिए सियासी नेताओं के संपर्क में हैं। दरअसल, इस बार दोनों ही मुख्य पार्टियां फ्रेश चेहरों को मैदान में उतारने पर विचार कर रही है। इसको दृष्टिगत रखते कई शिक्षक और कर्मचारी नेता चंद्रदेव राय टाईप लाटरी निकलने को लेकर बेहद उत्साहित हैं।

बीजेपी सबसे कमजोर

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में बीजेपी शून्य है तो मैदानी इलाकों में उसकी सबसे बुरी स्थिति दुर्ग संभाग में है। 2018 के विस चुनाव में बस्तर से बीजेपी को एक दंतेवाड़ा की सीट मिली थी मगर उपचुनाव में वो भी हाथ से निकल गई। सरगुजा में पार्टी का खाता नहीं खुला। मैदानी इलाकों की बात करें तो बिलासपुर, रायपुर थोड़ा ठीक रहा...इन्हीं सीटों की बदौलत पार्टी दहाई आंकड़े में पहुंच पाई। वरना, दुर्ग में उसे बड़ा करंट लगा। दुर्ग में 20 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से बीजेपी को सिर्फ दो सीटें मिली। राजनांदगांव से डाॅ0 रमन सिंह और वैशाली नगर से विद्यारतन भसीन। भसीन भी कल दिवंगत हो गए। सियासी पंडितों का मानना है...अमित शाह की सभा के लिए इसीलिए दुर्ग को चुना गया। दुर्ग से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही नहीं आते बल्कि उनके मंत्रिमंडल के चार सदस्य भी दुर्ग संभाग से आते हैं। जाहिर तौर पर इस समय यह कांग्रेस का मजबूत गढ़ है। हालांकि, इससे पहले के तीन चुनावों में बीजेपी को हमेशा 20 में से 11 से 12 सीटें मिलीं। 2018 के कांग्रेस की आंधी में बीजेपी को पहली बार बड़ा झटका लगा...उसे सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पीसीसी चीफ मोहन मरकाम को इतनी उर्जा किधर से मिल रही कि प्रदेश प्रभारी द्वारा महामंत्रियों के प्रभार में बदलावों को निरस्त करने के बाद भी उनके तेवर कम नहीं हो रहे?

2. इन अटकलों मेें कितनी सत्यता है कि राजभवन के सिकरेट्री अमृत खलको पीएससी के नए चेयरमैन होंगे?

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