Chhattisgarh Tarkash: लंपट अफसर पर गाज

Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय के. दीक्षित का 14 सालों से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Update: 2023-07-02 10:30 GMT

तरकशः 2 जुलाई 2023

संजय के. दीक्षित

लंपट अफसर पर गाज

पिछले सप्ताह तरकश में शराबी अफसर, बेसुध सिस्टम...हेडिंग से एक खबर लगी थी। मामला एडिशनल डायरेक्टर से जुड़ा था, जिसने शराब के नशे में एक महिला असिस्टेंट डायरेक्टर से सरेआम छेड़खानी किया था। राजधानी में महिला अधिकारी ने न्याय की आस में हर वो दरवाजा खटखटाया...मगर सिस्टम पर कोई असर नहीं हुआ। आरोपी अधिकारी को हटाने मंत्री के यहां फाइल भेजी गई, वो फाइल भी लौटकर नहीं आई। जाहिर है, साधारण आदमी होता तो एफआईआर दर्ज करते ही पुलिस उठा ली होती और कोर्ट-कचहरी से उसे कानूनी राहत भी नहीं मिलती। बहरहाल, महीना गुजर जाने के बाद भी कोई एक्शन नहीं हुआ तो दुखी और निराश महिला अधिकारी ने खुदकुशी करने की धमकी दे डाली। 25 जून के तरकश में हमने इस खबर को प्रमुखता से हेडलाईन बनाया। इस खबर का असर हुआ। बताते हैं, सर्वोच्च स्तर पर इसको संज्ञान लिया गया और अधिकारियों से सवाल-जवाब हुआ। और अगले ही दिन 26 जून को एडिशनल डायरेक्टर को डायरेक्ट्रेट से हटाकर मंत्रालय में अटैच कर दिया गया।

आईपीएस को रिटायर?

एडीजी लेवल के आईपीएस को फोर्सली रिटायर करने गृह विभाग ने भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा है। हालांकि, दो साल पहले भी प्रस्ताव गया था मगर उसमें तीन आईपीएस के नाम थे। मगर मुकेश गुप्ता के चक्कर में बाकी अधिकारियों को राहत मिल गई थी। मुकेश को मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर ने विभिन्न कारण गिनाते हुए रिटायर करने से मना कर दिया था। इस बार सिर्फ एक आईपीएस का नाम गया है। इससे पहले आईपीएस राजकुमार देवांगन, एएम जूरी और केसी अग्रवाल को रमन सरकार के प्रस्ताव पर एमएचए ने फोर्सली रिटायर कर दिया था। हालांकि, केसी अग्रवाल बाद में कैट में गए और वहां से जीत कर इसी सरकार में सरगुजा के आईजी भी रहे।

डीजी जेल रिटायर

88 बैच के आईपीएस संजय पिल्ले 35 साल की सेवा के बाद इस महीने 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। राज्य बनने के बाद बिलासपुर के एसपी रहे संजय पिल्ले पीएचक्यू में कई अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। वे पहले आईपीएस होंगे, जिन्हें दो बार खुफिया चीफ रहने का मौका मिला। पिछली सरकार में भी और इस सरकार में भी। वे गृह सचिव रहे तो डायरेक्टर स्पोर्ट्स भी। एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर की पोस्टिंग भी उन्होंने की। पुलिस मुख्यालय का काफी महत्वपूर्ण विभाग फायनेंस एंड प्रोवजनिंग भी उनके पास लंबे समय तक रहा। साफ-सुथरी छबि के अफसर माने जाने वाले संजय इस समय डीजी जेल का दायित्व संभाल रहे हैं।

अगला डीजी जेल कौन?

संजय पिल्ले के रिटायरमेंट के बाद सवाल यह है कि उनके बाद डीजी जेल किसे बनाया जाएगा। इसका जवाब जरा मुश्किल इसलिए है कि 31 जुलाई के बाद सूबे में सिर्फ एक डीजी रहेंगे। डीजी पुलिस अशोक जुनेजा। जबकि, छत्तीसगढ़ में डीजी के दो कैडर पोस्ट हैं। दो एक्स कैडर पद मिलाकर चार डीजी हो सकते हैं। 90 बैच के राजेश मिश्रा को सरकार ने स्पेशल डीजी का वेतनमान दिया है मगर वे डीजी प्रमोट नहीं हो पाए हैं। 91 बैच में कोई है नहीं। 92 बैच की 30 साल की सेवा पूरी हो गई है। इस बैच में दो आईपीएस हैं...एडीजी पवनदेव और अरुण देव गौतम। पिछले साल जनवरी से इनका डीजी प्रमोशन ड्यू है। सरकार चाहे तो फास्ट फाइल चलाकर इन्हें डीजी प्रमोट कर सकती है। या इन्हीं अधिकारियों में से किसी को जेल का प्रभार सौंप सकती है। इनमें राजेश मिश्रा की संभावना फिलहाल इसलिए नजर नहीं आ रही क्योंकि डेपुटेशन से लौटने के बाद उन्हें ढंग की पोस्टिंग मिली नहीं है। बचे पवनदेव और गौतम। सो, इनमें से किसी को जेल का प्रभार मिल सकता है।

परसेप्शन को धक्का!

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले एक आम परसेप्शन बन गया था...संदर्भ था एसेंबली इलेक्शन। हर दूसरा आदमी छूटते ही कहता था...कुछ नहीं बदलेगा...सब यथावत रहेगा। मगर हफ्ते भर के भीतर सियासत में ऐसा झंझावत आया कि परसेप्शन बदला तो नहीं मगर उसे धक्का अवश्य लगा है। इसे सीधे अंजाम से नहीं जोड़ सकते। किन्तु यह तो सही है कि शह-मात का खेल सियासत का अहम हिस्सा होता है।

सियासी फार्मूला

ये बात छिपी नहीं है...छत्तीसगढ़ में सरकार और संगठन के बीच लंबे अरसे से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। आखिर, सीएम ने जिन दो नेताओं के खिलाफ हाईकमान से अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की थी, उसमें सिवाय नोटिस के कुछ नहीं हुआ। उल्टे पीसीसी ने उन नेताओं का महत्व बढ़ाने का ही प्रयास किया। पार्टी प्रमुख मोहन मरकाम भी एकतरफा फैसला लेते रहे हैं। मगर इस बार दांव जरा उल्टा पड़ गया। महामंत्रियों के प्रभार में बदलाव को प्रदेश प्रभारी सैलजा ने निरस्त किया तो मरकाम भड़क गए। लिहाजा लड़ाई के किरदार बदल गए हैं...मामला अब प्रदेश प्रभारी वर्सेज पीसीसी चीफ हो गया है। सुनने में आ रहा...हाईकमान एक बार फिर तीन कार्यकारी अध्यक्षों का फार्मूला आजमाने पर विचार कर रहा है। इसके तहत पीसीसी चीफ के साथ तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाएंगे। इनमें सामान्य, साहू और दलित वर्ग से एक-एक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाएगा। जाहिर है, इससे मोहन मरकाम को दिक्कतें होगी।

ये भी डिप्टी सीएम

कांग्रेस हाईकमान ने टीएस सिंहदेव को छत्तीसगढ़ का उप मुख्यमंत्री बनाया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे पहले डिप्टी सीएम होंगे। हालांकि, राज्य बनने से पहले कोरबा के प्यारेलाल कंवर अविभाजित मध्यप्रदेश में डिप्टी सीएम रहे। तब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। उस समय दो डिप्टी सीएम का फार्मूला बना था। ओबीसी से सुभाष यादव और आदिवासी वर्ग से प्यारेलाल कंवर डिप्टी सीएम रहे। राज्य निर्माण के बाद रमन सिंह के कार्यकाल में एकाधिक बार डिप्टी सीएम की चर्चाएं जरूर चली मगर वो परवान नहीं चढ़ पाए।

डीएम-एसपी और पीएम विजिट

किसी भी कलेक्टर-एसपी के लिए पीएम विजिट कराना फख्र की बात होती है...इसके लिए देश भर में पोस्टेड बैचमेट से बधाइयां तो मिलती ही है...लाइफ लांग यह याद रखने वाला इवेंट होता है। दरअसल, सबको यह मौका मिलता नहीं। चूकि 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायपुर आ रहे हैं...जाहिर तौर पर रायपुर कलेक्टर डॉ0 सर्वेश भूरे और एसएसपी प्रशांत अग्रवाल के कैरियर के लिए यह यादगार घटना होगी। दरअसल, पीएम विजिट एसपीजी के निर्देशन में होता है मगर उसे एग्जीक्यूट करने का जिम्मा जिले के कलेक्टर-एसपी पर होता है। सिक्यूरिटी में भी फर्स्ट लेवल में एसपीजी के अधिकारी होते हैं...उसके बाद सेकेंड लेयर में कलेक्टर-एसपी। पीएम के काफिले में भी एसपीजी के बाद इन दोनों अफसरों की गाड़ियां होती हैं।

कलेक्टर का काला चश्मा

पीएम विजिट में कलेक्टर की क्या भूमिका होती है...दो घटनाओं से इसे स्पष्ट करते हैं। पहली, राज्य बनने के जस्ट पहले 98 की एक घटना है। बिलासपुर रेलवे जोन के उद्घाटन के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी बिलासपुर आने वाले थे। इसके लिए कार्यक्रम स्थल पर तीन हेलीपैड बने थे। कार्यक्रम से दो रोज पहले एसपीजी के डीआईजी मुआयना करने पहुंचे। हेलीपैड के आसपास छोटे-छोटे पत्थर पड़े हुए थे। डीआईजी इस बात से बेहद नाराज हुए। बोले...एक भी पत्थर अगर हवा से उड़कर हेलिकाप्टर से टकरा गया तो मालूम है आपलोगों का क्या होगा? उस समय डॉ. सुशील त्रिवेदी कलेक्टर थे और शैलेंद्र श्रीवास्तव एसपी। कलेक्टर ने कहा, रेलवे वालों ने हेलीपैड बनाया है। इस पर डीआईजी भड़क गए। बोले...आई डांट नो रेलवे...वनली नो डीएम एन एसपी। डीआईजी के कहने का आशय यह था कि रेलवे को हम नहीं जानते...सिर्फ कलेक्टर-एसपी इसके जिम्मेदार होंगे। अब रही दूसरी घटना...तो छत्तीसगढ़ के लोग इससे नावाकिफ नहीं होंगे। 2014 में पीएम मोदी दंतेवाड़ा आए थे। जगदलपुर एयरपोर्ट पर वहां के कलेक्टर अमित कटारिया ने रंगीन शर्ट और काला गॉगल लगाकर अगुवानी की। नेशनल मीडिया में यह मामला इतना तूल पकड़ा कि बस्तर के बाद अगले दिन पीएम चीन रवाना हुए। मगर कलेक्टर के काला चश्मे की खबर के आगे मोदी का चीन दौरा फीका पड़ गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डेपुटेशन से लौटे आईजी अंकित गर्ग और राहुल भगत की पोस्टिंग क्यों अटक गई हैं?

2. किस आईएएस अधिकारी को एडिशनल सीईओ बनाकर निर्वाचन में भेजा जा रहा है?

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