Chhattisgarh politics: CG किस्सा पहले चुनाव काः विद्याचरण ने चाणक्य की तरह चुटिया बांधा और 7 फीसदी वोट लेकर कांग्रेस को 15 साल के लिए सत्ता से बाहर कर दिया

Chhattisgarh politics: विद्याचरण शुक्ल की पार्टी एनसीपी को फ्लाप करने पूरा प्रशासन लग गया। जिलों के कलेक्टर और एसपी उनकी सभाओं में लगे व्यवधान पैदा करने। कई जगहों पर उनके हेलिकाप्टश्र को उतरने का परमिशन नहीं दिया गया तो कहीं सभा की इजाजत कलेक्टर ने नहीं दी। फिर भी वीसी ने हार नहीं मानी। और अजीत जोगी की सत्ता पलट दी।

Update: 2023-10-06 07:47 GMT

Chhattisgarh politics: रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य जब एक नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया, तब विधानसभा की 90 सीटें बंटवारे में मिलीं। पहले नंबर की सीट मनेंद्रगढ़ थी और अंतिम सीट कवर्धा। (वर्तमान में पहली सीट भरतपुर सोनहत और अंतिम सीट कोंटा है।) अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने तीन साल काम किया। इस बीच जोगी और विद्याचरण शुक्ल के बीच राजनीतिक रंजिश जारी रही। इसकी वजह यह थी कि पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के लिए लंबा संघर्ष करने वाले शुक्ल सीएम बनने से चूक गए थे और जोगी सीएम बना दिए गए थे।

इंदिरा गांधी के शासनकाल में पीएम के बाद नंबर दो की पोजिशन रखने वाले शुक्ल की स्थिति कांग्रेस शासनकाल में बिगड़ती जा रही थी। जोगी उन्हें कमजोर दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन करने वाले शुक्ल उपेक्षित महसूस कर रहे थे। शुक्ल ने हरसंभव कोशिश की कि उनका सम्मान बना रहे, लेकिन जोगी अपनी जिद पर अड़े रहे। आखिरकार 2003 में जब पहले चुनाव का समय आया, तब शुक्ल ने कांग्रेस का साथ छोड़कर एनसीपी जॉइन कर लिया।

विद्याचरण शुक्ल भले ही कांग्रेस में उपेक्षित थे, लेकिन ऐसा नहीं था कि उनका वजूद खत्म हो गया हो। उनके समर्थकों की अच्छी खासी संख्या थी, जो तन मन धन से उनके साथ थे। (शुक्ल के निधन के बाद भी उनके समर्थक शुक्ल समर्थक कहलाना पसंद करते थे।) एनसीपी जॉइन करने के बाद उन्होंने जब आवाज लगाई तो देखते-देखते अच्छी खासी संख्या जुट गई। इस बीच कांग्रेस का एक वर्ग शुक्ल के अलग चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं था। वे चाहते थे कि जोगी आपसी मनमुटाव छोड़कर उन्हें साथ ले लें। जोगी इसके लिए कतई तैयार नहीं थे। वे अपनी जिद पर अड़े रहे। इस बीच एनसीपी का प्रभाव छत्तीसगढ़ पर दिखने लगा था। उनकी सभाओं में अच्छी संख्या भी आ रही थी, जिससे चुनावी माहौल गर्म हो रहा था। इस बात को जोगी भी समझ रहे थे।

एक समय ऐसा भी आया, तब 10 जून 2003 को सप्रे शाला मैदान में एनसीपी की आमसभा रखी गई थी। प्रदेशभर से एनसीपी के कार्यकर्ता बुलाए गए थे। इस सभा को फ्लाप करने के लिए उनके विरोधी भी जुटे हुए थे। रायपुर आने वाली सभी सड़कें ब्लॉक कर दी गई थी। खासकर महासमुंद, सरायपाली और बसना की ओर से आने वाले लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां शुक्ल का अच्छा प्रभाव था। यहां से वे सांसद चुने गए थे और संसद में सबसे युवा सांसद बने थे। नदी मोड़ का रास्ता ही बंद कर दिया गया, जिससे उस ओर से लोग न आ पाएं। ऐसा एक नहीं, बल्कि कई बार हुआ। किस्सा तो यहां तक बताया जाता है कि शुक्ल की सभाओं में भीड़ कम करने के लिए सभा स्थल पर सांप भी छोड़े गए थे।

खैर, वह समय भी आ गया, जब शुक्ल को अपनी ताकत का अहसास कराना था। शुक्ल ने 89 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए। इनमें एनसीपी के सिर्फ एक प्रत्याशी की जीत हुई, लेकिन कांग्रेस की सत्ता चली गई। नोवेल कुमार वर्मा चंद्रपुर से जीते थे। 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 50 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस को 37 सीटें मिली थीं। भाजपा को 39।26 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 36।71 प्रतिशत वोट मिले थे। एनसीपी भले ही एक सीट जीती थी, लेकिन 7।09 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को भाजपा से महज 2।55 प्रतिशत वोट कम मिले थे। यह माना गया कि 7।09 प्रतिशत वोट कांग्रेस के ही थे। शुक्ल के कारण ये वोट कांग्रेस के बजाय एनसीपी को मिले थे। इसे लेकर काफी बवाल हुआ था। जोगी को हार का जिम्मेदार माना गया था। उन्हें कांग्रेस से निकालने तक बात पहुंच गई। 2003 के चुनाव के बाद शुक्ल भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद लोकसभा चुनाव में महासमुंद से भाजपा के प्रत्याशी बनाए गए। इस चुनाव में उनके खिलाफ अजीत जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी थे। चुनाव प्रचार के दौरान जोगी का एक्सीडेंट हुआ था और उनके कमर के नीचे का हिस्से में पैरालिसिस हो गया। यह चुनाव जोगी जीते थे।

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