Chhattisgarh BJP: CG सीएम-डिप्टी सीएमः बीजेपी ने इशारों में किया छत्तीसगढ़ के सीएम और डिप्टी सीएम प्रोजेक्ट!

Chhattisgarh BJP: अब बात छत्तीसगढ़ की...राज्य निर्माण के बाद नवंबर 2003 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था। उस समय भी सीएम का कोई चेहरा नहीं था। तब मुख्यमंत्री की दौड़ में डॉ. रमन सिंह के साथ दिलीप सिंह जूदेव, रमेश बैस और आदिवासी नेता नंदकुमार साय का चेहरा जरूर था।

Update: 2023-11-14 08:05 GMT

Chhattisgarh BJP: रायपुर। भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करती है, मगर देश में यह दृष्टांत नहीं है कि पार्टी कभी मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर विधानसभा चुनाव लड़ी हो। लोकसभा इलेक्शन की बात करें तो स्व. अटलबिहारी बाजपेयी के चेहरे पर भाजपा ने चार चुनाव लड़ा तो 2009 में चुनाव से पहले ही पार्टी ने लालकृष्ण आडवानी को वेटिंग पीएम घोषित कर दिया था। ये अलग बात है कि वेटिंग पीएम वेटिंग में रह गए और मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो गए।

अब बात छत्तीसगढ़ की...राज्य निर्माण के बाद नवंबर 2003 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था। उस समय भी सीएम का कोई चेहरा नहीं था। तब मुख्यमंत्री की दौड़ में डॉ. रमन सिंह के साथ दिलीप सिंह जूदेव, रमेश बैस और आदिवासी नेता नंदकुमार साय का चेहरा जरूर था। मगर पार्टी स्तर पर कोई अधिकारिक ऐलान नहीं हुआ था और न ही इनमें से किसी नेता को खास तौर पर पेश किया गया। रमन सिंह चूकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे, इसलिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने उनके नाम पर मुहर लगा दिया। इसके बाद 2008, 2013 और 2018 का चुनाव रमन सिंह के नेतृत्व में लड़ा गया मगर पूरे चुनाव अभियान में पार्टी ने इस बात का कभी संकेत नहीं दिया कि भाजपा जीती तो रमन सिंह ही मुख्यमंत्री बनेंगे। हालांकि, पार्टी ने तीनों बार रमन को ही मौका दिया।

इस विधानसभा चुनाव 2023 में अगस्त तक तो भाजपा कहीं पिक्चर में नहीं थी। इसलिए मुख्यमंत्री फेस कोई विषय नहीं था। सितंबर फर्स्ट वीक तक लोग यही बोलते रहे, कांग्रेस एकतरफा आ रही। भाजपा के नेता भी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे थे कि पार्टी छत्तीसगढ़ को लेकर गंभीर नहीं...चुनाव के तीन महीने बच गए थे और पार्टी जमीन पर कहीं दिखाई नहीं पड़ रही। तब समझा जा रहा था कि बीजेपी 25 से 30 सीट पर सिमट जाएगी। भाजपा की रेटिंग में उछाल तब आया, जब उसके प्रत्याशियों की पहली लिस्ट घोषित हुई। 20 सीटों के उम्मीदवार घोषित कर पार्टी ने संकेत दे दिया कि पार्टी जीतने लायक लोगों पर ही दांव लगाएगी। फिर पीएम नरेंद्र मोदी ने खासतौर से अपने दूत के तौर पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया को रायपुर भेजा। मनसुख ने चुनाव की दिशा और दशा बदल दिया।

भाजपा अब सत्ताधारी पार्टी की टक्क्टर में आ गई है, तब स्वाभाविक तौर पर फिर से मुख्यमंत्री के चेहरे की चर्चा शुरू हो गई है। इनमें पहलर नाम 15 साल सीएम रहे डॉ. रमन सिंह का है। डॉ. रमन के साथ पीएम मोदी की केमेस्टी अच्छी रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव की वोटिंग के बाद मीडिया में बीजेपी की सरकार बदलने की बातें वायरल होने लगी थी...काउंटिंग से पहले पीएम मोदी दिल्ली छोड़ अहमदाबाद में ज्यादा वक्त गुजार रहे थे। ऐसे समय में डॉ. रमन सिंह दूसरी बार पीएम बनने की एडवांस में बधाई देने अहमदाबाद चले गए थे। छत्तीसगढ़ के दौरों में भी पीएम मोदी डॉ. रमन सिंह को काफी महत्व देते हैं। अपने भाषणों में उनके कामों का जिक्र भी करते हैं। जाहिर तौर पर रमन सिंह छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नेता हैं भी। कद के हिसाब से देखें तो बीजेपी के दीगर नेता उनके आसपास नहीं टिकते।

लेकिन, कुनकुरी और रायगढ़ के रोड शो में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो कहा, उससे पार्टी में उसके मायने निकाले जा रहे हैं। शाह ने पहले कुनकुरी में कहा...आप विष्णुदेव साय को जीताइये, हम इन्हें बड़ा आदमी बनाएंगे। उसके दो घंटे बाद रायगढ़ के रोड शो में कहा, आप ओपी चौधरी को जीताइये, हम इन्हें बड़ा आदमी बनाएंगे। अमित शाह की पार्टी में क्या स्थिति है, ये बताने का आवश्यकता नहीं। फिर शाह जैसे नेता अकारण इस तरह के शिगूफा छोड़ते भी नहीं। यही वजह है कि बीजेपी नेताओं के कान खड़े हो गए हैं। पार्टी में ऐसा माना जा रहा कि शाह ने इशारों ही इशारों में विष्णुदेव को सीएम और ओपी चौधरी को डिप्टी सीएम प्रोजेक्ट कर दिया है। याने आदिवासी सीएम और ओबीसी डिप्टी सीएम का फार्मूला। वैसे भी बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि विष्णुदेव साय जब केंद्रीय राज्य मंत्री से हटे थे, तो अमित शाह ने उन्हें अश्वस्त किया था...आगे आपका ध्यान रखा जाएगा...ये बात दिल्ली में पोस्टेड नौकरशाहों ने एनपीजी न्यूज को बताई थी।

विष्णुदेव साय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहने के साथ ही कई बार विधायक और सांसद रह चुके हैं। वे स्टील और लेबर जैसे विभागों के केंद्रीय राज्य मंत्री भी रहे। कई बड़ी जिम्मेदारियों के मिलने के बाद भी उनकी छबि निर्विवाद और बेदाग रही है। 2005 बैच के पूर्व आईएएस ओपी चौधरी भाजपा ज्वाईन करने से पहले दंतेवाड़ा, जांजगीर और रायपुर के कलेक्टर रहे। रायपुर कलेक्टर रहते हुए उन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले वीआरएस लेकर चुनावी राजनीति में उतरे थे मगर खरसिया जैसे संवेदनशील सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सियासी प्रेक्षकों का कहना है कि ओपी के लिए पिछले चुनाव की हार वरदान बन गई। इस पांच साल का उपयोग उन्होंने पूरे छत्तीसगढ़ का धुंआधार दौरे के लिए किया। ओपी छत्तीसगढ़ बीजेपी के चुनिंदा नेताओं में होंगे, जिन्होंने पूरे प्रदेश में अपना एक नेटवर्क बना लिया है। खासतौर से युवाओं में वे काफी लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया में उनकी एक पोस्ट पर हजारों की संख्या में लाइक और कमेंट्स आते हैं। ओपी अघरिया कुर्मी हैं। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ माटी के पहले आईएएस भी। हालांकि, 3 दिसंबर को पता चलेगा कि उंट किस करवट बैठता है। मगर अमित शाह के संकेत से इन दोनों नेताओं को लेकर अटकलों का दौर तो शुरू हो ही गया है।

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