Chhattisgarh Assembly Election 2023 : वोटकटवा होगी आप! 2003 में एनसीपी तो 2018 में जोगी कांग्रेस ने निभाई वोटकटवा की भूमिका, क्या गुजरात की तरह छत्तीसगढ़ में आप की रहेगी भूमिका

चुनाव के पूर्व एनसीपी और जोगी कांग्रेस की काफी चर्चा रही, लेकिन जब नतीजे आए तो दहाई की सीट तक नहीं पहुंच सके.

Update: 2023-04-07 11:49 GMT

Chhattisgarh Assembly Election 2023

मनोज व्यास @ NPG.News

रायपुर. वोटकटवा. यह शब्द राजनीतिक दलों के लिए किसी लांछन की तरह है. हालांकि राष्ट्रीय पार्टियों को छोड़ दें तो ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां या अचानक किसी राज्य में सक्रिय होने पर राष्ट्रीय पार्टियों को भी वोटकटवा ही माना जाता है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जब 2003 में विद्याचरण शुक्ल ने एनसीपी की टीम गठित की थी, तब उनकी भूमिका चुनाव में वोटकटवा की मानी गई. 2018 में जोगी कांग्रेस की भी यही भूमिका रही. इस बीच छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच हो या गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, सीपीआई आदि भी अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में वोटकटवा की भूमिका निभाती रही हैं. अब 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कयास लगाए जा रहे हैं कि आम आदमी पार्टी (आप) की भूमिका वोटकटवा की हो सकती है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि दिल्ली और पंजाब में तो आप ने पूरी दमदारी के साथ सरकार बनाई, लेकिन गुजरात में कांग्रेस के वोट काटने का काम किया. आज इसी मुद्दे पर बात करते हैं. पहले 2003 से 2018 तक राजनीतिक दलों का परफॉर्मेंस देखें...

विधानसभा चुनाव 2003

पार्टी – सीटें – वोट प्रतिशत

भाजपा – 50 – 39.26%

कांग्रेस – 37 – 36.71%

बसपा – 2 – 1.08%

एनसीपी – 1 – 7.02%

सीपीआई – 0 – 1.08%

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी – 0 – 1.60%

विधानसभा चुनाव 2008

पार्टी – सीटें – वोट प्रतिशत

भाजपा – 50 – 40.33%

कांग्रेस – 38 – 38.63%

बसपा – 2 – 6.11%

सीपीआई – 0 – 1.12%

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी – 0 – 1.12%

विधानसभा चुनाव 2013

पार्टी – सीटें – वोट प्रतिशत

भाजपा – 49 – 41.04%

कांग्रेस – 39 – 40.29%

बसपा – 1 – 4.27%

सीपीआई – 0 – 0.66%

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी – 0 – 1.57%

विधानसभा चुनाव 2018

पार्टी - सीटें - वोट प्रतिशत

कांग्रेस – 68 – 43.21%

भाजपा – 15 - 33%

जोगी कांग्रेस – 5 – 7.5%

बसपा – 2 – 3.38%

वोटकटवा से नुकसान कांग्रेस को

मध्यप्रदेश से अलग होने से पहले से ही छत्तीसगढ़ के हिस्से में भाजपा या कांग्रेस का ही दबदबा रहा. अलग-अलग समय पर कई क्षेत्रीय दलों ने अपनी दखल बनाई, लेकिन उनकी भूमिका वोटकटवा की ही रही, क्योंकि कोई भी दहाई के आंकड़े को नहीं छू सका. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि आने वाले समय में भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही होना है. अब तक का जो ट्रेंड है, उसके मुताबिक वोटकटवा ने कांग्रेस को ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. विद्याचरण शुक्ल कांग्रेस से ही अलग होकर एनसीपी में गए थे. इसके बाद अजीत जोगी ने भी कांग्रेस से अलग होकर जोगी कांग्रेस छत्तीसगढ़ का गठन किया. दोनों ने कांग्रेस के ही वोट बैंक में सेंध लगाई थी. वैसे भाजपा के सांसद रहे ताराचंद साहू ने भी निष्कासन के बाद छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का गठन किया था, लेकिन वे कोई उपस्थिति दर्ज नहीं करा सके. बाद में उनके बेटे दीपक साहू ने भाजपा प्रवेश कर लिया था.

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वोटकटवा नहीं, सरकार बनाएंगे

क्या आप की भूमिका वोटकटवा की होगी? जब यह सवाल आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक कोमल हुपेंडी से किया गया तो उनका कहना था कि हम वोटकटवा साबित नहीं होंगे, बल्कि सरकार बनाने जा रहे हैं. गुजरात में भी हमने डरकर चुनाव लड़ने के बजाय पूरी मजबूती से चुनाव लड़ा और अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. छत्तीसगढ़ में उससे ज्यादा मजबूती से चुनाव लड़ेंगे. इसके लिए प्रदेशभर में सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है. मिस्ड कॉल के जरिए लोग सदस्य बन सकेंगे. 22 अप्रैल तक यह अभियान चलेगा. इसके बाद राज्यसभा सांसद संदीप पाठक फिर आएंगे. इससे पहले वे ब्लॉक/सर्कल लेवल और विधानसभा स्तर पर प्रशिक्षण दे चुके हैं. सदस्यता अभियान के मद्देनजर प्रदेश कमेटी का ऐलान रोक दिया गया है. सदस्यता में परफॉर्मेंस को देखते हुए आगे निर्णय लिया जाएगा.

एक्सपर्ट्स व्यू : वोट काटने की ही भूमिका रहेगी

पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर के मुताबिक छत्तीसगढ़ में जो वोटिंग बिहेवियर है, उसके मुताबिक मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहा है. अभी आगे भी ऐसी स्थिति देखने को मिलेगी. एनसीपी, जोगी कांग्रेस या अन्य की भूमिका को वोटकटवा इसलिए कह सकते हैं, क्योंकि दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सके, लेकिन उनकी मौजूदगी में कांग्रेस के प्रत्याशियों को नुकसान जरूर हुआ. यहां के मतदाताओं का जो रुझान है, उस पर गौर करें तो अनाज की बड़ी भूमिका रही है. डॉ. रमन सिंह दूसरी और तीसरी बार जब सीएम बने, तब चावल योजना का प्रभाव था. कांग्रेस की सरकार के पीछे भी धान की कीमत और बीजेपी सरकार द्वारा बोनस का वादा कर नहीं देना ही कारण है. तीसरी ताकत को भी इन्हीं मुद्दों को आगे लेकर काम करना होगा.

चुनाव दर चुनाव बढ़ते हुए प्रतिभागी

चुनाव – दल

2003 – 28 + निर्दलीय

2008 – 40 + निर्दलीय

2013 – 45 + निर्दलीय + नोटा

2018 – 61 + निर्दलीय + नोटा

(राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, अनरजिस्टर्ड सभी दल शामिल)

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