Chhattisgarh Assembly Election 2023: केवल एक सीट पर पुराने चेहरे: इस बार नहीं दिखेगी इन परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों की जंग

Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा सीटों को छोड़कर बाकी 86 सीटों पर कांग्रेस-भाजपा प्रत्‍याशी के नाम की घोषणा हो चुकी है।

Update: 2023-10-24 09:21 GMT
Chhattisgarh Assembly Election 2023: केवल एक सीट पर पुराने चेहरे: इस बार नहीं दिखेगी इन परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों की जंग
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Chhattisgarh Assembly Election 2023: रायपुर। विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने सभी 90 प्रत्‍याशियों के नामों की घोषणा कर दी है। वहीं, भाजपा 86 सीटों पर प्रत्‍याशी उतार चुकी है। ऐसे में इन 86 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा का चेहरा कौन होगा यह स्‍पष्‍ट हो गया है। इनमें राज्‍य वो सीटें भी शामिल हैं जिनमें हर बार दोनों ही पार्टियों से एक ही चेहरा मैदान में नजर आता थे। लेकिन इस बार यह तस्‍वीर बदल गई है।

जांजगीर-चांपा, बिल्‍हा, भिलाई नगर और पाली-तानाखार विधानसभा सीट ऐसी है, जहां लगभग हर बार एक ही चेहरा मैदान में रहते थे। 2018 के चुनाव से चेहरा बदले जाने लगे। 2018 में इसमें एक सीट कम हुई थी इस बार ऐसी एक ही सीट रह गई है। बिल्‍हा सीट से कांग्रेस और भाजपा से फिर वही पुराने चेहरे नजर आएंगे। इस सीट से भाजपा ने धरमलाल कौशिक को टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस ने जनता कांग्रेस छत्‍तीसगढ़ से लौटे सियाराम कौशिक को मैदान में उतारा है। दोनों कौशिक के बीच यह चुनावी जंग 4 चुनावों से चल रही है। इस बार पांचवीं बार दोनों आमने-सामने हैं। राज्‍य बनने के बाद 2003 में हुए पहले चुनाव में दोनों का आमना-सामना हुआ। हालांकि धरमलाल कौशिक भाजपा की टिकट पर 1993 से इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पहले चुनाव में हार का सामना करने के बाद कौशिक इसी सीट से 1998 में पहली बार विधायक चुने गए। 2003 में कौशिक बनाम कौशिक की जंग में धरमलाल हार गए। 2008 में फिर दोनों कौशिक का आमना-सामना हुआ। इस बार सियाराम हार गए और धरमलाल ने जीत दर्ज की। 2013 में सियाराम ने वापसी की और धरमलाल हार गए। 2018 में सियाराम कांग्रेस छोड़ चुके थे, लेकिन चुनाव बिल्‍हा से ही लड़ा। इस बार फिर धमरलाल से वे हार गए।

इस बार कम हो गई ऐसी 2 सीटें

परंपरागत प्रतिद्वंद्वी वाली सीटों की संख्‍या 2018 के चुनाव में तीन थी। इनमें बिल्‍हा के साथ पाली-तानाखार और जांजगीर-चांपा सीट भी शामिल थी। पाली-तानाखार सीट से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से हीरा सिंह मरकाम और राम दयाल उईके 2003 से हर चुनाव में आमने-सामने रहे। उइके ने पिछले चुनाव में पार्टी बदली फिर भी उन्‍हें इसी सीट से टिकट मिला। इस बार भी उइके पाली-तानाखार से भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में हैं, लेकिन हीरा सिंह मरकाम के स्‍थान पर उनके पुत्र तुलेश्‍वर सिंह मरकाम गोंगंपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

जांजगीर-चांपा सीट पर भाजपा के नारायण चंदेल और कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन के बीच लगातार चुनावी जंग होती रही। इस बार कांग्रेस ने मोतीलाल देवांगन का टिकट काट दिया है। दोनों पहली बार 1998 के विधानसभा चुनाव में चांपा सीट से आमने-सामने आए। चंदेल भाजपा और देवांगन कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में चंदेल की जीत हुई। राज्‍य बनने के बाद 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर दोनों का इसी सीट पर आमना-सामना हुआ। इस बार देवांगन ने बाजी मार ली। 2008 के चुनाव से पहले परिसीमन हुआ और चांपा सीट जांजगीर-चांपा बन गई। इस बार दोनों ने इस नई सीट पर भाग्‍य आजमाने उतरे। इस बार बारी चंदेल की थी और वे जीत गए। 2013 में ट्रेंड के हिसाब से बारी देवांगन की थी। हुआ भी वहीं चंदेल चुनाव हार गए। इसके बाद 2018 की जंग में चंदेल ने फिर देवांगन को मात दे दिया।

2018 से भिलाई नगर सीट पर पांडेय के सामने नया चेहरा

भिलाई नगर सीट पर भी भाजपा के प्रेम प्रकाश पांडेय और कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी के बीच चुनावी जंग की चर्चा में रही है। 2018 के चुनाव में कुरैशी ने सीट बदल लिया। ऐसे में भिलाई नगर सीट से प्रेम प्रकाश पांडेय के सामने देवेंद्र यादव के रुप में कांग्रेस ने नया चेहरा लाकर खड़ा कर दिया। इस बार इस सीट से पांडेय और यादव आमने-सामने हैं।

वैसे पांडेय बनाम कुरैशी की यह जंग 1993 में शुरु हुई। तब से 2018 के पहले तक जितने चुनाव हुए सभी दोनों आमने-सामने हुए। दोनों में से कोई लगातार दो चुनाव नहीं जीत पाया। 2018 में कुरैशी ने सीट बदली तो दोनों ही हार गए, जबकि ट्रेंड के हिसाब से भिलाई सीट पर जितने की बारी कुरैशी की थी। पांडेय 1990 में पहली बार भिलाई सीट से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1993 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने पांडेय के सामने कुरैशी को लगाकर खड़ा कर दिया, लेकिन वे हार गए। 1998 में भाजपा ने फिर पांडेय पर भरोसा दिखाया और कांग्रेस ने कुरैशी पर। इस बार कुरैशी बाजी मार ले गए। 2003 के चुनाव में फिर दोनों का आमना-सामना हुआ। इस बार पांडेय जीतकर विधानसभा पहुंच गए। अब 2008 में जीतने की बारी कुरैशी की थी। हुआ भी वहीं, दोनों दलों ने इन्‍हीं दोनों को अपना प्रत्‍याशी बनाया। पांडेय बनाम कुरैशी की जंग 2013 में भी भिलाई सीट पर नजर आई। इस बार भी ट्रेंड कायम रहा और पांडेय कुरैशी को हरा कर विधानसभा पहुंच गए। अब लोगों को 2018 की जंग का इंतजार था। ट्रेंड के हिसाब से इस बार कुरैशी को जीतना था, लेकिन इस बार कुरैशी की सीट बदल गई। कुरैशी वैशालीनगर सीट से और पांडेय अपनी भिलाई सीट से मैदान में उतरे। ट्रेंड के हिसाब से पांडेय को हारना था, कुरैशी समाने नहीं थे फिर भी वे हार गए।

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