Chhattisgarh Assembly Election 2023: इस उपचुनाव से भाजपा को मिला 10 साल सत्ता में रहने का आइडिया, रमन कहलाए चाउंर वाले बाबा
छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा स्पीकर राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन के बाद दिसंबर, 2006 में कोटा में उपचुनाव हुआ था. इसमें डॉ. रेणु जोगी विधायक चुनी गई थी.
Chhattisgarh Assembly Election 2023रायपुर. दिसंबर, 2006 में बिलासपुर जिले की कोटा विधानसभा में उपचुनाव हुआ था. अभी छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बने 3 साल ही हुए थे. सरकार के सामने कोटा सीट पर जीत एक चुनौती थी, क्योंकि यहां कभी भाजपा नहीं जीत पाई थी. छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले स्पीकर पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन से यह सीट खाली हुई थी. उस समय कांग्रेस ने पं. शुक्ल के परिवार से ही किसी सदस्य को टिकट देने की कोशिश की, लेकिन परिवार के सदस्य तैयार नहीं हुए तो छत्तीसगढ़ के पहले सीएम अजीत जोगी ने अपनी पत्नी डॉ. रेणु जोगी का नाम आगे बढ़ा दिया. पार्टी ने स्वीकृति दे दी थी.
भाजपा ने कोटा उपचुनाव के लिए भूपेंद्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था. तत्कालीन वित्त मंत्री चुनाव संचालक थे. भाजपा पूरी मजबूती से यह चुनाव लड़ी थी।बल्कि पूरी ताकत झोंक दी। सीएम रमन सिंह ने सारे मंत्रियों को इस प्रतिष्ठा पूर्ण सीट को फतह करने के लगा दिया था। सभी मंत्रियों को कोटा में कैंप करने कहा गया। बावजूद इसके सफलता नहीं मिली. रेणु जोगी विधायक बनी थी और भूपेंद्र सिंह 23470 वोटों से हार गए थे. यह भाजपा के लिए झटके से कम नहीं था, क्योंकि इस हार को रमन की हार के रूप में देखा गया था. कोटा में जोगी की पत्नी प्रत्याशी थी. पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल या उनके परिवार का कोई सदस्य भी वहां नहीं था, जिससे सिम्पैथी वोट मिले. इसके बाद भी भाजपा हार गई थी.
कोटा की हार के बाद जब समीक्षा हुई, तब एक बात आई थी. लोगों में पीडीएस सिस्टम को लेकर नाराजगी थी. इस समय शिवराज सिंह सीएम के प्रमुख सचिव थे. उन्होंने लोगों को सस्ते में चावल देने का सुझाव दिया. सरकार को यह सुझाव जंच गया. इसके बाद गरीब परिवारों को तीन रुपए किलो में चावल देने का ऐलान किया गया. यह योजना इतनी जबर्दस्त थी कि छत्तीसगढ़ के लोगों ने ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्य के लोगों ने भी सराहा था. कई राज्य के मंत्री-अफसर पीडीएस की योजना को समझने के लिए छत्तीसगढ़ आए थे. इस तरह मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह चाउंर वाले बाबा बन गए. इसके बाद 2008 का चुनाव आया, तब एक व दो रुपए में चावल देने का ऐलान कर भाजपा ने सत्ता में वापसी की चाबी ढूंढ ली थी.
2008 की जीत के बाद भाजपा की सरकार मजबूत हो गई थी. यही मजबूती थी कि झीरम घाटी कांड की स्थिति बनने के बावजूद भाजपा की सत्ता में वापसी हो गई थी. इस तरह यह कहना गलत नहीं होगा कि कोटा उपचुनाव के बाद यदि भाजपा नहीं संभलती और एक व दो रुपए किलो में चावल देने की योजना नहीं लाती तो 2008 के चुनाव में ही मुश्किलें आतीं. 2008 में ही जीत नहीं होती तो 2013 का भी सपना पूरा नहीं पाता. चावल योजना के साथ ही बाद में भाजपा ने नमक, दाल और चना देने की भी शुरुआत की थी. इन योजनाओं को सराहा गया और कुछ और सुधार व बेहतरी के साथ ये योजनाएं आज भी लागू हैं.