Chhattisgarh Assembly Election 2023 Congress ka abhed kila: छत्‍तीसगढ़ की इन विधानसभा सीटों पर आज तक नहीं खिला कमल, जानिए...कौन- कौन सी सीटें हैं कांग्रेस का अभेद किला

Chhattisgarh Assembly Election 2023 Congress ka abhed kila: छत्‍तीसगढ़ 90 में से आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं जिन पर भाजपा आज तक जीत नहीं पाई है। इन सीटों ने भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता बढ़ा रखी है।

Update: 2023-08-11 14:27 GMT
  • प्रदेश की 90 में से कुल छह सीटें ऐसी हैं जिन पर भाजपा आज तक जीत नहीं पाई है
  • इनमें चार ऐसी भी सीटें हैं जिन पर इतिहास में कभी भी भगवा का परचम नहीं लहराया है
  • दो सीटों पर छत्‍तीसगढ़ पृथक राज्‍य बनने के बाद से अब तक नहीं खिला कमल

Chhattisgarh Assembly Election 2023 Congress ka abhed kila रायपुर। छत्‍तीसगढ़ अलग राज्‍य बने हुए करीब 23 साल हो गए। इन 23 सालों में विधानसभा के लिए चार बार चुनाव हो चुका है। इनमें 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन बार पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा सत्‍ता में आई। इसके बावजूद राज्‍य की 90 में से 6 सीटें ऐसी हैं जिन्‍हें भाजपा आज तक जीत नहीं पाई है। इनमें से चार सीटों पर तो इतिहास में कभी भी कमल नहीं खिला है। वहीं, दो सीट ऐसी है जिन पर छत्‍तीसगढ़ राज्‍य निर्माण से पहले 1-2 बार भाजपा जीती है। इन छह सीटों को कांग्रेस के लिए अभेद किला माना जाता है। कांग्रेस के इन अभेद किलो में बस्‍तर संभाग की कोंटा और सरगुजा संभाग की सीतापुर के साथ बिलासपुर संभाग की कोटा के अलावा मरवाही और पाली- तानाखार सीट शामिल है।

भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले बिलासपुर में सर्वाधिक तीन सीट

बिलासपुर संभाग को भाजपा का गढ़ माना जाता है। इसकी वजह भी है 2018 में जब राज्‍य के बाकी चारों संभागों में भाजपा जीत को तरस रही थी तब बिलासपुर संभाग ने सर्वाधिक विधायक चुनकर दिए। 2018 में भाजपा के कुल 15 विधायक जीते थे। इनमें अकेले बिलासपुर संभाग से 7, रायपुर संभाग से 5, बस्‍तर संभाग से 1 और दुर्ग संभाग से 2 विधायक चुने गए थे। इसके बावजूद बिलासपुर संभाग में तीन ऐसी सीटें हैं जिन पर भाजपा आज तक जीत दर्ज नहीं कर पाई है। इनमें कोटा व ख‍रसिया सीट तो ऐसी है जिस पर कमल खिलाना भाजपा के लिए आज तक सपना ही बना हुआ है। बाकी मरवाही और पाली तानाखार में राज्‍य बनने से पहले भाजपा के विधायक चुने गए थे, लेकिन छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के इतिहास में इन दोनों सीटों से भाजपा कभी नहीं जीती है।

समझिए इन छह सीटों का समीकरण Chhattisgarh Assembly Election 2023 Congress ka abhed किला

खरसिया: बिलासपुर संभाग के रायगढ़ जिला की यह सीट कांग्रेस का सबसे सुरक्षित और मजबूत गढ़ है। यह सीट 1977 में अस्तित्‍व में आया। तब से अब तक केवल कांग्रेस ही जीती है। पहले तीन चुनाव लक्ष्‍मी पटेल और उसके बाद के पांच चुनाव नंद कुमार पटेल। पिछले दो चुनाव से नंद कुमार पटेल के पुत्र उमेश पटेल जीत रहे हैं। छत्‍तीसगढ़ में भाजपा के पितृ पुरुष माने जाने वाले लखीराम अग्रवाल भी इस सीट पर एक बार हार का मुंह देख चुके हैं। यानी भाजपा इस सीट पर आज तक अपना खाता नहीं खोल पाई है।

सीतापुर: सरगुजा संभाग की इस विधानसभा सीट पर भी आजादी के बाद से अब कमल नहीं खिला है। यह सीट भी आजादी के बाद 1951 में अस्तित्‍व में आ गया था। 1972 में कांग्रेस विरोधी लहर में भी वहां के वोटरों ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा था। छत्‍तीसगढ़ राज्‍य बना तब 1998 के चुनाव में निर्दलीय प्रो. गोपाल राम सीतापुर के विधायक थे। राज्‍य बनने के बाद 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव कांग्रेस के अमरजीत भगत ने इस सीट से जीत दर्ज की। तब से अब तक भगत ही सीतापुर के विधायक हैं।

कोंटा: राज्‍य के सबसे अंतिम छोर पर स्थित कोंटा विधानसभा सीट देश की आजादी के बाद अस्तित्‍व में आ गया था। इस सीट पर 1972 में जनसंघ के प्रत्‍याशी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन भाजपा अपना भगवा नहीं लहरा पाई है। छत्‍तीसगढ़ राज्‍य निर्माण से पहले 1998 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के कवासी लखमा ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद से लखमा लगातार इस सीट से विधायक चुने जा रहे हैं।

कोटा: यह सीट बिलासपुर जिला में आता है। इस सीट के वोटरों ने भी कभी कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है। 1951 के पहले चुनाव से लेकर अब तक कांग्रेस का चुनाव चिन्‍ह और प्रत्‍याशी बदलता रहा, लेकिन वहां के वोटरों का मिजाज 2018 के पहले कभी नहीं बदला। हर बार उन्‍होंने कांग्रेस का ही साथ दिया। आपातकाल के दौर में 1972 में कांग्रेस के मथुरा प्रसाद ने लगातार दूसरी बार इस सीट से जीत दर्ज की थी। राज्‍य बना तब इस सीट से विधायक राजेंद्र प्रसाद शुक्‍ल विधानसभा के अध्‍यक्ष बने। उनके निधन के बाद 2006 में उप चुनाव हुआ तब रेणु जोगी इस सीट से विधायक चुनी गईं। हालांकि 2018 का चुनाव उन्‍होंने जनता कांग्रेस छत्‍तीसगढ़ की टिकट पर लड़ा और जीती भीं। लेकिन भाजपा अब तक यह सीट नहीं जीत पाई है।

मरवाही: बिलासपुर से अलग होकर बने गौरेला- पेंड्रा- मरवाही जिला की इस सीट को छत्‍तीसगढ़ अलग राज्‍य बनने के बाद से आज तक भाजपा जीत नहीं पाई है। राज्‍य निर्माण से पहले 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के रामदयाल उइके विधायक चुने गए थे। यही इस सीट पर भाजपा की अंतिम जीत थी। 2000 में राज्‍य बनने के बाद उइके ने तत्‍काली मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी के लिए यह सीट छोड़ दी। इसके बाद से भाजपा यह सीट नहीं जीत पाई है। 1967 से अस्तित्‍व में आई इस सीट पर 1990 में पहली बार भवंर सिंह पार्ते भाजपा की टिकट पर जीते थे। यानी इस सीट पर कुल दो बार ही कमल खिला है।

पाली तानाखार: यह सीट भी बिलासपुर संभाग में आता है। 1957 में अस्तित्‍व में आई कोरबा जिला की इस सीट पर 1985 में हीरा सिंह ने भाजपा का खाता खोला था। 1990 में भाजपा फिर जीती, तब अमोल सिंह विधायक चुने गए। इन दो चुनावों के बाद यहां की जनता ने कभी कमल का साथ नहीं दिया। तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी के लिए मरवाही सीट छोड़ने वाले रामदयाल उइके 2003 से 2013 तक इस सीट से कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुने जाते रहे। 2018 के चुनाव से पहले वे भाजपा में चले गए तो कांग्रेस ने मोहित राम को चुनाव मैदान में उतारा अभी वे ही विधायक हैं।

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