Chhattisgarh Assembly Election 2023 चुनावी हमनाम-कितने आते हैं काम : चुनाव में तलाश किए जाते हैं अपने प्रतिद्वंद्वी के हमनाम, वोटिंग के बाद हो जाते हैं गुमनाम
Chhattisgarh Assembly Election 2023
मनोज व्यास. रायपुर @ NPG.News
शेक्सपीयर की मशहूर लाइन है - नाम में क्या रखा है? उनके मशहूर नाटक रोमियो एंड जूलियट में रोमियो से जूलियट कहती है, यह जो तुम अपने नाम के साथ अपना सरनेम लिखते हो, यह निरर्थक है. तुम रोमियो हो, जिससे मैं प्रेम करती हूं. तुम्हारे कुल का नाम क्या है या तुम्हें मिस्टर मोंटेग के नाम से पुकारा जाता है या नहीं, ये सब सतही बातें हैं. गुलाब को गुलाब कहा जाए या उसे किसी और नाम से पुकारा जाए, जब तक उसमें अपनी खुशबू है, नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता. जूलियट की इस बात से रोमियो इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी क्षण अपना सरनेम मोंटेग हटा दिया और कहा कि आज से मुझे 'जूलियट्स लवर' के नाम से ही जाना जाएगा.
किस्सा रोचक है, इसलिए हमने यहां आपसे भी शेयर किया, लेकिन यहां हम रोमियो-जूलियट की नहीं, राजनीति की बात कर रहे हैं. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में जब यह सवाल किया जाता है कि नाम में क्या रखा है? तब शायद उन रणनीतिकारों को पता होगा कि अपने प्रतिद्वंद्वी को हराने के लिए किसी हमनाम को खोजना कितना मुश्किल होता है. जब पता चलता है कि उसी नाम का व्यक्ति उपलब्ध है तो यह बड़ी उपलब्धि की तरह है.
खैर, बात नाम की हो रही है तो आपको 2014 के लोकसभा चुनाव की याद दिलाते हैं. उस समय पूर्व सीएम अजीत जोगी महासमुंद से कांग्रेस के उम्मीदवार थे. भाजपा के उम्मीदवार का नाम चंदूलाल साहू था. इस चुनाव में 10 और चंदू नाम के लोग खड़े हुए थे. इनमें 7 चंदूलाल थे तो तीन चंदू राम नाम के लोग थे. यह बात आई कि अजीत जोगी ने ही इन चंदू लाल या राम नाम के लोगों को उतारा था. हालांकि जोगी जीत नहीं पाए थे और करीब एक हजार वोटों से हार गए थे.
अब बात 2018 के चुनाव में उतरे हमनामों की. 2018 में 9 विधानसभा चुनावों में हमनाम उतरे थे. हालांकि जिनके वोट कटने का डर था, उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ.
पहले बात अंबिकापुर की. यहां से कांग्रेस के टीएस सिंहदेव प्रत्याशी थे. सिंहदेव का पूरा नाम त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव है. क्षेत्र के लोग उन्हें टीएस बाबा के नाम से जानते हैं, इसलिए चुनाव में वे टीएस बाबा के नाम ही लिखते हैं. उनके खिलाफ तीन लोग चुनाव मैदान में थे. इनमें दो लोगों ने टीएस सिंह और कोष्टक में बाबा लिखा था तो एक का नाम त्रिभुवन सिंह था.
इसके अलावा सीतापुर में भाजपा के प्रोफेसर गोपाल राम के विरुद्ध दो और गोपाल राम खड़े थे. इनमें एक गोपाल राम तिग्गा थे तो दूसरे गोपाल राम लकड़ा. इसी तरह कोरबा से भाजपा के विकास महतो के खिलाफ विकास कुमार महतो चुनाव मैदान में थे.
सक्ती में दो मेघाराम साहू, चंद्रपुर में दो रामकुमार यादव और दो गीतांजलि पटेल थी. कसडोल में दो शकुंतला साहू, धमतरी में दो रंजना साहू, दुर्ग ग्रामीण में दो बालमुकुंद देवांगन और प्रतापपुर में चार प्रेमसाय सिंह टेकाम चुनाव मैदान में थे.
यहां पढ़ें, किन्हें कितने वोट मिले
अंबिकापुर
टीएस बाबा, कांग्रेस – 100439
टीएस सिंह (बाबा), निर्दलीय – 1075
त्रिभुवन कुमार, एपीओआई – 360
टीएस सिंह (बाबा), जेएसी – 254
प्रतापपुर
डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, कांग्रेस – 90148
प्रेमसाय सिंह, निर्दलीय – 1375
प्रेमसाय सिंह, निर्दलीय – 792
प्रेमसाय, निर्दलीय – 692
सीतापुर
प्रोफेसर गोपाल राम, भाजपा – 50533
गोपाल राम तिग्गा, निर्दलीय – 452
गोपाल राम लकड़ा, निर्दलीय – 371
कोरबा
विकास महतो, भाजपा – 58313
विकास कुमार महतो, एनसीपी – 671
सक्ती
मेघाराम साहू, भाजपा – 48012
मेघाराम साहू, एनसीपी – 920
चंद्रपुर
रामकुमार यादव, कांग्रेस – 51717
राजकुमार यादव, निर्दलीय – 1779
रामकुमार यादव, निर्दलीय – 547
गीतांजलि पटेल, बसपा – 47299
गीतांजलि पटेल, निर्दलीय – 346
कसडोल
शकुंतला साहू, कांग्रेस – 121422
शकुंतला साहू, एनसीपी – 1009
धमतरी
रंजना साहू, भाजपा – 63198
रंजना साहू, निर्दलीय – 1189
दुर्ग ग्रामीण
डॉ. बालमुकुंद देवांगन, जोगी कांग्रेस – 11485
बालमुकुंद देवांगन, निर्दलीय – 2069
पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर के मुताबिक यह एक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें आप अपने प्रतिद्वंद्वी के वोट काटने के लिए उसी नाम के कई उम्मीदवार खड़े करते हैं. हालांकि, सफलता की कोई गारंटी नहीं है. 2014 में महासमुंद लोकसभा के चुनाव में 11 चंदू साहू का मामला हो या कुरूद में कई लेखराम का, जरूरी नहीं कि उद्देश्य सफल हों. ऐसा हो सकता है कि व्यक्तिगत लाभ के लिए कोई हमनाम व्यक्ति खड़ा हो, लेकिन जब ऐसे हमनाम उम्मीदवार एक नहीं, बल्कि कई हैं तो सीधे तौर पर यह प्रतिद्वंद्वी की चाल है.
डॉ. चंद्राकर के मुताबिक यह मतदाताओं को भ्रमित करने जैसा है, जिससे किसी एक उम्मीदवार को मिलने वाले वोट को बांटा जा सके, लेकिन इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि संविधान चुनाव लड़ने का अधिकार देता है. जो परिणाम नजर आते हैं, उससे भी यह तय है कि ऐसे हथकंडे सफल नहीं होते. जो हमनाम उतारे जाते हैं, उनका भी कोई राजनीतिक भविष्य नहीं दिखता.
Chhattisgarh Assembly Election 2018 Flashback