Chhattisgarh Assembly Election 2023: एक बार तुम...एक बार मैं... की रोचक जंग, छत्तीसगढ़ की इन सीटों पर नेताओं के बीच दिलचस्प संयोग
Chhattisgarh Assembly Election 2023: एक बार तुुम...एक बार मैं... जी हां, छत्तीसगढ़ में विधानसभा की तीन ऐसी सीटें हैं जहां हर बार कांग्रेस और भाजपा से एक ही उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं।
Chhattisgarh Assembly Election 2023: रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। हर सीट की अपनी अलग कहानी है। इनमें कुछ सीटें ऐसी हैं जिनकी कहानी बेहद रोचक है। राज्य की कुछ ऐसी सीटें हैं जिन पर कभी कोई पार्टी लगातार दो बार चुनाव जीत नहीं पाई है। ऐसे ही कुछ नेता भी हैं जो लगातार दो चुनाव जीत नहीं पाए हैं। इसके बावजूद उनकी पार्टी हर बार उन्हें टिकट देती है। एक बार तुम...एक बार मैं... वाली भी सीटें हैं। ऐसी ही कुछ दिलचस्प और रोचक किस्से हम आपको बताने जा रहे हैं...
जानिए...कौन सी वो तीन सीट जहां हर बार एक ही चेहरे रहे हैं आमने-सामने
राज्य की तीन विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां हर बार एक ही चेहरे आमने-सामने रहते हैं। इसमें पहला नाम बिल्हा का है। बिलासपुर जिला की इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस पिछले कई चुनावों से प्रत्याशी रिपीट कर रहे हैं। इस सीट से भाजपा धरमलाल कौशिक को लगातार अपना प्रत्याशी बना रही है। वहीं 2018 को छोड़ दें तो कांग्रेस की तरफ से हर बार सियराम कौशिक इस सीट से मैदान में रहते हैं। सियराम पिछले चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की टिकट पर चुनाव लड़े थे।
इस सूची में दूसरा नाम है, जांजगीर-चांपा। इस सीट से भाजपा के मौजूदा विधायक नारायण चंदेल और कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन लगातार आमने-सामने रहते हैं। परिसीमन से पहले दोनों नेता चांपा सीट से लड़ते थे। वहीं, तिसरी सीट भिलाई है। इस सीट पर भाजपा के प्रेम प्रकाश पांडेय और कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी की जंग की चर्चा सियासी गलियारे में रहती है। हालांकि 2018 में कुरैशी ने भिलाई छोड़कर वैशालीनगर चले गए थे।
जानिए... कौन हैं छत्तीसगढ़ के एक बार तुम...एक बार मैं...वाले नेता
राज्य की इन्हीं तीनों सीटों पर परंपरागत प्रतिद्वंद्वी चुनाव लड़ते हैं। इसमें बिल्हा सीट पर धमरलाल कौशिक बनाम सियाराम कौशिक, जांजगीर-चांपा सीट पर नारायण चंदेल बनाम मोतीलाल देवांगन और भिलाई सीट पर प्रेम प्रकाश पांडेय बनाम बदरुद्दीन कुरैशी की जंग हमेशा चर्चा में रही है।
धमरलाल कौशिक बनाम सियाराम कौशिक: बिल्हा सीट पर कौशिक बनाम कौशिक की जंग पिछले 4 चुनावों से चल रही है। दोनों 2-2 बार जीते हैं। राज्य बनने के बाद 2003 में हुए पहले चुनाव में दोनों का आमना-सामना हुआ। हालांकि धरमलाल कौशिक भाजपा की टिकट पर 1993 से इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पहले चुनाव में हार का सामना करने के बाद कौशिक इसी सीट से 1998 में पहली बार विधायक चुने गए। 2003 में कौशिक बनाम कौशिक की जंग में धरमलाल हार गए। 2008 में फिर दोनों कौशिक का आमना-सामना हुआ। इस बार सियाराम हार गए और धरमलाल ने जीत दर्ज की। 2013 में सियाराम ने वापसी की और धरमलाल हार गए। 2018 में सियाराम कांग्रेस छोड़ चुके थे, लेकिन चुनाव बिल्हा से ही लड़ा। इस बार फिर धमरलाल से वे हार गए।
नारायण चंदेल बनाम मोतीलाल देवांगन: बिलासपुर संभाग की जांजगीर-चांपा सीट पर चंदेल बनाम देवांगन की जंग भी लंबे समय से चल रही है। दोनों पहली बार 1998 के विधानसभा चुनाव में चांपा सीट से आमने-सामने आए। चंदेल भाजपा और देवांगन कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में चंदेल की जीत हुई। राज्य बनने के बाद 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर दोनों का इसी सीट पर आमना-सामना हुआ। इस बार देवांगन ने बाजी मार ली। 2008 के चुनाव से पहले परिसीमन हुआ और चांपा सीट जांजगीर-चांपा बन गई। इस बार दोनों ने इस नई सीट पर भाग्य आजमाने उतरे। इस बार बारी चंदेल की थी और वे जीत गए। 2013 में ट्रेंड के हिसाब से बारी देवांगन की थी। हुआ भी वहीं चंदेल चुनाव हार गए। इसके बाद 2018 की जंग में चंदेल ने फिर देवांगन को मात दे दिया।
प्रेम प्रकाश पांडेय बनाम बदरुद्दीन कुरैशी: पांडेय बनाम कुरैशी की यह जंग 1993 में शुरु हुई। तब से 2018 के पहले तक जितने चुनाव हुए सभी दोनों आमने-सामने हुए। दोनों में से कोई लगातार दो चुनाव नहीं जीत पाया। 2018 में कुरैशी ने सीट बदली तो दोनों ही हार गए, जबकि ट्रेंड के हिसाब से भिलाई सीट पर जितने की बारी कुरैशी की थी। पांडेय 1990 में पहली बार भिलाई सीट से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1993 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने पांडेय के सामने कुरैशी को लगाकर खड़ा कर दिया, लेकिन वे हार गए। 1998 में भाजपा ने फिर पांडेय पर भरोसा दिखाया और कांग्रेस ने कुरैशी पर। इस बार कुरैशी बाजी मार ले गए। 2003 के चुनाव में फिर दोनों का आमना-सामना हुआ। इस बार पांडेय जीतकर विधानसभा पहुंच गए। अब 2008 में जीतने की बारी कुरैशी की थी। हुआ भी वहीं, दोनों दलों ने इन्हीं दोनों को अपना प्रत्याशी बनाया। पांडेय बनाम कुरैशी की जंग 2013 में भी भिलाई सीट पर नजर आई। इस बार भी ट्रेंड कायम रहा और पांडेय कुरैशी को हरा कर विधानसभा पहुंच गए। अब लोगों को 2018 की जंग का इंतजार था। ट्रेंड के हिसाब से इस बार कुरैशी को जीतना था, लेकिन इस बार कुरैशी की सीट बदल गई। कुरैशी वैशालीनगर सीट से और पांडेय अपनी भिलाई सीट से मैदान में उतरे। ट्रेंड के हिसाब से पांडेय को हारना था, कुरैशी समाने नहीं थे फिर भी वे हार गए।