Chhattisgarh Assembly Election 2023 भाजपा के सामने 13 लाख का गड्ढा : 3 से 13 तक हार-जीत का फासला घटाती रही कांग्रेस, 18 में 13 लाख से ज्यादा की ली बढ़त
छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ या कांग्रेस का? कांग्रेस 15 साल सत्ता से बाहर रही, लेकिन करीबी वोटों से ही हार. आज बात इसी मुद्दे पर.
Chhattisgarh Assembly Election 2023 : रायपुर. छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ या भाजपा का? 15 साल तक भाजपा की सरकार रही, लेकिन हर चुनाव में कांग्रेस हार का अंतर घटाती रही. क्या भाजपा अपनी योजनाओं के दम पर चुनाव जीतती थी या वोटकटवा और बाहरी मदद से? कांग्रेस ने ऐसा क्या कमाल किया कि 2018 में बड़ी जीत दर्ज की और 13.92 लाख का बड़ा गड्ढा भाजपा के सामने कर दिया. इसे पाटना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी. आज बात करेंगे इन्हीं मुद्दों पर...
आंकड़ों पर चर्चा करने से पहले आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ भाजपा की फुलहाउस मीटिंग चल रही है, जिसमें राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर और सह प्रभारी नितिन नबीन भी शामिल हो रहे हैं. इससे पहले किसी बैठक में चारों एक साथ नहीं रहे हैं. एक और महत्वपूर्ण बैठक आरएसएस की हो रही है, जिसमें क्षेत्रीय प्रचारक दीपक बिस्पुते भी शामिल हो रहे हैं. यह पूरी कवायद 2023 में होने वाले चुनावों को लेकर है. इससे पहले यह भी जान लें कि भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन करते हुए बिलासपुर के सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष और जांजगीर चांपा के विधायक नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया है. साव साहू समाज के हैं, जबकि चंदेल कुर्मी समाज के हैं. छत्तीसगढ़ में साहू और कुर्मी लगभग 30 सीटों पर स्पष्ट रूप में हार-जीत का समीकरण तय करते हैं.
दूसरी ओर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भेंट मुलाकात का सिलसिला फिर शुरू कर दिया है. अब कुछ सीटें ही बाकी रह गई हैं. भेंट मुलाकात के साथ-साथ वे एक-एक चुनावी मुद्दों को खत्म कर विपक्ष के लिए नई चुनौतियां पेश करते जा रहे हैं. भाजपा के लिए धान का समर्थन मूल्य एक बड़ी चुनौती थी कि अब 15 क्विंटल प्रति एकड़ खरीदी को 20 क्विंटल प्रति एकड़ कर दिया है. किसान और खेतिहर मजदूरों के लिए न्याय योजनाएं तो हैं ही. युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्ता की भी शुरुआत कर दी गई है.
शराबबंदी एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन कांग्रेस ही नहीं, भाजपा भी यह जानती है कि यह आसान नहीं है. इस दिशा में भी सरकार ने अपना बैकअप प्लान तैयार कर लिया है. सीएम खुलकर इन मुद्दों पर लोगों से संवाद कर रहे हैं कि वे शराबबंदी करने के लिए तैयार हैं, लेकिन उसके साइड इफेक्ट भी हैं.
खैर... ताजा हालात से अवगत होने के बाद अब फ्लैश बैक में चलते हैं और 2003 से 2018 के बीच का डाटा देखते हैं.
विधानसभा चुनाव 2003
छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहला चुनाव था. अजीत जोगी सरकार के खिलाफ कानून व्यवस्था को लेकर नाराजगी थी. विद्याचरण शुक्ल एनसीपी में शामिल हो गए थे और कांग्रेस के पैरलल अपने प्रत्याशी उतार दिए थे. इस चुनाव में भाजपा को 3789914 वोट मिले थे. यह 39.26 प्रतिशत था. कांग्रेस को 3543754 वोट मिले थे और वोट शेयर 36.71 प्रतिशत था. 246160 वोट ज्यादा पाकर भाजपा जीती थी. वोट शेयर में अंतर 2.55 प्रतिशत का था. भाजपा की 50 सीटें थी. कांग्रेस 37, बसपा 2 और एनसीपी के एक विधायक जीते थे. डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने थे.
विधानसभा चुनाव 2008
भाजपा की सरकार को 5 साल पूरे हो चुके थे. डॉ. रमन सिंह के चेहरे पर भाजपा ने चुनाव लड़ा. इस बार भाजपा को वोट मिले 4333934. कांग्रेस को 4150377 और वोटों का अंतर था – 183557. वोट शेयर का प्रतिशत देखें तो भाजपा को 40.33 प्रतिशत और कांग्रेस का 38.63 प्रतिशत वोट मिले. इस बार अंतर 1.7 प्रतिशत का रह गया. भाजपा को फिर 50 सीटें मिलीं. कांग्रेस को एक सीट ज्यादा. यानी इस बार 38 सीटें. बसपा की दो सीटें थीं. दूसरी बार जीत के बाद डॉ. रमन सिंह फिर से मुख्यमंत्री चुने गए. मंत्रिमंडल के कुछ चेहरे बदले गए. बाकी वही चेहरे थे.
विधानसभा चुनाव 2013
भाजपा की 10 साल की सरकार के काम को लोगों ने देख लिया था. डॉ. रमन सिंह भाजपा के पोस्टर बॉय बन चुके थे. चांउर वाले बाबा के नाम से पुकारे जाने लगे थे. फिर डॉ. रमन के चेहरे पर भाजपा उतरी. इससे पहले झीरम घाटी की घटना हो चुकी थी. लोगों में नाराजगी थी. कांग्रेस के लोग भी मेहनत कर रहे थे. चुनाव परिणाम आया. भाजपा को 5365272 वोट मिले. कांग्रेस को 5267698 वोट मिले और अंतर रह गया मात्र 97574. वोट शेयर का प्रतिशत देखें तो भाजपा को 41.04 और कांग्रेस को 40.29 प्रतिशत वोट मिले. फासला था सिर्फ 0.75 प्रतिशत का. तीसरी बार डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने. मंत्रिमंडल में कुछ को छोड़कर बाकी चेहरे बने रहे.
विधानसभा चुनाव 2018
अब बात करते हैं साल 2018 की. भाजपा की सरकार को 15 साल हो चुके थे. सरकार के खिलाफ लोगों में परिवर्तन का मूड बनने लगा था. दूसरी तरफ कांग्रेस में पीसीसी अध्यक्ष के रूप में भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष के रूप में टीएस सिंहदेव संघर्ष कर रहे थे. उन्हें जय वीरू कहा जाने लगा था. यह भी बात आती है कि राज्य के इंटेलिजेंस ने और मातृ संगठन आरएसएस ने राज्य सरकार को आगाह किया कि स्थिति अच्छी नहीं है. तत्कालीन कर्ता-धर्ता इस बात से सहमत नहीं थे. दूसरी ओर भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस का संघर्ष जारी था.
घोषणा पत्र समिति के संयोजक के रूप में टीएस सिंहदेव सब्जी बाजार से लेकर मनरेगा मजदूरों के बीच जा रहे थे. बड़े-छोटे सभी से मिल रहे थे. कांग्रेस के प्रत्याशी चयन के मुकाबले जब भाजपा ने प्रत्याशियों का ऐलान किया तभी जानकारों ने यह कयास लगाए थे कि भाजपा चूक रही है. जब नतीजा आया, तब सबने देख भी लिया. कांग्रेस ने ऐसा प्रदर्शन किया, जो मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन की तरह था. कांग्रेस 68 सीटें जीतीं. 15 साल सत्ता में रही भाजपा सिर्फ 15 सीटें जीत पाई.
कांग्रेस को कुल वोट मिले – 6099556. भाजपा को मिले – 4706830. अंतर था 1392726 वोटों का. वोट शेयर के हिसाब से देखें तो कांग्रेस 43 और भाजपा 33 प्रतिशत वोटों पर थी. यानी 10 प्रतिशत का स्पष्ट फासला.
सामान्य तौर पर तीन सवाल आते हैं...
1. भाजपा क्या अपनी योजनाओं से जीतती थी या कोई बाहरी मदद मिलती थी?
2. छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ बन गया था या पहले से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है?
3. 2018 के चुनाव में कांग्रेस का जो प्रदर्शन रहा, वह फिर दोहराया जाएगा या नहीं?
इसके जवाब में दुर्गा कॉलेज के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर कहते हैं कि अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही छत्तीसगढ़ का हिस्सा कांग्रेस का गढ़ रहा है. इसमें किसी तरह का संदेह नहीं है. 2003 के चुनाव से यदि देखें तो अजीत जोगी के शासन काल में कई विवाद सामने आए. लोगों की नाराजगी भी थी. विद्याचरण शुक्ल एनसीपी में चले गए और पैरलल अपने उम्मीदवार उतारे. इसका लाभ भाजपा को मिला.
भाजपा शासन काल में लोगों को मुफ्त चावल देने का ऐलान हो, धान का बोनस देने का ऐलान हो या फिर विकास की योजनाएं, इनका फायदा भाजपा को मिला. हालांकि धान का बोनस देने का वादा कर बाद में भाजपा शासन ने देना बंद कर दिया. इस पूरे समय में कांग्रेस लगातार संघर्ष करती रही. प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भूपेश बघेल को बड़ा समय मिला. जमीनी स्तर पर मजबूती दी. 15 साल तक सत्ता से बाहर होने के बाद आखिरकार 2018 में सबने मिलकर चुनाव लड़ा. घोषणा पत्र ने भी लोगों को आकर्षित किया. खासकर किसानों को. भाजपा सरकार के खिलाफ नाराजगी, कांग्रेस के संघर्ष और लुभावने घोषणा पत्र का ही नतीजा 2018 के चुनाव में कांग्रेस की 68 सीटों के रूप में आया.
जहां तक कांग्रेस के प्रदर्शन को दोहराने की बात है तो अभी यह कहना जल्दबाजी होगी. किसानों के मुद्दे पर भले ही सरकार मजबूत स्थिति में है, लेकिन कर्मचारी वर्ग नाराज है. डीए-एचआरए की मांग पूरी नहीं हुई है. नियमितीकरण भी एक बड़ा मुद्दा है. कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता विधायकों के खिलाफ नाराजगी की बात स्वीकार करते हैं. ऐसे में प्रत्याशी चयन, भाजपा का संगठनात्मक कौशल और उस पर धर्म का तड़का लग गया तो परिणाम चौंका भी सकते हैं.
वर्ष – कुल वोटिंग % - भाजपा – कांग्रेस - अंतर
2018 – 76.35 – 33 – 43 – 10
2013 – 77.40 – 41.04 – 40.26 – 0.77
2008 – 70.51 – 40.33 – 36.63 – 1.7
2003 – 71.30 – 39.26 – 36.71 – 2.55
वर्षवार सीटें
वर्ष – भाजपा – कांग्रेस
2018 – 15 – 68
2013 – 49 – 39
2008 – 50 – 38
2003 – 50 - 37
Chhattisgarh Assembly Election 2018 Chhattisgarh Assembly Election 2013 Chhattisgarh Assembly Election 2008 Chhattisgarh Assembly Election 2003