Chhattisgarh Assembly Election 2023: ब्राह्मण, बेलतरा और बिलासपुर: ब्राह्मण कैंडिडेट के लिए फंस गई भाजपा और कॉंग्रेस की बेलतरा सीट...

Chhattisgarh Assembly Election 2023 : कांग्रेस लगातार तीन चुनावों से ओबीसी प्रत्याशी उतार रही है. भाजपा ने सीपत और बेलतरा में एक-एक बार ठाकुर प्रत्याशी ट्राई किया. पहले हारे, फिर जीते.

Update: 2023-10-17 06:43 GMT

Chhattisgarh Assembly Election 2023 : रायपुर. बिलासपुर शहर से लगी बेलतरा सीट फंस गई है. भाजपा ने जिन 5 सीटों पर उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, उसमें बेलतरा भी शामिल है. कांग्रेस में बेलतरा के कारण बिलासपुर और कोटा सीट भी उलझी हुई है, जबकि दोनों जगह एक-एक नाम पर सहमति हो चुकी है. इसके केंद्र में ब्राह्मण मतदाताओं का दबाव है. 2018 में जब बिलासपुर में कांग्रेस से शैलेष पांडेय की जीत हुई थी, तब यह माना गया था कि ब्राह्मण वोटरों ने बेलतरा में ब्राह्मण कैंडिडेट नहीं देने की नाराजगी उतारी और कांग्रेस के पैराशूट उम्मीदवार को जिता दिया. इस बार सीएम भूपेश बघेल के सलाहकार प्रदीप शर्मा की अगुवाई में एक बड़ा ब्राह्मण सम्मेलन हुआ, उसके बाद बेलतरा में ब्राह्मण प्रत्याशी नहीं उतारने पर सवाल खड़े हो रहे हैं. दूसरी ओर, भाजपा ने बिलासपुर से अमर अग्रवाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया है. वे भी चाहते हैं कि बेलतरा से पार्टी किसी ब्राह्मण कैंडिडेट को उतारे. इस तरह बैलेंस बन जाएगा. ऐसा माना जा रहा है कि आज-कल में ही पार्टी प्रत्याशी तय कर देगी, जबकि कांग्रेस में बेलतरा के लिए तीसरी सूची का इंतजार करना पड़ सकता है. भाजपा में सुशांत शुक्ला का नाम तय माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस में विजय केशरवानी, रामशरण यादव, अंकित गौरहा, राजेंद्र साहू और त्रिलोक श्रीवास के बीच जबर्दस्त कंपीटिशन है.

बेलतरा से 119 ने की थी दावेदारी

कांग्रेस पिछले तीन चुनावों से ओबीसी उम्मीदवार उतार रही है. दो बार यादव और एक बार साहू समाज के उम्मीदवार को मौका दिया गया. कांग्रेस की लहर में भी 2018 में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को यहां से उम्मीद है. यही वजह है कि जब पार्टी ने आवेदन मांगे तो यहां 119 कांग्रेसियों ने आवेदन किया था.

बेलतरा सीट पर 2008 में पहली बार चुनाव हुए थे. इसमें भाजपा की जीत हुई थी. इसके बाद 2013 में फिर भाजपा जीती और 2018 में भाजपा सरकार के खिलाफ प्रबल लहर के बावजूद भाजपा जीती. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ गई हैं. यही वजह है कि यहां सबसे ज्यादा संख्या में दावेदार सामने आए हैं. इनमें ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने बिलासपुर या कोटा से भी दावेदारी पेश की है.

बेलतरा में इसलिए ज्यादा दावेदार

बेलतरा में सबसे ज्यादा दावेदार क्यों? जब यह सवाल कांग्रेस के नेताओं से पूछते हैं तो वे तीन चार कारण गिनाते हैं. एक यह कि सामान्य सीट है, दूसरी यह कि कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं है, तीसरी यह कि बिलासपुर में कांग्रेस का विधायक है. सामान्य सीट होने के कारण यहां से हर वर्ग के नेताओं ने दावेदारी पेश की है. सीट बनने के बाद से लगातार कांग्रेस हार रही है, इसलिए किसी बड़े नेता का इस सीट पर दावा नहीं है.

इसमें एक और महत्वपूर्ण तथ्य ये भी सामने आ रहे हैं कि बिलासपुर से लगातार चार बार अमर अग्रवाल विधायक रहे. पिछली बार भाजपा के खिलाफ लहर में वे हारे, लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग है. अमर के 15 साल मंत्री रहने के कारण बिलासपुर हाई प्रोफाइल सीट बन गई है, इसलिए ज्यादातर बड़े नेता बिलासपुर के बजाय इससे लगी सीट बेलतरा या कोटा से दावेदारी कर रहे हैं. कांग्रेस ही नहीं, अमर अग्रवाल की मजबूत दावेदारी के चलते बीजेपी के भी अधिकांश नेता बेलतरा सीट से दावेदारी कर रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस ने दावेदारों से अप्लाई कराया है, लिहाजा उनकी संख्या सामने आ गई. बीजेपी में ऐसा होता नहीं.

ब्राह्मण वोटर बने टर्निंग प्वाइंट

परिसीमन में बेलतरा सीट बनने के बाद 2008 में पहली बार चुनाव हुए. इससे पहले यह सीपत सीट थी. हालांकि परिसीमन में सीपत सीट के एससी बहुल हिस्से को मस्तूरी के शामिल कर दिया गया. 1977 में सीपत सीट पर पहली बार चुनाव हुए थे. इसके बाद से 1998 तक कांग्रेस ने लगातार ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारा था. चंद्रप्रकाश वाजपेयी अंतिम ब्राह्मण प्रत्याशी थे. 1998 के चुनाव में परंपरागत कांग्रेस और भाजपा के बजाय जनता ने बसपा को जिताया था. इसके बाद 2003 में सीपत सीट पर अंतिम चुनाव हुए तो कांग्रेस ने रमेश कौशिक को टिकट दिया. खरे की जीत के बाद सामान्य वर्ग के मतदाता एकजुट हुए और बद्रीधर दीवान को जिताया. इसके बाद जब बेलतरा सीट पर चुनाव हुए तो 2008 और 2013 में भी दीवान जीते. 2018 में दीवान की उम्र को देखते हुए भाजपा ने रजनीश सिंह को टिकट दिया और उन्हें जीत मिली. इस बीच दो बार भुवनेश्वर यादव कांग्रेस के उम्मीदवार रहे और 2018 में राजेंद्र साहू पर कांग्रेस ने दांव खेला, लेकिन जीत नहीं मिली.

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