Chhattisgarh Assembly Election 2023 बागी बर्दाश्त नहीं : छत्तीसगढ़ में मतदाताओं का अजब ट्रेंड, चोपड़ा को छोड़ किसी निर्दलीय को नहीं बनाया विधायक, केजूराम वर्मा की कहानी भी गजब

क्या निर्दलीय को बागी भी कह सकते हैं? जब-जब निर्दलीय उम्मीदवार की बात आती है, तब केजूराम वर्मा की भी बात आती है. कौन हैं केजूराम वर्मा? आज इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करेंगे.

Update: 2023-04-10 11:29 GMT

Chhattisgarh Assembly Election 2023

मनोज व्यास @ NPG.News

रायपुर. छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों का एक चौंकाने वाला फैक्ट यह है कि राज्य गठन के बाद अब तक एकमात्र निर्दलीय विधायक की जीत हुई है. विधायक का नाम है डॉ. विमल चोपड़ा. हालांकि डॉ. चोपड़ा को तब निर्दलीय उम्मीदवार के बजाय भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में जाना गया. यहां सवाल उठता है कि क्या निर्दलीय को बागी भी कह सकते हैं? जब-जब निर्दलीय उम्मीदवार की बात आती है, तब केजूराम वर्मा की भी बात आती है. कौन हैं केजूराम वर्मा? आज इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करेंगे.

पहले चर्चा इकलौते निर्दलीय विधायक की. डॉ. विमल चोपड़ा. महासमुंद में अपना क्लीनिक चलाते हैं. लोगों के बीच अच्छी पकड़ है. फिलहाल भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ के प्रदेश के संयोजक हैं, लेकिन बात विधानसभा चुनाव-2013 की है. डॉ. चोपड़ा भाजपा के दावेदार थे. दावेदारी यूं ही नहीं थी, बल्कि अच्छी खासी थी. उस समय में भाजपा ने चोपड़ा के बजाय पूनम चंद्राकर को टिकट दिया था. पूनम इससे पहले 2003 में विधायक थे और मंत्री भी थे. चुनाव परिणाम आया. पूनम तीसरे नंबर पर चले गए. चुनाव जीते चोपड़ा. यह एक इतिहास बन गया, क्योंकि 2013 से पहले और उसके बाद अब तक कोई निर्दलीय चुनाव नहीं जीत पाया है.

निर्दलीयों का परफॉर्मेंस देखें

वर्ष – निर्दलीय प्रत्याशी – जीते – जमानत जब्त

2003 – 254 – 0 – 248

2008 – 386 – 0 – 381

2013 – 355 – 1 – 353

2018 – 559 – 0 – 551

अब तीन सवाल

क्या छत्तीसगढ़ में निर्दलीयों को मतदाता पसंद नहीं करते?

बागी प्रत्याशी अपना नुकसान करते हैं कि अपनी पार्टी का?

क्या राष्ट्रीय दल के चिह्न के बिना चुनाव लड़ने में भविष्य नहीं?

इन सवालों के जवाब में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. अजय चंद्राकर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में वोटिंग बिहेवियर राष्ट्रीय दलों के ईर्द-गिर्द ही है. एकमात्र निर्दलीय विधायक डॉ. विमल चोपड़ा भी भाजपा की राजनीति करते थे. पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय लड़े और जीते. एक तरह से कह सकते हैं कि उन्हें कैडर वोट मिले.

जहां तक बागियों की बात है तो ज्यादातर बागी दूसरे या तीसरे नंबर पर रहते हैं. खुद भी चुनाव नहीं जीत पाते और दूसरों का समीकरण बिगाड़ते हैं. ऐसे में वे पार्टी का ही नुकसान करते हैं, क्योंकि कैडर वोट बंट जाते हैं और नुकसान पार्टी के प्रत्याशी का होता है.

छत्तीसगढ़ में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले बड़े नाम वे हैं, जो चुनाव लड़ने की तैयारी रखते हैं और पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय उतर जाते हैं. इसके अलावा कुछ लोगों जो सक्षम प्रत्याशी अपने समीकरण को साधने के लिए उतारते हैं तो कुछ लोग चर्चा में आने के लिए भी चुनाव लड़ते हैं.

2018 के चर्चित बागी

रामानुजगंज सीट से भाजपा के विनय पैकरा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और तीसरे नंबर पर रहे. पहले नंबर पर कांग्रेस के बृहस्पत सिंह और दूसरे नंबर पर भाजपा के रामकिशुन सिंह थे.

रायगढ़ सीट से भाजपा के विजय अग्रवाल ने बागी होकर चुनाव लड़ा. तीसरे नंबर पर रहे. पहले नंबर पर कांग्रेस के प्रकाश नायक और दूसरे नंबर पर भाजपा के रोशन अग्रवाल थे.

बसना से भाजपा के बागी संपत अग्रवाल थे. संपत दूसरे स्थान पर रहे. पहले नंबर पर कांग्रेस के देवेंद्र बहादुर और तीसरे नंबर पर भाजपा के डीसी पटेल थे.

कुरूद से कांग्रेस के नीलम चंद्राकर बागी प्रत्याशी थे. पहले नंबर पर भाजपा के अजय चंद्राकर और तीसरे नंबर पर कांग्रेस की लक्ष्मीकांता साहू थीं.

धमतरी से कांग्रेस के आनंद पवार ने बागी होकर चुनाव लड़ा. इसमें भाजपा की रंजना साहू की जीत हुई और कांग्रेस के गुरुमुख सिंह होरा दूसरे नंबर पर थे.

डौंडीलोहारा से भाजपा के देवलाल ठाकुर ने बागी होकर चुनाव लड़ा और तीसरे नंबर पर रहे. कांग्रेस की अनिला भेंडिया पहले और भाजपा के लाल महेंद्र सिंह टेकाम दूसरे नंबर पर रहे.

अब बात केजूराम वर्मा की

निर्दलीय (बागी) प्रत्याशियों की जब बात होती है, तब केजूराम वर्मा का नाम लिया जाता है. केजूराम वर्मा पाटन के विधायक थे. वे विधायक एक बार रहे, लेकिन आधा दर्जन बार चुनाव लड़े. कभी कांग्रेस से, कभी बीजेपी से तो कभी निर्दलीय. पहली बार 1977 में चुनाव मैदान में उतरे. कांग्रेस ने उन्हें अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया था. इस चुनाव में वे जीते. आपको बता दें कि पाटन विधानसभा क्षेत्र के गठन के बाद यह पहला चुनाव था. इसके बाद दूसरा चुनाव 1980 में हुआ. कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय उतर गए. इस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस के चेलाराम चंद्राकर जीते थे.

1985 के चुनाव में भी केजूराम वर्मा भाजपा के टिकट से चुनाव मैदान में थे. इसमें वे दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस के अनंत राम वर्मा विधायक चुने गए. 1990 में भाजपा के कैलाश चंद्र शर्मा विधायक बने. दूसरे नंबर पर थे निर्दलीय केजूराम वर्मा और कांग्रेस के अनंत राम वर्मा तीसरे नंबर पर थे.

1993 में भूपेश बघेल चुनाव जीते. इसी साल में भूपेश बघेल पहली बार विधायक बने. उनके खिलाफ केजूराम वर्मा ने बसपा के टिकट से चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे.

1998 में फिर से भूपेश बघेल विधायक बने. उनके खिलाफ भाजपा की निरुपमा चंद्राकर दूसरे नंबर पर थीं और केजूराम वर्मा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में तीसरे नंबर पर रहे.

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