छत्तीसगढ़ में आरक्षण पर कपिल सिब्बल ने कहा-राज्यपाल या तो अनुमति दें, या फिर राष्ट्रपति को रेफर करें, पूर्व सीएम रमन और मंत्री रविन्द्र चौबे बोले...
रायपुर। छत्तीसगढ़ में आरक्षण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल बिलासपुर हाई कोर्ट पहुंचे। हाई कोर्ट में इस याचिका पर आज सुनवाई हुई। हाई कोर्ट ने राजभवन सचिवालय को नोटिस जारी किया है। कोर्ट में सुनवाई के बाद कपिल सिब्बल ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि आरक्षण बिल पास हुआ था, उस पर राज्यपाल ने अबतक उस पर कोई कदम नहीं उठाया। संविधान के मुताबिक या तो उसपर राज्यपाल अपनी अनुमति दें, या न दे, या फिर राष्ट्रपति को रेफर करें।
सिब्बल ने आगे कहा कि हमारे हिसाब से उनको कोई देर नहीं करनी चाहिए। छत्तीसगढ़ की जनता और खास करके ट्रायबल के लिए ये बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने तो केवल नोटिस भेजा है। हमने सिर्फ यही कहा हैं कि संविधान के तहत या तो उनको अनुमति देनी चाहिए या फिर राष्ट्रपति को रेफर करना चाहिए। इसी के अंर्तगत कोर्ट ने नोटिस दिया है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि हाइकोर्ट के फैसले के आधार पर ही तो आरक्षण रुका है। 56 प्रतिशत आरक्षण पर हाइकोर्ट ने रोक लगाया है तो फिर 82 प्रतिशत कैसे वैलिड होगा, सवाल इसी में था। 56 प्रतिशत आरक्षण निरस्त करने वाला हाइकोर्ट ही ।
वहीँ, मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा, राजभवन को हाईकोर्ट से नोटिस जारी हुआ है। इससे उम्मीद है कि राज्यपाल विधेयक पर हस्ताक्षर करेगी। नीचें पढ़ें खबर
आरक्षण पर राज्यपाल के खिलाफ याचिका का कोई तुक नहीं मगर सरकार अपने मकसद में कामयाब, बीजेपी बैकफुट पर...
रायपुर। छत्तीसगढ़ आरक्षण संशोधन विधेयक-2022 पर दस्तखत नहीं करने को लेकर बिलासपुर के एक वकील ने हाई कोई में याचिका दायर की है। हाई कोर्ट में इस याचिका पर आज सुनवाई हुई। हाई कोर्ट ने राजभवन सचिवालय को नोटिस जारी किया है। राज्यपाल के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया है कि विधानसभा से पारित होने के बाद विधेयक को रोकने का अधिकार राज्यपाल को नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन है। यदि उन्हें दस्तखत नहीं करनी थी तो विधेयक को या तो राष्ट्रपति के पास भेज देना था या वापस लौटा देना था। मगर उन्होंने अब तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जो संविधान का उल्लंघन है।
बिल रोकने को लेकर ही हाई कोर्ट ने नोटिस इश्यू किया है। कानून के जानकारों का कहना है कि राजभवन को बिल रोकने का अधिकार नहीं है मगर उसे विचार करने के लिए रखा जा सकता है। और, संविधान में इसकी कोई समय सीमा तय नहीं है कि विधानसभा से विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल कितने दिन तक बिल को विचार के लिए रख सकते हैं। इसी तरह संसद से पारित कई बिल राष्ट्रपति भवन में सालों से विचार के नाम पर पेंडिंग हैं। छत्तीसगढ़ में ही विश्वविद्यालय संशोधन बिल दो साल से पेंडिंग है। तीन साल पहले कुशाभाउ पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम बदलकर स्व0 चंदूलाल चंद्राकर करने का बिल राजभवन में लंबित है।
छत्तीसगढ़ से पहले तमिलानाडू, गोवा, केरल में राज्यपालों के खिलाफ याचिका दायर हुई और नोटिस के बाद हाई कोर्ट ने उसे खारिज कर दी। जानकारों का कहना है कि सीटिंग राज्यपाल के खिलाफ हाई कोर्ट में मामला नहीं चल सकता। क्योंकि, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को राज्यपाल शपथ दिलाते हैं। वैसे भी राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख होते हैं। प्रोटोकॉल में सबसे उपर।
बहरहाल, इस मामले में ये जरूर हुआ कि अभी तक सरकार लोगों को ये मैसेज देने में कामयाब रही है कि उसने न केवल आनन-फानन में विधानसभा से आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कराया बल्कि राजभवन का हवाला देकर हाथ-पर-हाथ धरे बैठी नहीं है...उसके रास्ते की बाधाओं को दूर करने की कोशिशों में लगी हुई है। कांग्रेस और उसकी सरकार ने आरक्षण मामले में बीजेपी को बैकफुट पर खड़ा कर दिया है। पार्टी के नेता से लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद इसको लेकर मुखर हैं और गंभीर तथा तीखे आरोप लगा चुके हैं। हाई कोर्ट में आज सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील कपिल सिब्बल खड़े हुए। संदेश देने के लिए ये काफी है। बीजेपी के लिए ये न उगलते बन रहा और न निगलते। आरक्षण संशोधन विधेयक में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। छत्तीसगढ़ में ओबीसी की संख्या इससे ज्यादा है। दावा है, 50 प्रतिशत तक। बीजेपी से कोई चुक होने का मतलब है कि अगले चुनाव में उसे इसका खामियाजा उठाना होगा। इसी वजह से बीजेपी आरक्षण संशोधन विधेयक पर खुलकर न बोल पा रही और न विरोध में। सियासी गुणा भाग में अभी तक कांग्रेस और सरकार अपर हैंड की स्थिति में है।