मंतूराम का हिसाब बराबर: अंतागढ़ उपचुनाव में अंतिम दिन कांग्रेस प्रत्याशी ने असहाय किया था, अब ब्रह्मानंद पर लगे आरोपों से भाजपा बेबस

Update: 2022-11-21 15:02 GMT

मनोज व्यास @NPG.News

रायपुर। 29 अगस्त 2014, दिन शुक्रवार। यह तारीख छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक ऐसी कहानी के रूप में दर्ज हो गई, जब नाम वापसी के अंतिम दिन कांग्रेस उम्मीदवार ने नाम वापस लेकर सबको चौंका दिया। उम्मीदवार का नाम था मंतूराम पवार। चुनाव था अंतागढ़ उपचुनाव। यह चुनाव इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि इसमें भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग किसी दल के नहीं, बल्कि नोटा के 13506 मतों के मुकाबले 63616 वोटों से जीते। तीसरे नंबर पर रूपधर पुडो थे, जो आंबेडकराइट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी थे और 12086 वोट मिले थे। यह उपचुनाव इसलिए भी याद किया जाएगा, क्योंकि चुनाव के काफी दिनों बाद एक और कहानी सामने आई। एक सीडी के रूप में, जिसमें कथित तौर पर मंतूराम पवार पर पैसे लेकर नाम वापस लेने के आरोप लगे। इस मामले की जांच अभी भी चल रही है या कहीं फाइलों में दबी हुई है।

खैर, बात शुरू हुई थी मंतूराम प्रकरण का हिसाब बराबर करने की। यहां मंतूराम की तरह भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम ने नाम वापस तो नहीं लिया, लेकिन कांग्रेस के खुलासे के बाद भाजपा बेबस और लाचार ही नजर आ रही है। बेबस इसलिए क्योंकि जो संगीन आरोप लगे हैं, उसके बारे में प्रत्याशी चयन के दौरान जरा भी भान नहीं था। यदि होता तो भाजपा कोई दूसरा उम्मीदवार तय करती। अब भाजपा के सामने ब्रह्मानंद मजबूरी हैं, क्योंकि मैदान नहीं छोड़ सकते।

कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने रविवार शाम को 5 बजे प्रेस कांफ्रेंस कर खुलासा किया। इस खुलासे के बाद भाजपा के रणनीतिकारों के पैरों तले जमीन खिसक गई, क्योंकि एनएसयूआई के प्रदेश महासचिव के खिलाफ दुष्कर्म के मामले को भाजपा एक मुद्दे के रूप में उठाने में लगी थी और यहां उनके प्रत्याशी पर ही दुष्कर्म, पाक्सो से लेकर देह व्यापार में धकेलने जैसे आरोप लगे थे। इस पर चिंतन-मंथन करते पांच घंटे लग गए, तब जाकर रात 10 बजे एसटी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम का बयान जारी किया गया।

दूसरे दिन, यानी सोमवार को नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप के साथ आधा दर्जन नेता आए और प्रेस कांफ्रेंस में यह आरोप लगाया कि कांग्रेस आंतरिक सर्वे में हार रही है, इसलिए भाजपा प्रत्याशी के चरित्र हनन की कोशिश कर रही है। इससे पहले भी 2018 के चुनाव में ऐसी कोशिश हो चुकी है। भाजपा ने इसे ब्रह्मानंद नेताम नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज के चरित्र हनन की कोशिश बताकर अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश की।

कुल मिलाकर इसे अंतागढ़ उपचुनाव जैसी स्थिति ही कह सकते हैं, भले ही यहां प्रत्याशी ने नाम वापस नहीं लिया, लेकिन प्रत्याशी से जुड़े एक मुद्दे ने भाजपा की स्थिति असहज कर दी। हालांकि अभी भी इस मामले के कई सवाल ऐसे हैं, जो अनसुलझे हैं। इनमें सबसे अहम यह कि क्या ब्रह्मानंद ने जान-बूझकर यह बात छिपाई या सच में उन्हें पुलिस की ओर से कोई नोटिस या समंस नहीं आया। यदि झारखंड पुलिस ने कोई नोटिस या समंस जारी नहीं किया तो पुलिस इस मामले को अब तक यूं ही क्यों लेकर बैठी रही, जबकि यह पॉक्सो जैसा संगीन जुर्म है। एक सवाल यह भी कि क्या सच में भाजपा के किसी नेता, पदाधिकारी या कार्यकर्ता को इस मामले की जरा सी भी भनक नहीं थी?

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